रामदेव गड़रिया


वैकुण्ठधाम मंदिर है गंगा किनारे द्वारिकापुर में। सवेरे साढ़े सात बजे एक खटिया बिछा कर वह अपनी भेड़ें अगोर रहा था।

मैंने साइकिल रोक चित्र लेते पूछा – क्या कर रही हैं भेड़ें?

ऊंचा सुनता था वह। दो बार दोहराने पर जवाब दिया – “करिहीं का? जुगाली करत हयीं! (करेंगी क्या? जुगाली कर रही हैं!)”

रामदेव

भादौं का महीना है। हरियाली की कमी नहीं। चराने के लिये रेवड़ ले कर घूमने की जरूरत नहीं। उसने बताया कि पानी तो हर जगह है, इस लिये पानी पिलाने के लिये रेवड़ को गंगा तट पर ले जाने की भी दरकार नहीं।

कुल मिला कर जैसे मई-जून का महीना किसान के लिये अपेक्षाकृत आराम का होता है, वैसे यह बरसात का मौसम गड़रियों/भेडियहों के लिये आराम का होता है।

उसने बताया कि उसका नाम रामदेव है। पड़ोस में ही घर है। रात में जाल के बाड़े में रखता है भेड़ें। फिर भी रात में कुकुर-बिलार से बचाना पड़ता है। सवेरे सूरज निकलने पर बाड़े से बाहर ला कर यहीं मंदिर के पास बैठता है।

“मंदिर के पास रहते हो, कुछ रामनाम लेते हो?”  

वह बड़ी सरल सी हंसी हंसा। बोला कि चौबीस कलाँ भेड़ों को ही गिनने, सम्भालने का काम है। “गंगा नहा कर जल चढ़ा देता हूं, सूर्ज देवता को। उतना ही धरम करम है।”

बहुत निश्चित नहीं था अपनी उम्र को ले कर। बहुत देर तक कोई अंक नहीं बोल पाया। पास जाते एक सज्जन ने बताया कि उनका समौरी (समवयस्क) है रामदेव। उनकी उम्र पचहत्तर की है तो रामदेव भी उतना ही होगा।

रामदेव और उसकी भेड़ें।

पचास के आसपास भेड़ें हैं रामदेव के पास। उन्ही को देखना, गिनना, पालना और ध्यान रखना उसका कर्म है। वही ध्यान है, वही योग है। इतना जरूर है कि हम लोग पचास तरह के सांसारिक पचड़े में पड़े रहते हैं। अपनी और आगे की एक दो पीढियों के लिये फिक्रमंद रहते हैं। रामदेव केवल भेड़ें ही गिनता है!

वह अपने स्वास्थ्य का रहस्य भी बताता है – भेड़ों के साथ साथ घूमने से हाँथ-गोड़ ठीक रहते हैं। आगे वह कितना जियेगा, वह इसपर निर्भर करता है कि हांथ-पैर कितने काम करते हैं।

सरल जीवन! रामदेव को कोई पीएचडी नहीं करनी, कोई अट्टालिका बनाने की साध नहीं। अपनी भेड़ों के साथ साथ जीवन गुजारना है। मैं प्रसन्नता से लम्बे जीवन की सोचता हूं। रामदेव वह भेड़ों के सानिध्य में प्राप्त कर ले रहा है।

क्या करूं? रामदेव के जीवन से ईर्ष्या करूं? … मैं तय नहीं कर पाता!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “रामदेव गड़रिया

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