14 अक्तूबर 21, रात्रि –
आज डिजिटल यात्रा का सस्पेंस का दिन था। शुरुआत में यह नहीं मालुम था कि वास्तविक कांवर यात्री किस रास्ते किस मुकाम पर जा रहा है। लोकेशन शेयरिंग से कुछ देर में रास्ता तो स्पष्ट हो गया; उसके बाद प्रेम सागर जी द्वारा बताये मुकाम “विनयका” से मिलते जुलते छोटे स्थानों – गांवों, कस्बों आदि की तलाश रास्ते के आसपास की। प्रेमसागर जी ने दूरी 30 किलोमीटर बताई थी, उसके समीप बहुत बारीकी से तलाशा पर कोई स्थान वैसा नहीं था। अंतत: 40 किमी दूरी पर बिनेका (Bineka) नामका स्थान मिला। मुझे लगा कि यही हो सकता है। और अंत में वही निकला भी।
इतना स्पष्ट हुआ कि डिजिटल यात्रा के लिये आवश्यक है कि प्रेमसागर अपनी लोकेशन निरंतर आधार पर शेयर कर सकें और अपनी यात्रा का अगला पड़ाव अग्रिम रूप से खुद जानें और शेयर कर सकें। मेरे लिये जानने और लिखने की सामग्री की विविधता उनकी यात्रा के दौरान के उनके अनुभव से आती है पर उसका बेस इस मूल जानकारी से बनती है – जो नक्शे और नेट/पुस्तकों में बिखरी सूचनाओं में निहित होती है। खैर, जो आज शुरुआत में मेरा फ्रस्ट्रेशन था, वह धीरे धीरे दूर हुआ। अन्यथा एकबारगी तो लगा था कि लम्बी अवधि तक इस तरह का सूचनाहीनता की दशा में साथ साथ मानसिक यात्रा नहीं की जा सकती और उसका लेखन तो करना रसहीन, स्वादहीन होगा।
आज रास्ते में जल, पहाड़ियां, घाटियां और हरियाली थी। जहां भी खेत बन सकते थे, वहां धान की खेती हो रही थी। शुरुआत की आधी दूरी तो बरना जलाशय के इर्दगिर्द वाले इलाके में चलते गुजरी। कहीं नहर मिली तो कहीं नदी। दो नदियां – कम से कम – प्रेमसागर ने पार कीं। उनमें से एक तो बरना रही होंगी जो बरना जलाशय की मुख्य नदी हैं। वे जलाशय में आ कर मिलती भी हैं और आगे जलाशय से निकलती भी हैं। अंतत: उनका गंतव्य नर्मदा ही हैं। टेढ़े मेढ़े घूमते वे उतनी दूरी तय करती हैं, जितनी प्रेमसागर करीब तीन दिनों में तय करते हैं। पर उनके किनारे किनारे चलना हो तो शायद एक पखवाड़ा लगे। उनके किनारे किनारे गांव भी कम ही होंगे और मार्ग तो होंगे ही नहीं। बरना; जो पुराणों में शायद वरुणा-नर्मदा हैं; के किनारे चलने की कोई परम्परा तो है नहीं। शायद कोई चला भी न हो। बहरहाल, चित्र में नदी सुंदर लगती हैं।

रास्ते की ऊंचाई नीचाई का अहसास तो आसपास के पहाड़ों से लग जाता है जिन्हें काट संवार कर सड़क बनाई गयी होगी। चालीस किलोमीटर से ऊपर की यात्रा में शुरुआती दौर में पहाड़ियां ज्यादा थीं, पर वे लगभग पूरी यात्रा में उपस्थित रहीं। नक्शे में देखने पर लगता है कि इस इलाके की धरती जैसे किसी भौगोलिक कारण से ठेल कर या दोनो ओर से सिकोड़ कर ऊंचे नीची कर दी हो। इस इलाके में भी सड़कें चौड़ी की जा रही हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की कहानी इस विरल आबादी वाले रायसेन जिले में भी दिखाई देती है। पांच साल बाद कोई पदयात्री यहां से गुजरेगा तो उसे दृश्य बदला हुआ नजर आयेगा।
कल मैंने यूं ही प्रेमसागर से पूछ लिया था कि यात्रा में शिव-तत्व कहां कहां उन्हे नजर आये या उनकी उपस्थिति का आभास हुआ। कल की यात्रा की दो बातें उन्होने बताई थीं, थोड़ा सोच कर। पर आज वे खुद ही तैयार थे।
बोले रास्ते में वे चले जा रहे थे। सड़क के दूसरी ओर एक महिला अपनी दुकान में बैठी थी। अपने चार साल के बालक को प्रेमसागर की ओर दौड़ाया। बच्चा सड़क पार कर प्रेमसागर से बोला “बाबा, रास्ता में कोई गांव नहीं मिलेगा। आप रुक कर पानी पी लीजिये।” और वह प्रेमसागर का हाथ पकड़ कर अपने मां के पास ले गया। उन्हें पानी पिलाया और आठ अमरूद दिये खाने के लिये। प्रेमसागर ने उसके बारे में टेलीग्राम पर संदेश भी लिखा –

रास्ता मैं यह बालक
हमको दूर से आते देखा तो दौड़ कर
आकर हमको रोका और पानी पिलाया। और 8 अमरूद लाया
और बोला कि बाबा रास्ता में कोई गांव नहीं मिलेगा आप खा लीजिएगा।
महादेव जी उस बालक को लंबी उमर,
विद्या और बुद्धि दे। यही आशीर्वाद बच्चा को दिए हैं हम।
हर हर महादेव!
“भईया उस बच्चे में महादेव नजर आये मुझे। और वह मां भी धन्य हैं जो बच्चे को यह संस्कार दे रही हैं।”
इस जगह के आगे, ‘मोटा-मोटी’ चार पांच किलोमीटर आगे एक आदमी मिले। सत्तर साल के आसपास उम्र रही होगी। सड़क के उसपार थे। हाथ जोड़े गाड़ी वालों की ओर देख रहे थे पर कोई गाड़ी वाला देख ही नहीं रहा था। पैण्ट और कुरता पहने थे और जटा बढ़ी हुई थी। कोई भिखारी नहीं लग रहे थे और मानसिक रूप से विक्षिप्त भी नहीं थे। प्रेमसागर उनकी ओर सड़क पार कर पंहुचे तो वे हाथ जोड़ कर बोले – बाबा, तीन दिन से कुछ खाये नहीं हैं।
“मेरे पास खुल्ले चालीस पचास रुपये थे। वे मैंने उन्हें दे दिये। आगे चलने पर, कोई दो किलोमीटर बाद याद आया याद आया कि उनका फोटो तो मैं ले सकता था। आप फोटो के बारे में पूछते हैं। पर उस समय ध्यान ही नहीं आया फोटो लेने का। शायद गर्मी लग रही थी या वैसे ही दिमाग में नहीं आया।” – प्रेमसागर ने कहा। यह भी जोड़ा कि “उनमें शंकर जी नजर आये मुझे।”
“आपके कपड़े तो गंदे हो जाते हैं। साबुन का प्रयोग तो करते नहीं। साफ कैसे करते हैं?” – शाम के समय यात्रा विवरण लेते समय मैंने प्रेमसागर से पूछा।
“पानी से ही धोता हूं। ज्यादा गंदे होते हैं तो पैरों से रगड़ देता हूं। उससे पैरों की मालिश भी हो जाती है और कपड़े भी साफ हो जाते हैं। बार बार धोने से कपड़े जल्दी पुराने पड़ते हैं। पुराने किसी जरूरतमंद को दे देता हूं। इस यात्रा में तीन धोती, एक कुरता और दो गमछा इस तरह दे चुका हूं। एक धोती तो एक सज्जन ने सेवा की थी और निशानी के रूप में मांगी थी। छाता भी अमरकण्टक से चलने के बाद जंगल में उस महिला को दे दिया था।”
“चलने पर पैर थकते हैं। उनके लिये क्या करते हैं?”
प्रेमसागर ने मुझे उत्तर दिया – जब दर्द होने लगता है तो दो नींबू खरीदता हूं। उन्हें काट कर तलवे पर ऊपर नीचे रगड़ता हूं। आराम मिलता है। एक नींबू आधा ग्लास पानी में निचोड़ कर बिना नमक डाले पी लेता हूं। उससे भी दर्द मिट जाता है। निचोड़े नीबू को भी तालू में रगड़ता हूं।”
बिनेका में रेंजर साहब – तुलाराम कुलस्ते जी ने उन्हें अपने घर पर ही रखा। कुलस्ते जी के परिवार और मिश्रा जी, जो कुलस्ते जी के बाबू हैं, के चित्र प्रेमसागर ने भेजे हैं। कुलस्ते जी ने बताया कि कल प्रेमसागर जी को भोजपुर पंहुचना है। भोजपुर बिनेका से 31 किलोमीटर पर है। प्रेम सागर की दैनिक यात्रा में वह छोटे आकार की यात्रा ही होगी।
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
Sir yatra bratant likhte samay really ap usmen jiwantta bhar dete h sath hi prem sagar se puchhe savalon ke dwara ap unko bhi update rakhte h ab vo bhi samajhne lage h ki bhaiya ke sambhavit questions kya ho sakte h
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🙏🏻
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