ॐकारेश्वर जल अर्पण और बड़वाह

30 अक्तूबर 21, रात्रि –

सवेरे प्रेमसागर ने अनेक चित्र भेजे नर्मदा माई के विहंगम दृश्य के। शायद वन विभाग का रेस्ट हाउस ऊंचाई पर है या पास में कोई एसा स्थान है जहां से यह विस्तार दिखाई देता है। या यह उनको नये मिले मोबाइल के कैमरे का प्रभाव हो सकता है। चित्र में रंग और सूक्ष्मका भी स्पष्ट अंकन बेहतर है। यह कुछ वैसे ही है जैसे कुछ अनहोनी (प्रेमसागर से हुआ कल का हादसा) होने पर अचानक आंखों की दृष्टि बेहतर हो गयी हो। सवेरे नर्मदा के जो चित्र भेजे हैं उनमें नर्मदा के दूसरे तट पर बसावट, मंदिर आदि दिखते हैं। ॐकारेश्वर मंदिर उस तट पर है। एक पुल के माध्यम से उस पार जाया जाता है। मैं जब वहां दो दशक पहले गया था तो उसकी हल्की स्मृति है।

नर्मदा तट, ॐकारेश्वर

ज्योतिर्लिंग की स्थिति और वहां के आसपास के दृश्य बहुत धुंधले हैं यादों में। पर इतना जरूर याद है कि सब स्थान बहुत खुला खुला नहीं था। सीढ़ियां चढ़ने या मंदिर में दर्शन करने में संकरेपन और पुरतनता का भाव जरूर था। बहुत कुछ वैसा ही जैसा विंध्याचल के मंदिर में होता है। नर्मदा किनारे शंकर जी का वास करना तो समझ में आता है, पर संकरी जगहों पर, फिसलन वाले रास्ते और सीढ़ियों के बीच स्थान बना कर रहना क्यूं रहना चाहते हैं वे? बनारस या प्रयाग में शिवकुटी – जहां उनके आसपास रहने वाले लोगों ने अपने घरों में शिवजी की पिण्डी घेर कर मंदिर को आत्मसात कर लिया है – वहां भी शिवजी के साथ यही कुछ हुआ दिखता है।

ॐकारेश्वर – हमारे सभी देवस्थानों का मोदीफिकेशन होना चाहिये जैसे बनारस में विश्वेश्वर मंदिर का हो रहा है

हमारे सभी देवस्थानों का मोदीफिकेशन होना चाहिये जैसे बनारस में विश्वेश्वर मंदिर का हो रहा है और जहां अब मंदिर की वह छ्टा दिख रही है, जो ज्ञानवापी मस्जिद अतिक्रमण के बाद कभी नहीं दिखी। पर अतिक्रमण मात्र मुस्लिम आक्रांताओं के द्वारा ही नहीं हुये हैं, लोगों ने अपने को बसाने के लिये मंदिरों का अपने छुद्र लाभ के लिये अतिक्रमण किया है। और अब कोई भी परिवर्तन, कोई भी सौंदर्यीकरण को वे धर्म के नाम पर ही रोकने का प्रयास करते हैं।

मंदिर परिसर का एक दृश्य

खैर, जो “मोदीफिकेशन” वाराणसी में गंगाजी से विश्वेश्वर मंदिर के कॉरीडोर का हो रहा है, वैसा ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों का भी हो तब आनंद आये। उसमें ॐकारेश्वर भी एक हो। मां नर्मदा में जो भव्यता है, उससे ॐकारेश्वर मंदिर के प्रवेश में तालमेल दिखता ही नहीं। अण्ट-शंट बैरीकेड, पोस्टर और बेतरतीब प्रवेश। ममलेश्वर महादेव कहां किचिर पिचिर तरीके से रहते हैं। यह मोदीफिकेशन – परिवर्तन जरूरी है। और यह परिवर्तन तभी हो सकता है जब किसी प्राइम मूवर में विराट दृष्टि हो। नरेंद्र दामोदर दास मोदी में वह विराटता परिलक्षित होती है।

मंदिर परिसर में पण्डित दुर्गेश तारे और प्रेमसागर। नेपथ्य में ज्योतिर्लिंग है।

प्रेमसागर ने आज अमरकण्टक का जल ॐकारेश्वर महादेव को चढ़ाया। साथ में दुर्गेश पण्डिज्जी थे। दुर्गेश तारे जी। उनकी फेसबुक पोस्ट मेरी बिटिया ने मुझे भेजी। दुर्गेश गुरूजी उनके यहां फुसरो-बोकारो में भी पैठ रखते हैं। प्रेमसागर ने बताया कि बड़े भव्य तरीके से मंत्रोच्चार के साथ दुर्गेश पण्डित जी ने जल चढ़वाया। दिव्य अनुभूति हुई प्रेमसागर को! जिस प्रकार से दुर्गेश जी की प्रशंसा की, उसके अनुसार कभी उनसे मिलना चाहूंगा। धर्म के मुद्दे पर नहीं, व्यक्ति के रूप में, मैत्री के लिये!

यहां ज्योतिर्लिंग पर जल अर्पण के साथ प्रेमसागर ने आंकड़े में 25 प्रतिशत यात्रा-ध्येय सम्पन्न कर लिया है। बारह में से तीन ज्योतिर्लिंग उन्होने पदयात्रा में देख लिये हैं। प्रिय-अप्रिय (लगभग प्रिय ही) अनुभव उन्हें हुये हैं। आगे भी सकुशल यात्रा सम्पन्न होगी, उसकी सम्भावना बलवती हो गयी है – मेरे जैसे शंकालू प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मन में भी यह लग गया है कि प्रेमसागर श्रद्धा के पाले में सीरियस प्लेयर हैं। यह, बावजूद इसके कि मैं हर कदम पर उनसे असंतुष्टि का भाव रखता हूं और उनकी कमियों पर कुढ़ता रहता हूं। वे कांवर यात्रा के मिशन पर हैं और मैं लेखन की कुढ़न पर हूं। दोनो अपने अपने प्रकार से सीरियस प्लेयर हैं! 😆

दिनेश गौड़ प्रेमसागर को दर्शन कराने ले गये थे।

जल अर्पण के अलावा कुछ खास काम नहीं किया प्रेमसागर ने। वन विभाग के दिनेश गौड़ उनके साथ गये थे मंदिर। उनका ध्यान रखने वाले दिनेश ही हैं ॐकारेश्वर में। कोई चुनाव चल रहे थे वहां और बाकी सभी कर्मचारी चुनाव ड्यूटी पर थे। दिनेश भी थोड़ी देर ही उनके साथ घूम सके।

31 अक्तूबर 21, सवेरे –

मोरटक्का की ओर से नर्मदा पुल

प्रेमसागर सूर्योदय के बाद माहेश्वर के लिये निकले। मैंने आठ-साढ़े आठ बजे उनसे बात की तो वे मोरटक्का पंहुचे थे। दिनेश गौड़ उन्हें छोड़ने आये थे और वे वापस जा चुके थे। माहेश्वर ॐकारेश्वर से 77 किलोमीटर दूर है। मैंने प्रेमसागर से कल भी पूछा था और आज सवेरे भी कि उनका अगला पड़ाव कहां होगा। पर प्रेमसागर को वह मालुम नहीं था। “एसडीओ साहब को फोन कर पता करता हूं।” उनका उत्तर था। पदयात्री किसी और के नियोजन और किसी और के निर्देशन पर यात्रा करे; वह भी छोटी मोटी नहीं, भारत भ्रमण की; यह अनिश्चय अटपटा लगता है। पूरी तरह असहज करने वाला। प्रेमसागर कहते हैं कि वे मनोविज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं और लोगों का मनोरथ समझने का पूरा प्रयास करते हैं। अगर ऐसा है, तो उन्हें समझ आना चाहिये कि यह अनिश्चित प्रकार की यात्रा और लोगों की बैसाखी से चलना मुझे रुचता नहीं। अगर वे गूगल मैप देखने में दक्ष नहीं हैं, और मैं जानता हूं कि वे उसका प्रयोग करते ही नहीं; तो उनके पास अच्छे और विस्तृत मैप कागज पर होने चाहियें। मुझे नहीं लगता कि वे भी उनके पास हैं। उनकी यात्रा के लिये मैं इतनी दूर बैठा अपना बहुत सा समय एटलस और गूगल मैप देखने में लगाता हूं। मुझे डिजिटल या मानसिक यात्रा के लिये वह सब करना होता है। पर प्रेमसागर वास्तविक यात्री हो कर भी वह सब नहीं करते। 😦

मेरे पास केवल मेरी पत्नीजी हैं अपनी भावना-खीझ-कुढ़न व्यक्त करने के लिये। पर वह जब भी करता हूं, वे प्रेमसागर के पक्ष में आ जाती हैं – “वह बहुत कुछ सीख गया है। बहुत कुछ कर रहा है। तुम्हारे इतना सब कहे के अनुसार अपनी प्रवृत्ति से अलग करने-सीखने की पूरी कोशिश कर रहा है। खुद तुम एक किलोमीटर नहीं चल सकते। वह नदी-पहाड़ लांघ कर नंगे पैर चले जा रहा है तो उसमें हमेशा गलतियां निकालते रहते हो। जिंदगी भर हर किसी को अपने जैसा मान कर उससे डिमाण्ड करते रहे; अब उस गरीब को पकड़ लिया है तुमने पेरने के लिये।”

बड़वाह रेस्ट हाउस परिसर का बगीचा

प्रेमसागर आज इग्यारह बजे तक बड़वाह पंहुचे और एसडीओ साहब ने कहा कि यहां उन्हे रुकना है। कल रवाना होंगे माहेश्वर के लिये। माहेश्वर 52 किमी दूर है। आज की यात्रा 16 किमी की रही। कायदे से बड़वाह एक सही मुकाम नहीं बनता। पर जो बना, सो बना।

हर हर महादेव।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “ॐकारेश्वर जल अर्पण और बड़वाह

  1. आप को हृदय से धन्यवाद अपने उत्कृष्ट शब्दों द्वारा संपूर्ण यात्रा का वर्णन किया हम आगे भी इस यात्रा के अनुभव आपके द्वारा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं और आपने मेरे लिए जो शब्द कहें उसके लिए मैं आपका हृदय से धन्यवाद करता हूं

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