कोरोना संक्रमण – फिर दुबकने का समय

कल सीएनबीसी आवाज पर “आवाज अड्डा” में एक डाक्टर साहब बता रहे थे कि नेताओं-मंत्रियों के फोन अस्पताल के मुखिया लोग उठाने में हिचकिचा रहे हैं। उन्हें अंदेशा है कि वे अपने करीबी के लिये कोरोना-बेड की मांग करेंगे और बेड खाली ही नहीं हैं। पत्रकार (हर्षवर्धन त्रिपाठी) ने कहा कि लखनऊ में उत्तर प्रदेश के एक धाकड़ मंत्री जी दिन भर फोन लगाते रह गये पर अस्पताल वाले ने फोन नहीं उठाया।

मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के आंकड़े देखता हूं, जो अतिशयोक्ति जी एक वेबसाइट पर उपलब्ध करा देते हैं। उसमे भदोही जैसे ग्रामीण जिले में भी कोरोना संक्रमण चार दिन में दुगना हो रहा है। आरोग्यसेतु एप्प पर भी मेरे घर के आसपास कोरोना के मामले देखने में आने लगे हैं। और सुगबुगाहट यह भी है कि मामलों की अण्डर-रिपोर्टिंग हो रही है।

सवेरे साइकिल ले कर दूध लेने जाते समय मैं देखता हूं कि मास्क पहने लोगों में भी चरघातांकी (Exponential) वृद्धि हुई है। हफ्ता भर पहले कोई बिरला ही मास्क पहने नजर आता था, अब कई लोग – लगभग दस प्रतिशत लोग – दिखने लगे हैं। सवेरे सात-आठ बजे सड़क पर लोग उतने ही हैं, जितने होते थे। पर मास्कधारी या गमछे से मुंह ढ़ंके बढ़ गये हैं।

भदोही जिले में कोरोना के शूट होते दैनिक मामले

सरकार इस बार भय नहीं बांट रही। पर आंकड़े बांट रहे हैं। और पंचायती चुनाव के बीच, कोरोना अपने को अखबार की हेडलाइन में ले आया है; जबरी।

मैं ठीक एक साल पहले की अपनी पोस्ट देखता हूं। उनमें मैं लॉकडाउन के दौरान बंद किराना की दुकानों और नाई की दुकानों के हाल की बात करता हूं। तब सेेे अब, एक साल बाद, संक्रमण कहीं ज्यादा है। भय कहीं कम। पर भय बिल्ड-अप हो रहा है। मसलन कल आवाज अड्डा के कार्यक्रम के बाद जब यह अहसास हुआ कि बीमार पड़ने पर अस्पताल में जगह मिलना नेक्स्ट-टू-इम्पॉसिबिल है; किसी बाहरी सहायता की ओर देखने की बजाय अपनी खोल में दुबकना ज्यादा उचित स्टेटेजी प्रतीत हो रही है।

ठीक साल भर बाद वही दशा है – मेरे बाल बढ़ गये हैं और सुंदर नाऊ को बुला बाल कटवाने का मन नहीं हो रहा है!

गिलोय और काढ़ा पीना नियमित हो गया है।

मैं और मेरी पत्नीजी इस गांवदेहात के अपने घर में हैं। इसकी अपनी चारदीवारी है। और अपना एक्स्लूसिव गेट। हम दोनो को आईसोलेट रहना है – ज्यादा से ज्यादा। घर में नियमित दो प्राणी आते हैं – नौकरानी और वाहन चालक। उनके साथ मेल मिलाप का तरीका तय करना है। और वह उतना अनौपचारिक नहीं होगा, जितना अब था। कोरोना सोशल डिस्टेंसिंग के नॉर्म्स वापस ले आयेगा। मास्क और सेनीटाइजर तो अभी भी साथ रहते थे, पर अब सेनीटाइजर की खपत बढ़ जायेगी। हस्तप्रक्षालन की आवृति बढ़ेगी। अभी गिलोय और काढ़ा पीना; जो बीच में नहीं हो रहा था; नियमित हो गया है।

जहाज का पंछी फिर जहाज पर आता है। कछुआ हल्की की आहट पर खोल में दुबक जाता है। खोल में दुबकने का ही समय है।

Photo by Pixabay on Pexels.com

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “कोरोना संक्रमण – फिर दुबकने का समय

  1. I enjoy your reporting , its like a running commentary of your neighbourhood.
    I won’t be surprise if your blog makes a place in some of the government’s and historian”s references for ” Bhadohi district” context.

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    1. धन्यवाद! इस कोण से मैंने सोचा नहीं। लेकिन आपने सोचने का एक आयाम दिया है!

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  2. बहुत सही है, समय तो ऐसा ही है सावधानी हटी और करोनावाईरस घुसा तो दुर्घटना घटी।
    सावधानी और सावधानी, निरंतर सावधानी। मास्क, दो गज की आपस में दूरी और साफ सफाई शरीर और परिवेश की ही बचाव का जरिया है।

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