पचीसा


गांव की सड़क किनारे एक पेड़ की छाया में, चबूतरे पर चार लड़के कोई खेल खेल रहे थे। मैंने द्वारिकापुर गंगा किनारे जाते हुये उन्हे देखा, पर आगे बढ़ गया। आधे पौने घण्टे बाद वापस लौटा तो भी वे वहीं थे और वही खेल खेल रहे थे।

साइकिल रोक कर उनसे पूछा – क्या खेल रहे हो?

पचीसा खेलते किशोर

“पचीसा।” उन्होने खेलते खेलते, बिना सिर उठाये जवाब दिया। बताया कि चौबीस गोटियोँ का खेल है। दो खिलाड़ी होते हैं। काली और सफेद गोटियों वाले। हर एक की बारह गोटियाँ होती हैं। एक गोटी की जगह खाली रहती है। खिलाड़ी को दूसरे खिलाड़ी की गोटी लांघ कर गोटी मारनी होती है। जब एक खिलाड़ी की सभी गोटियां खतम हो जायें तो खेल पूरा हो जाता है।

खिलाड़ियों ने बताया कि एक बाजी (राउण्ड) पूरा होने में करीब आधा घण्टा लगता है। सवेरे चारा पांच बाजी खेलते हैं। “अच्छा टाइम पास है।”

अभी तक दोनो खिलाड़ी बराबरी पर थे। खेल आधे पर पंहुंचा था और अगली चाल की सोच में दोनो (तथा उनके सहायक) व्यस्त थे।

तब तक एक अधेड़ सज्जन तब तक आ कर चबूतरे पर सुस्ताने लगे। पचीसा खेलने वाले खिलाड़ियों से बोले – एक बेरियाँ हमहूं के खेलावअ हो!

उन सज्जन ने नाम बताया – वेद प्रकाश। पीछे चोटी बड़ी सी थी। द्वारिकापुर के रहने वाले। बाभन होंगे या ठाकुर। अपने खेतों में यूरिया छिड़क कर लौट रहे थे। फोटो खिंचाने के लिये अटेंशन खड़े हो गये। बोले कि अपने लड़कपन में बहुत खेला है यह चौबीसा या पचीसा।

वेद प्रकाश। हाथ में यूरिया की बाल्टी लिये थे। खेतों में छिड़क कर लौट रहे थे।

“जीतते थे, या हारते थे?”

“दाव लगने पर निर्भर करता है। कभी जीत कभी हार। काफी दिमाग का खेल है। ओथा, जौन बा, शतरंज जैसा ही है। लूडो से कहीं ज्यादा दिमाग लगता है।” 

पचीसा के दोनो खिलाड़ी और दोनो दर्शक खेल में तन्मय थे। ज्यादा बातचीत करने के मूड में नहीं थे। मैं अपने रास्ते चल दिया और वेदप्रकाश अपने रास्ते।

आज यह नया खेल पता चला, पचीसा। जिंदगी की दूसरी पारी में भी बहुत कुछ देखने, जानने को है। जटिल अध्ययन भी, कठिन दर्शन भी, और पचीसा जैसा बचपन का खेल भी! … एक बार तुम भी खेलो, पचीसा जीडी। इसमें तो कोई खर्चा नहीं है। समतल पर आड़ी, सीधी लकीरें खींचनी हैं और दो दर्जन काली-सफेद पत्थर की गुट्टकें बीन कर जमानी हैं; बस!


मेरी पत्नीजी ने बताया कि यह चाइनीज चेकर्स जैसा कोई खेल है। उसका यूपोरियन संस्करण।

चाइनीज चेकर्स का चित्र।
The original uploader was Hephaestos at English Wikipedia. – Transferred from en.wikipedia to Commons., CC BY-SA 3.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=2633945

खैर, मुझे आज के पहले चाइनीज चेकर्स का भी पता नहीं था। मजे की बात यह पता चली कि यह ईजाद जर्मनी ने किया; इसका मार्केटिंग नामकरण “चाइनीज चेकर्स” अमेरिका ने किया और उसका परिवर्धित खेल “पचीसा” यहां पूर्वांचल में कोलाहलपुर और द्वारिकापुर गांव के बीच गंगा किनारे एक चबूतरे पर हो रहा है।

दुनियाँ कितनी कनेक्टेड है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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