गांव की सड़क पर बारिश के मौसम की शाम

बारिश लम्बे अर्से से रुकी थी। तीन चार दिन से उमस बहुत थी। उमस के कारण घर से निकलना नहीं हो सका था। न निकलने से शरीर अकड़ सा जाता है। आलस्य भी बना रहता है।

उस दिन शाम को हवा चलने लगी। कुछ ठंडक भी थी उसमें। कहीं बारिश हुई होगी। मौसम में सुधार को देखते हुये मैं साइकिल के साथ घर से निकल लिया। मेरे पास करीब 50 मिनट का समय था सूर्यास्त तक घूम कर घर लौटने का।

सांझ होने के साथ गांव देहात की आंखें मुंदने लगती हैं। सूर्यास्त के दो घण्टे में तो सन्नाटा हो जाता है। अगर मैं साइकिल ले कर निकला होऊँ, तो पूरी कोशिश रहती है कि सूर्य की आखिरी किरण तक घर की सरहद में पंहुच जाऊं। यद्यपि गांव गांव में बिजली आ गयी है और सोलर लाइटें भी लग गयी हैं; पर भरोसा नहीं कि रात में बिजली रहेगी या सोलर लाइट काम करेगी। अधिकांश सोलर ट्रीट लाइटें (लगभग नब्बे फीसदी) तो दो तीन साल पहले ही या तो चोरी चली गयी हैं, या उनकी बैटरी बैठ गयी है।

सूर्यास्त होने को था।

मैंने साइकिल से द्वारिकापुर का गंगा तट छू लिया था। भ्रमण की लौटानी में था। सूर्यास्त होने को था। अभी 10-15 मिनट शेष थे। उतने में तो घर पंहुच ही जाऊंगा – मैंने हिसाब लगा लिया था। इतने में द्वारिकापुर और कोलाहलपुर के बीच पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर कई लोग सुस्ताते दिखे। शाम के सिंदूरी नेपथ्य में वह चबूतरा बड़ा आकर्षक दृष्य उपस्थित कर करा था। स्वत: मेरी साइकिल के ब्रेक लग गये।

मुझे चित्र लेते देख चबूतरे पर बैठी एक महिला उठ कर उल्टी तरफ मुंह कर खड़ी हो गयी। चबूतरे के सामने तीन लोग बैठे थे। पीछे कुछ नौजवान शायद पचीसा खेल रहे थे। एक आदमी खेत से सड़क पार कर शायद चबूतरे पर बैठने आ रहा था। पास में ही बांयी ओर खेत में ट्रेक्टर चल रहा था।

चित्र लेते देख एक सज्जन बोले – “आइये, आप भी कुछ देर बैठिये।”

मैंने उन्हें बताया कि सांझ होने तक घर पंहुचना है। सो बैठना नहीं हो पायेगा। वर्ना वहां बैठ कर थोड़ी देर सुस्ताना कौन न चाहेगा?

वे सज्जन वाक-पटु थे। उनसे मेरा कोई पूर्व परिचय नहीं था, फिर भी उन्होने अपने से पहल कर बात की। बताया कि घर से पूरी दोपहार यहां अरहर की बुआई कराने के लिये बैठे हैं। जैसा खेत है, उसमें अरहर ही बोई जा सकती है। धान नहीं लग सकता। पानी खेत में रुकता नहीं है। पास में (गंगा) नदी है तो बह जाता है। मिट्टी भी कंकरीली है। पानी सोख लेती है। ऊपर रहता नहीं।

दोनो गांवों की संधि पर यह सड़क किनारे चबूतरा मुझे बरबस हजारों साल पहले के अतीत में ले जा रहा था।

सवर्णों का गांव है द्वारिकापुर। वहीं के लग रहे थे वे। दूसरी ओर, पश्चिम की ओर है कोलाहलपुर। जिसमें एक घर को छोड़ सभी दलित हैं। दोनो गांव तारी हैं। गंगा तट वाले। दोनो आदि काल से रहे होंगे। पुरातत्वविद रविशंकर जी ने बताया था कि द्वारिकापुर का उल्लेख तो कुलाल जातक में भी है। बुद्ध का एक जन्म द्वारग्राम (द्वारिकापुर) में कुम्हारों की बस्ती में हुआ था। कोलाहलपुर भी इसी तरह कुछ रहा होगा।

दोनो गांवों की संधि पर यह सड़क किनारे चबूतरा मुझे बरबस हजारों साल पहले के अतीत में ले जा रहा था। यह सड़क भी गंगा नदी के समांतर चलती प्राचीन काल का उत्तरापथ रही होगी। मगध-काशी को पेशावर से जोड़ती। तब भी यहां खेत रहे होंगे। ट्रेक्टर की बजाय हल बैल से खेती होती रही होगी और अरहर की बुआई कर सांझ मे किसान यहीं उत्तरापथ के किनारे सुस्ताते, बोलते बतियाते रहे होंगे। गंगा यूं ही पास में बहती रही होंगी। सूर्यास्त भी ऐसे ही होता रहा होगा। मेरे जैसा आदमी भी सांझ की सैर को निकलता रहा होगा! …

मैं देर तक रुका नहीं; यद्यपि सांझ के गोल्डन ऑवर की सूरज की किरणों में वह जगह बहुत आकर्षित कर रही थी। मैंने अपने को दो – ढाई हजार साल के अतीत के टाइम फ्रेम से अपने को वर्तमान में धकेला और घर के लिये रवाना हो गया।

शाम को यूंही उस चबूतरे पर बैठ कुछ सोचना और बस समय गुजारते जाना – यह कभी करूंगा। रिटायरमेण्ट के बाद इस तरह का काम तो कर ही सकता हूं! :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “गांव की सड़क पर बारिश के मौसम की शाम

  1. सदा की तरह सरल, सुन्दर अभीव्यक्ति। वृक्ष की घुटती सांस पर भी कृपा दृष्टि हो जाती तो…….

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    1. धन्यवाद के डी शर्मा जी।
      इस गंगा तट पर वृक्ष की सांस तो शायद नहीं घुट रही (अपेक्षाकृत) पर इस अंचल में भी पर्यावरण के मुद्दे हैं जरूर। उनपर भी ध्यान रहेगा और आपके कहने से प्रभावित हो कर और भी रहेगा।

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      1. क्षमा याचना। मेरा प्रयोजन वृक्ष की जड़ों को चबूतरे के प्लास्टर से बन्द करने से था।

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