देवरी में साहू जी के घर पर

1 अक्तूबर 21 शाम –

साहू जी के भांजे अनिल ने बताया – “यह तो नसीब है कि सेवा का मौका मिलता है। प्रेम सागर जी तो धरम पर टिके हैं। हम लोगों को अच्छी अच्छी बातें बता रहे हैं। ज्ञान की बातें बता रहे हैं। उनका यहां रुकना सौभाग्य है हमारा।”

अमेरा नर्सरी से निकलने के बाद पांच किलोमीटर तक तो अमेरा वन रोपनी के लोग उनके साथ चले थे। आगे की घाटी पार करा दिये। कुछ लोग पैदल साथ थे और कुछ मोटर साइकिल से। उसके बाद बड़गांव में सिलगी नदी मिली। नदी घूमती फिरती आगे जा कर हिरदेपुर-बिस्वनी गांवों के पास नर्मदा में मिल जाती हैं। नदी के चित्र अच्छे खींचे हैं प्रेमसागर ने।

सिलगी नदी के चित्र का जीपीएफ

जी.के. साहू, जो प्रेमसागर का सामान ले कर मोटरसाइकिल पर चल रहे थे, के माता पिता यहीं बड़गांव में रहते हैं। वे सड़क पर ही मिले। माता पिता करीब साठ साल के होंगे। प्रेमसागर से मिल कर खुश थे। ताज्जुब भी कर रहे थे कि इतनी बड़ी यात्रा पर निकले हैं, पैदल! उन्होने चायपान कराया। उसके बाद आठ किलोमीटर और चलने के बाद शाहपुरा का रेंजर ऑफिस पड़ा। वहां साहू जी और एक नौजवान राहुल केशवानी ने उनकी अगवानी की। राहुल ने चायपान और ठण्डा आदि का इंतजाम कर रखा था। इतना आराम मिला प्रेमसागर को कि वहां चार घण्टा – 11 बजे से तीन बजे तक – वहीं आराम किया।

राहुल केशवानी

“बहुत भला लड़का है राहुल। प्रवीण भईया अगर मदद करते तो इसका प्रोमोशन हो जाता। इसकी मांं इसकी शादी को ले कर फिक्रमंद है। चाहती हैं कि पहले इसकी शादी हो जाये, तब इसकी छोटी बहन की हो।” – प्रेमसागर जितना लोगों के बारे में जानने लगे हैं उतना उनकी सोचने लगे हैं। यह उनकी अपनी धुन में चलते चले जाने की आदत में बदलाव है। शायद चित्र खींचना, लोगों के बारे में और कुरेद कर जानना उन्हें सीखना पड़ा है। रोज ब्लॉग में लिखने के लिये कुछ सामग्री जो देनी होती है उन्हें। :-)

राहुल के पिताजी 2013 में गुजर गये। वे देवरी में दुकान करते थे। मां ने परिवार संभाला और एक बड़ी बेटी की शादी कर दी है। राहुल के बारे में उनकी पैरवी सुन कर मैं हंसते हुये उनसे कहता हूं – “आपके पास तो महादेव हैं न! उनको कहिये राहुल की मदद करने को!”

“मेरे ख्याल से प्रवीण भईया कुछ करेंगे। महादेव से प्रार्थना तो मैंने कर ही दी है। बेचारा बहुत अच्छा है।” – प्रेमसागर के इस कहने में झलकता है कि राहुल ने उन्हें काफी प्रभावित कर लिया है।

राहुल और जी.के. साहू प्रेम सागर के आगे पीछे मोटर साइकिल से चलते रहे। बीच बीच में उन्हें जलपान कराते रहे। पेड़ा भी खिलाया एक जगह। शाम सात बजे वे देवरी पंहुचे। रास्ते के चित्रों को नीचे मैंने एक जीपीएफ चित्र में ढाल दिया है।

शाहपुर से देवरी के बीच

देवरी में प्रेमसागर अनन्यकुमार साहू जी के घर रुके। अनन्य जी जी.के. साहू के परिचित हैं। उनके यहां परिक्रमा वाले और अन्य तीर्थाटन करने वाले आते-रुकते रहते हैं। इसलिये जब जी.के. साहू जी ने उनसे एक रात प्रेमसागर जी को ठहराने का अनुरोध किया तो उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उनके भांजे अनिल ने मुझे बताया – “यह तो नसीब है कि सेवा का मौका मिलता है। प्रेम सागर जी तो धरम पर टिके हैं। हम लोगों को अच्छी अच्छी बातें बता रहे हैं। ज्ञान की बातें बता रहे हैं। उनका यहां रुकना सौभाग्य है हमारा।”

2 अक्तूबर 21 सवेरे –

प्रेम सागर ने बताया कि आज देवरी के कुण्डम तक का रास्ता केवल 25 किमी का है। इसलिये इत्मीनान से चाय आदि ले कर ही चलेंगे। उन्होने अनन्य कुमार साहू जी के परिवार का चित्र भी भेजा। ग्रामीण परिवेश का सरल सा परिवार है। प्रेमसागर को उनके यहां रुकना घर जैसा ही लगा होगा। रेस्ट हाउस और धर्मशाला के ठहरने से अलग प्रकार का अनुभव हुआ ही होगा। चित्र में वे सब लोग खड़े हैं और प्रेमसागर को आदर से एक कुर्सी दी है बैठने के लिये।

तभी वे सवेरे (सामान्य से एक डेढ़ घण्टा ज्यादा) देवरी में साहू जी के घर ज्यादा रुक गये। :-)

अनन्य कुमार साहू जी के घर प्रेम सागर

देवरी से चलने के बाद साढ़े आठ बजे उन्होने एक चाय की दुकान पर चाय पीते हुये रास्ते के कुछ चित्र भेजे। करीब 8 किमी चल चुके थे। एक नाला पड़ा था। चौड़ा था और उसका पानी भी स्वच्छ प्रतीत होता था। रास्ते में आसपास पहाड़ियां और वृक्ष तो थे ही।

रास्ते में चाय की दुकान की तलाश प्रेमसागर को रहती है। बनारस से अमरकण्टक तक, जब कांवर नहीं उठाई थी, तो दिन में अन्न न ग्रहण करने का अनुशासन नहीं लागू था। तब वे दिन में सत्तू-चीनी या चिवड़ा-दही-चीनी का सेवन करते थे। उनका सत्तू चिवड़ा का स्टॉक लगभग खत्म हो गया है। अब वे चाय की दुकान की तलाश करते हैं। वहां कोई मिठाई जैसे रसगुल्ला मिल जाये तो ठीक वर्ना चाय का सेवन करते हैं तात्कालिक ऊर्जा पाने के लिये। मेरे ख्याल से उनको साथ में गुड़ की छोटी भेलियों की पोटली ले कर चलनी चाहिये। पैदल चलने में ऊर्जा काफी खर्च होती है। उसे वापस पाने के लिये गुड़ की भेली-पानी या गुड़/चीनी का शर्बत अच्छा रहेगा।

आगे की चाय की दुकानों की खबर रखते हैं प्रेम सागर। “आगे आज कोई और चाय की दुकान मिलने वाली नहीं है।” अमूमन वे दिन में दो तीन या ज्यादा से ज्यादा चार बार चाय की दुकानों पर रुकते हैं।

मैं अपनी पत्नीजी को प्रेमसागर के चाय प्रेम के बारे में बताता हूं तो उनका कहना है – “तुम अपनी नहीं सुनाते? दिन भर में एक दर्जन कप चाय चकोस जाते हो!” :lol:

प्रेमसागर की आगे की देवरी से कुण्डम की यात्रा के बारे में कल की पोस्ट में होगा!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “देवरी में साहू जी के घर पर

  1. दिनेश कुमार शुक्ल, फेसबुक पेज पर –
    समिटि समिटि जलु भरइ तलावा
    जिमि सुसंग सज्जन पँह आवा

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  2. गुरुदेव ज़ी की 01/10/2021 यात्रा (देवरी पड़ाव में ) आपने हमारा परिचय दिया है, उसमे श्रीं मान जी
    राहुल केसरवानी के स्थान पर राहुल केशवानी है
    ये त्रुटि सुधार हो जाए तो आपकी दया होगी 🙏🏻

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  3. माता जी हार्दिक इच्छा है प्रेमसागर जी को कुछ दक्षिणा देने की ऑनलाइन UPI आदि माध्यम हो तो बताएं

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        1. मनीष जी मैं प्रेम सागर जी से एक बार उनकी स्वीकृति ले कर आप को बताता हूँ.

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