अगियाबीर की आर्कियॉलॉजिकल साइट के बबूल की छाँव


अगियाबीर के टीले पर जहां पुरातत्व की खुदाई चल रही है, वहां एक बबूल का पेड़ है। तेज गर्मी में खुदाई के काम में लगे रहते हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् और उनके सहकर्मी। उनको एक मात्र छाया देने वाला वृक्ष है वह। अन्य टीलों पर कई वृक्ष हैं और बस्ती के आसपास तो महुआ के विशालकाय वृक्ष हैं। पर यहां वही भर सहारा है गर्मी में। पुरातत्व वालों ने छाया के हिसाब से खुदाई की साइट नहीं चुनी। 🙂

बबूल के पेड़ की छाया में डा. अशोक सिंह

उसी बबूल की छाया में पुरातत्व वाले अपनी कुर्सी रखते हैं और दरी बिछाते हैं। पेड़ पर अपना पीने का पानी का बर्तन टांगते हैं। सवेरे छ बजे चले आते हैं काम पर तो वहीं पेड़ के नीचे सवेरे का नाश्ता करते हैं।


अप्रेल 14, 2018 की पोस्ट जो फेसबुक नोट्स में थी और वह फेसबुक की नोट्स को फेज आउट करने की पॉलिसी के कारण विलुप्त हो गयी थी। उसे आर्काइव से निकाल कर यहां ब्लॉग पर सहेज लिया है।


मैं अपनी साइकिल स्कूल के परिसर में खड़ी कर (अपने पैरों में ऑस्टियोअर्थराइटिस के दर्द के कारण) वाकिंग स्टिक के सहारे जब टीले की साइट पर पंहुचता हूं तो डा. अशोक सिंह मेरी उम्र और मेरी रुचि को देखते हुये पेड़ के नीचे रखी अपनी कुर्सी मुझे ऑफर कर देते हैं।

बबूल के पेड़ की छाया में रसोईया किशोर महराज, ड्राफ़्ट्समैन शिवकुमार और मैं।

वह पेड़ – बबूल का तुच्छ पेड़ मुझे बहुत प्रिय प्रतीत होता है। डा. अशोक सिंह बताते हैं कि जब वे लोग डेढ महीना पहले इस स्थान पर खुदाई करने आये थे तो यह वृक्ष मृतप्राय था। बहुत कम पत्तियां थीं उसमें। वे लोग इसका थाला बना कर रोज पानी देते रहे। अब यह हरा भरा हो गया है। उनके लिये बड़ा सहारा बन गया है।

डा. रविशंकर ने कहा – “सर, इस पेड़ पर दो गिरगिट रहते हैं। हम लोग खुदाई के काम में व्यस्त रहते हैं और वे आपस में दिन भर लड़ते रहते हैं। शायद पेड़ पर वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कल एक बाज़ एक गिरगिट पर झपटा था। मैने समय से देख लिया और बाज़ को उड़ाया अन्यथा एक गिरगिट तो उसका शिकार हो जाता। अगर एक गिरगिट बाज का शिकार हो जाता तो उनकी वर्चस्व की लड़ाई रुक जाती और हमारा मनोरंजन भी खत्म हो जाता!”

बबूल के पेड़ से लटकाया पानी का बर्तन।

रविशंकर इन्क्विजिटिव व्यक्ति हैं। अपने पुरातत्व के काम में दक्ष हैं साथ ही अपने वातावरण के बारे में सचेत भी। आगे उन्होने बताया – “हम लोगों के यहां आने के बाद ही एक चिड़िया दम्पति ने इस बबूल के पेड़ पर अपना घोंसला भी बनाया है। अंडे भी दिये हैं घोंसले में। उनके चूजे निकलने का समय भी आ गया है।”

पेड़, गिरगिट, चिड़िया और चूजे” – मैं डा. अशोक से मनोविनोद करता हूं – “आप लोगों की आर्कियालॉजिकल रिपोर्ट में इन सब की भी चर्चा होगी, कि नहीं?”

उनके न कहने पर मैं सुझाव देता हूं कि आप लोग अपने अनुभवों की डायरी रखा करें – अगियाबीरनामा!

डा. सिंह कहते हैं – हमारे लिये वह काम आप ही कर दे रहे हैं अपनी पोस्टों के लेखन में। 😊


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “अगियाबीर की आर्कियॉलॉजिकल साइट के बबूल की छाँव

  1. “………अप्रेल 14, 2018 की पोस्ट जो फेसबुक नोट्स में थी और वह फेसबुक की नोट्स को फेज आउट करने की पॉलिसी के कारण विलुप्त हो गयी थी। उसे आर्काइव से निकाल कर यहां ब्लॉग पर सहेज लिया है।……..”
    >>>> फ़ेसबुक का पूरा हिसाब-किताब कांइयाँ भरा है. न ढंग का सर्च और न ही ढंग से आर्काइविंग. सारगर्भित सामग्री के तरतीबवार भंडारण व उपयोग के लिए ब्लॉग से उत्तम कोई नहीं.

    Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: