सावन में तीन ताल का लाल तिरपाल

कई महीनों बाद पॉडकास्ट की दुनियाँ झांकी। तीन तालिये एक अलग ही रंग में दिखे। पिछले सनीचर को उन्होने तिरानवे-वाँ एपीसोड ठेला है। सात हफ्ते बाद सैंकड़ा लगाने वाले हैं। सो मुझे लगा कि आगे उन्हें सुन ही लिया जाये, सलंग। बिना ब्रेक के।

वैसे भी, आजतक रेडियो के बालक – प्रोफाइल फोटो में बालक ही लगते हैं – शुभम ने फोन कर कहा कि सितम्बर के शुरू में जब पॉडकास्ट का सैकड़ा लगेगा, तब मैं वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की सोचूं। वे लोग दिल्ली में कहीं होते हैं। शुभम ने बताया नॉयडा में।

सही कहें तो यहाँ घर से निकल कर दिल्ली, या किसी भी महानगर में, जाने का मन नहीं होता। फिर भी शुभम को मैंने सीधे सीधे मना नहीं किया। क्या पता जाना हो ही जाये।


तीन ताल पर ब्लॉग के कुछ लिंक –

ट्विटर स्पेसेज पर आजतक रेडियो वालों का बेबाक बुधवार

पॉडकास्ट गढ़ते तीन तालिये

कमलेश किशोर और आजतक रेडियो

तीन तालियों पर मेरी पत्नीजी के विचार


पत्नीजी को तीन ताल के सैंकड़ा-उत्सव के बारे में बताया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी – “हो आओ। कभी गांव-देहात से निकलना भी चाहिये। आने जाने का खर्चा-बर्चा देंगे क्या तीन ताल वाले?” 😆

खर्चा बर्चा?! मैं तीन ताल के पॉडकास्ट में आजकल जो कार्टून छपता है, उसे ध्यान से देखता हूं। उस कारटून में जिस कण्डम जैसी जगह पर वे तीनों – ताऊ, बाबा और सरदार पॉडकास्ट रिकार्ड कर रहे हैं – उसे देख कर लगता है कि वे एक बढ़िया चाय पिला दें तो गनीमत। चित्र में पाणिनि पण्डित के बगल में चार खाने का टिफिन धरा है। उसी में से ही कुछ अपने हाथ का बना खिलायेंगे, और क्या? और बबवा के बनाये व्यंजन का क्या भरोसा? मेरे जैसे नॉन-लहसुन-प्याजेटेरियन का धर्म न भ्रष्ट कर दे! 🙂

चित्र में गजब भीषण रिकार्डिंग स्टूडियो है। दीवार पर एक ओर गांधी बाबा टंगे हैं और दूसरी तरफ हवा के तेज झोंके से उठती स्कर्ट अपनी टांगों पर ठेलने का असफल प्रयास करती मर्लिन मनरो जैसी कोई सेलिब्रिटी का पोस्टर है। ये दोनो ही इन तीनों के जवान होने के पहले बुझ चुके थे। गांधी बाबा की फोटो के लकड़ी के फ्रेम से दीमक की सुरंगों की लकीर दीवार पर बढ़ रही है। पास में ही एक मोटी छिपकली है। दीवार की पुताई उधड़ रही है और उसपर मकड़ी के जाले लगे हैं। … तीन तालिया संस्कृति में नित्य डस्टिंग और होली दिवाली जाले हटाने का कोई अनुष्ठान सम्भवत: होता ही नहीं। इन तीनो को गचर गचर बतियाने से फुरसत मिले तो साफ सफाई पर ध्यान दें!

चित्र में लेटरे हाथ से पाणिनि पण्डित कुछ स्क्रिबल कर रहे हैं। दांये हाथ में चाय का मग है। नॉयडा है तो मग्गा ही होगा; कुल्हड़ तो होगा नहीं। बाकी, पाणिनि गंवई नहीं, शहराती लगते हैं – बगल में रजनीगंधा का डिब्बा धरे हैं, गांव के बिसेसर तेवारी की तरह प्लास्टिक की चुनौटी लिये नहीं हैं। वामपंथियों के साथ यही दिक्कत है। बात गांवदेहात की करते हैं और बीच बीच में विलायती शहरों की नेम-ड्रॉपिंग भी करते रहते हैं। चूना-कत्था-किमाम का नाम लेते हैं पर कभी सुरती मल कर हथेली गंदी नहीं करते।

पत्नीजी को तीन ताल के सैंकड़ा-उत्सव के बारे में बताया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी – “हो आओ। कभी गांव-देहात से निकलना भी चाहिये। आने जाने का खर्चा-बर्चा देंगे क्या तीन ताल वाले?” 😆

ताऊ मेज पर अपने समूह की पत्रिका सामने रखे हैं। हिंदी वाली इण्डिया टुडे। उनके पैरों की ओर एक मूषक दम्पति भोजन करने में व्यस्त हैं। मैं कल्पना करता हूं कि कभी वे कमलेश किशोर जी के मोजों पर भी कूदते होंगे! आजतक के होन्चो की जुर्राबों पर नाचते मूषक! बाकी, चित्र में अगर तनिक भी सचाई है तो कितना सहज वातावरण होगा तीन ताल के तिरपालिया स्टूडियो का। बाबा की खिलखिलाती हंसी, ताऊ जी की खरखराती पंचलाइनें और सभी कुछ सम्भालने के चक्कर में अपना मुंह पूरे एक सौ डिग्री घुमाने की कवायद करते कुलदीप मिसिर!

वह चित्र देख कर मैं पत्नीजी को कहता हूं कि तीनतालियों के यहां जाने का मन हो रहा है। बाकी, छिपकली, दीमक, रजनीगंधा, चार खाने वाला टिफन बॉक्स, मकड़ियों के जाले और चूहों का अखाड़ा देख कर यह सोचना कि वे लोग कोई खर्चा-बर्चा देंगे? भूल जाओ। हां, चलते चलते पाणिनि का वह ‘जय जवान जय किसान’ वाला खद्दर का लटकाऊ झोला जरूर मांग लिया जायेगा बतौर मोमेण्टो!

तीन ताल अपने आप में अनूठा पॉडकास्ट है। ये तीनों पॉडकास्टिये, जो अपना रूप-रंग फोटोजेनिक बनाने की बजाय अपनी आवाज के वजन और अपने परिवेश की सूक्ष्म जानकारी से आपको चमत्कृत करने की जबरदस्त क्षमता रखते हैं। ये आपको सहज तरीके से, हाहाहीहीहेहे करते हुये न जाने कितना कुछ बता जाते हैं। अद्भुत। मेरे जैसा दक्षिणपंथी भी उन लोगों को (जो शायद जे.एन.यू. के खांटी वामपंथी हैं) सुन ही लेता है। … भईया, ज्ञान कहीं भी मिले, बटोर लीजिये। और तीनताल के पॉडकास्ट पर जरा ज्यादा ही मिल जाता है। सौ मिनट से ऊपर के भारी भरकम एपीसोड को सुनना कभी भी अखरता नहीं।

तीन ताल का तिरानवे-वाँ एपीसोड

इस तिरानवे नंबर के अंक में कुलदीप सरदार चहकते हुये सूचना दे रहे हैं कि उनका स्टूडियो नया बन गया है। झकाझक लाल रंग का (केसरिया नहीं, लाल। लाल सलाम वाला लाल)। नये नये गैजेट्स से युक्त। अब वहां दीमक, मकड़ी, चूहे, गन्ही महात्मा और मर्लिन मनरो वाला एम्बियेंस तो मिलने वाला नहीं। अब वहां जा कर क्या करोगे जीडी?! अब तो अपने घर में बैठे बैठे ही तीन ताल सुनो।

सौ के होने जा रहे हैं ताऊ, बाबा और सरदार। मुबारक! झाड़े रहो कलेक्टरगंज!

जय हो!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

2 thoughts on “सावन में तीन ताल का लाल तिरपाल

  1. आपको अवस्य जाना चाहिये, वहाँ अलग अलग विचारों का संगम होगा। जहां तक compensation का सवाल है, अरुण पुरी जी के पास बहुत पइसा है देना चाहिये। 😀😀

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