करीब आठ-दस परिवार हैं। उनके प्रति हिकारत, उपेक्षा, शंका और उदासीनता का स्थायी भाव लोगों में है। उसमें कमी नहीं आयी है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
करीब आठ-दस परिवार हैं। उनके प्रति हिकारत, उपेक्षा, शंका और उदासीनता का स्थायी भाव लोगों में है। उसमें कमी नहीं आयी है।