अमेरा रोपनी कर्मी छोड़ने आये पांच किलोमीटर

30 सितम्बर 21, रात्रि –

‘प्रवीण भईया ने कहा है कि जहां जहां रुको वहां पौधे जरूर रोपो।” सो सवेरे पौधे रोप कर ही प्रेमसागर अमेरा से रवाना हुये। अमेरा की नर्सरी – रोपनी और उसका नेपथ्य आकर्षक है। मेरे जैसा व्यक्ति, जिसके पास यात्रा में आगे बढ़ने का कोई संकल्प न हो, वह वहां एक सीजन गुजारने की इच्छा रखेगा।

कल महादेव परीक्षा लिये प्रेमसागर की। नंगे पांव तपती धूप में चालीस किमी यात्रा के बाद डिन्डौरी में ठिकाना खोजने के लिये भटभटाना पड़ा। रावत धर्मशाला में भी उन्होने यह कह कर वजन नहीं डाला कि वे बड़ी भारी द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा पर निकले हैं। चुपचाप रात में रुकने का किराया चुकाया। शंकर जी समझ गये होंगे कि भगत में अहंकार नहीं आया है। नर्मदा माई ने भी अपने पास बुला कर सुलाया। एक तरीके से देखें तो अनुभव अच्छा ही रहा। प्रेमसागर को भी समझ आ गया कि कपड़े वाली, रबर सोल की सेण्डल ले ही लेनी चाहिये।

आज सवेरे जब डिंडौरी से रवाना हुये तो वहां कोई चप्पल जूते की दुकान नहीं खुली थी। आगे नंगे पांव वे कच्चे गिट्टी भरे रास्ते पर भी चले पांच किलोमीटर। मन में विचार आया होगा कि व्यर्थ हठयोगी बन कर पदयात्रा करने की बजाय अगले अवसर पर सैण्डल ले लेनी चाहिये।

आगे नंगे पांव वे कच्चे गिट्टी भरे रास्ते पर भी चले पांच किलोमीटर।

एक जगह पड़ी विक्रमपुर। गांव या छोटा कस्बा ही होगा। वहां जूते की दुकान मिली। देख परख कर उन्होने एक कपड़े की और रबर सोल की सैंडल खरीदी। तीन सौ रुपये में। मेरी पत्नीजी ने यह जान कर कहा कि प्रेम सागर को कुछ पैसे भेज दो (उन्हें फोन-पे पर उनके मोबाइल नम्बर पर यह भेजना सम्भव है)। पर प्रेम सागर ने कहा – “भईया मोटामोटी काम चल गया है। मेरा कोई खास खर्चा हो नहीं रहा है। अभी आपको भेजने की जरूरत नहीं। होगी तो बता दूंगा।” मैंने पैसे भेजे नहीं। पर यह भी है कि प्रेमसागर अपनी ओर से मांगते भी नहीं – “महादेव इंतजाम करते चलते हैं, भईया।” इतनी बड़ी यात्रा, इतने बड़े संकल्प पर वे निकले भी हैं महादेव के भरोसे ही!

विक्रमपुर में यह सैंडिल ली प्रेमसागर ने

विक्रमपुर अमेरा के गंतव्य के आधे रास्ते में पड़ा था। उसके बाद सैंडल पहन कर तो रास्ता बड़ी तेजी से पार हो गया। दोपहर तीन चार बजे के बीच वे अमेरा पंहुच गये थे।

प्रेम सागर ने बताया कि रास्ता ऊंचा नीचा, घुमावदार और जंगल वाला था। बस्तियां कम ही थीं। नदी कोई नहीं मिली पर घाटी दो तीन जगह थी। दूर पहाडियां दिखती थीं। “200-300 मीटर की तो रही होंगी”। जंगली जीव नहीं मिले रास्ते में। बंदर भी नहीं। शुरुआती दौर में नर्मदा माई रही होंगी बाईं ओर, पर डिंडौरी के बाद उनके दर्शन नहीं हुये।

रास्ता ऊंचा नीचा, घुमावदार और जंगल वाला था। बस्तियां कम ही थीं। नदी कोई नहीं मिली पर घाटी कई जगह थी।

अमेरा पंहुच कर स्वागत ही पाया प्रेमसागर ने। जी. के. साहू जी मिले। उन्होने बताया कि आगे की यात्रा वे कांवर ले कर ही करें। पीछे पीछे अपने वाहन से वे अगले पड़ाव देवरी और उसके आगे वाले पड़ाव कुण्डम तक आयेंगे और उनका सामान लेते आयेंगे। इस तरह उनपर वजन भी अधिक नहीं होगा। उनके इस प्रस्ताव से अभिभूत लगे प्रेम सागर।

अमेरा रोपनी में मिले जी.के. साहू जी (मेज के पीछे)।

आने वाली यात्रा के बारे में साहू जी ने बताया कि आगे वन में विविधता है। अनेक प्रकार के वृक्ष हैं – लकड़ी वाले वृक्ष तो हैं ही, फलदार भी हैं और दुर्लभ औषधीय गुणों वाले भी। “प्रवीण भईया (प्रवीण दुबे जी) ने कहा है कि मैं उन्हें देखता चलूं। प्रवीण भईया मेरा बहुत ध्यान रख रहे हैं।”

आगे वन में बाघ-चीता-भालू भी हैं। ऐसा प्रेमसागर को बताया गया।

1 अक्तूबर 21, सवेरे –

‘प्रवीण भईया ने कहा है कि जहां जहां रुको वहां पौधे जरूर रोपो।” सो सवेरे पौधे रोप कर ही प्रेमसागर अमेरा से रवाना हुये। अमेरा की नर्सरी – रोपनी और उसका नेपथ्य आकर्षक है। मेरे जैसा व्यक्ति, जिसके पास यात्रा में आगे बढ़ने का कोई संकल्प न हो, वह वहां एक सीजन गुजारने की इच्छा रखेगा। जो चित्र प्रेम सागर ने सवेरे आसपास के भेजे उनके अनुसार वहां वन है, नर्सरी है, पहाड़ी नेपथ्य है, एक झरने की धारा है। … वह सब कुछ है जो उस व्यक्ति को चाहिये जो प्रकृति के बीच रहना चाहता हो। अमेरा के चित्रों का स्लाइड शो नीचे है।

प्रेमसागर का वृक्षारोपण का एक चित्र नीचे है।

प्रेमसागर का वृक्षारोपण

मेरे विचार से किसी के पौधा लगवाना सबसे बड़ा सम्मान है। इतनी बड़ी संकल्प यात्रा पर निकले अनहंकारी प्रेमसागर उसके सुपात्र हैं। उनके लगाये पौधे फलें-फूलें, यह कामना की जानी चाहिये। प्रवीण दुबे जी ने जो रोपण की प्रेरणा दी है, उसके लिये वे भी साधुवाद के पात्र हैं।

वन कर्मी – भोला और बेरीलाल यादव (दांये)

प्रेम सागर अमेरा से निकलने लगे तो बेरी लाल यादव और कई अन्य लोग उनके साथ साथ करीब पांच किलोमीटर तक आये। उनका चित्र प्रेमसागर ने भेजा। बड़े सरल से लोग। उन्हें किसी ने आदेश नहीं दिया होगा साथ जाने का। स्वत: स्फूर्त ही उन्होने प्रेमसागर को अमेरा घाटी पार कराई होगी। इसी प्रकार के लोग और इसी प्रकार की घटनायें यादगार बनाती हैं यात्रा को। बेरीलाल यादव यादव के लिये ये लाइनें प्रेमसागर ने मुझे संदेश के रूप में भेजी हैं –

यादव जी मेरे साथ घाटी को पार किए हैं 3 किलोमीटर तक। भगवान इनके बाल बच्चों को सुखी रखे निरोग रखें। यही महादेव जी से निवेदन कर रहा हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद इनको। हर हर महादेव!

– प्रेमसागर
बेरीलाल यादव और अन्य जो प्रेमसागर को छोड़ने आये।

रास्ते में एक चाय की दुकान पर प्रेम जी ने चाय पी। चाय का शौक रखते हैं, ऐसा मुझे लगा। इस बार चाय वाले का नाम भी बताया है – पुरुषोत्तम। पुरुषोत्तम ने निश्चय ही उत्तम चाय पिलाई होगी।

चाय वाले का नाम भी बताया है – पुरुषोत्तम।

अब यहीं रुका जाये। प्रेमसागर के टेलीग्राम पर संदेश आये जा रहे हैं। लगता है पैर में सेंडल और कांवर में हल्कापन उनकी उत्फुल्लता द्विगुणित कर गये हैं। बाकी शाम को लिखा जायेगा।

आज की यात्रा – अमेरा से देवरी

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “अमेरा रोपनी कर्मी छोड़ने आये पांच किलोमीटर

  1. आपकी लेखनी ऐसा आभास कराती है लगता है मैं भी यात्रा में प्रेमसागर जी के साथ हूँ यदि नही हूँ तो लगता है काश साथ होता सुंदर यात्रा सुंदर यात्रा वृतांत , महादेव की कृपा आप पर भी बनी रहे |

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    1. जय हो कृष्ण देव जी. आपकी माता जी कैसी हैं. उन्हें बताया आज का प्रेम सागर आख्यान? 😊

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      1. मुझसे ज्यादा माता जी व्यग्र रहती है प्रेमसागर आख्यान सुनने के लिए | ऐसा लगता है मुझे ब्लॉग को सीखना पड़ेगा सब्सक्राइब करना, रिप्लाई करना आदि क्योकि हरेक बार मुझे ईमेल और नाम लिखना पड़ता है

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        1. आप वर्डप्रेस अकाउंट बना ही लीजिए! लगता है प्रेम सागर एक साल भर चलेंगे. मुझे और आपको भी चलाते रहेंगे! बन्दे में बहुत ऊर्जा है. संकल्प की ऊर्जा…

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