29 अक्तूबर 21, रात्रि –
किसी हादसे की आशंका प्रेमसागर को शुरूआत में ही रही थी। वे मुझसे अमरकण्टक के बाद वन में छिनैती की आशंका व्यक्त कर रहे थे। मैंने सहायता के लिये प्रवीण दुबे जी से कहा। उन्होने केवल उसका ही नहीं आगे यात्रा का मुकम्मल इन्तजाम कर दिया था। और सब सही चल रहा था, पर कल हादसा हो ही गया।
कुल 9 लोग थे। तीन मोटरसाइकिल पर। प्रेमसागर के अनुसार 18-20 साल की उम्र के रहे होंगे। दो गेरुआ पहने थे, बाकी पेण्ट-शर्ट। बड़वाह के चार पांच किलोमीटर पहले अकेले चल रहे प्रेमसागर को रोका। पूछा कि पास में क्या है? कुछ गांजा-वांजा है? प्रेमसागर ने बताया कि वे साधारण कांवर यात्री हैं। नशा के नाम पर उन्हें सिर्फ चाय पीने का व्यसन है। पर वे लोग कहने से माने नहीं। प्रेम सागर का पिट्ठू (पीछे टांगने का बैग) ले कर पूरी तरह तलाशा। उसमें कपड़े के अलावा कुल जमा डेढ़ सौ रुपये थे। प्रेमसागर के अनुसार “उनकी निगाह बड़ी रकम पर थी; डेढ़ सौ को उन्होने छुद्र रकम माना होगा”। फिर उनके शरीर की तलाशी ली। उसमें कुछ नहीं मिला। उनका मोबाइल नया था; उसे ले लिया। सिम कार्ड वहीं निकाल कर फैंक दिये। धमकी अलग दिये कि किसी को रास्ते में बताया तो मार डालेंगे। तलाशी लेना, धमकी देना – यह सब जघन्य कृत्य इस घटना को छिनैती नहीं, लूट – Robbery की श्रेणी में ला देता है।
“भईया, हम बोले कि जो कुछ है, वह मेरा नहीं है। आपका है तो आप ले लीजिये। उन्होने मोबाइल ही कीमती समझा और ले कर चलते बने। बहुत देर तक तो मैं संज्ञा-शून्य रहा। उन लोगों ने कुछ और सामान नहीं लिया था तो सब संभाल कर आगे चलने लगा। शायद किसी ट्रक वाले सज्जन ने यह लूट देखी होगी। आगे बस्ती में उसकी सूचना दी होगी। तो कुछ देर बाद एक सज्जन मोटर साइकिल पर आये। अच्छे छ फुट के रहे होंगे। गोरा रंग। उन्होने पूछा कि आपके साथ लूट का हादसा हुआ है? चलिये थाने पर रिपोर्ट लिखाइये। पर मैंने उन्हें मना कर दिया। भईया पुलीस के पास जाता तो वह तहकीकात में बार बार बुलाती और मेरी कांवर यात्रा तो खण्डित हो ही जाती। दूसरे, मुझे बहुत सहायता की उम्मीद तो थी नहीं।”
इसके पहले चाय की दुकान पर प्रेमसागर रुके थे। वहां से दोपहर डेढ़ बजे उनका मेरे पास एक फोन आया था। बता रहे थे – “भईया, जो कपड़े का जूता दो दिन पहले इंदौर में लिया था, और जिसका इस्तेमाल मैंने नहीं किया था; वह आज एक गरीब वृद्ध को दे दिया। बेचारे के पास चप्पल थी जो घिस गयी थी। उसकी स्ट्रेप टूटी थी तो रस्सी बांध रखी थी। वो बता रहे थे कि उन्हें पेंशन मिलती है, पर सारे पैसे बेटा छीन कर शराब पी जाता है। मैं और कुछ नहीं दे सकता था तो वह जूता ही दे दिया। उनके नाप का निकला जूता। और मेरा क्या; मेरी तो आदत बिना चप्पल-जूता चलने की है। लेना भी होगा तो बाद में ले लूंगा।” उसके बाद मुझसे अंतरंग के रूप में अपने किये पर मेरी मुहर लगाने की अपेक्षा कर रहे थे – “भईया ठीक किया न मैने?”
वे सज्जन जो प्रेमसागर से पुलीस में रिपोर्ट लिखाने की बात कह रहे थे; प्रेमसागर को अपने साथ आगे एक मोबाइल की दुकान पर ले कर गये। शायद वह बड़वाह में रही होगी दुकान। वहां उन्होने प्रेमसागर को बारह हजार का रेडमी का नया फोन खरीद कर दिया। प्रेमसागर उनसे उनका नाम पूछने लगे और उनका एक चित्र लेना चाहते थे। पर उन सज्जन ने मना कर दिया। नाम भी नहीं बताया और चित्र भी न लेने को कहा। बोले – “आप इसे गुप्तदान ही मान कर चलिये।”
“भईया मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि महादेव क्या कर रहे हैं और क्या करा रहे हैं। उन लुटेरों से मेरी तलाशी हो गयी। मोबाइल ले लिया। किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी भी मिली और उसके बाद सज्जन मिले जो पहले वाले से बेहतर नया मोबाइल मुझे दिलाये। पहले वाला 12 (मेगा) पिक्सल का और 32 या 16 जीबी का था। यह फोन तो 64 पिक्सल का है और 64जीबी का है। और जो सज्जन मुझे दिलाये, उनका चिन्ह भी मेरे पास नहीं है। मुझे लगता है कि वे आये थे लुटेरों से मारपीट करने, निपटने के लिये।”
सिम तो उन लुटेरों ने फैक दिये थे। वे प्रेमसागर ने उठा लिये थे। नये मोबाइल में पहले अपने सभी पासवर्ड बदले। मोबाइल के फंक्शन समझने में समय लगाया। यह भी तय किया कि आपात स्थिति के लिये एक सिम खरीद कर अपना फीचर फोन भी पास में रखा करेंगे। रास्ते में उन्होने अपना लोकेशन मुझे पुन: भेजना प्रारम्भ किया।
रात में उन्होने कहा – “भईया मैंने पासवर्ड वगैरह बदल दिये हैं। पर यह लिख दीजियेगा कि मोबाइल अपहृत हो गया है उसके मिसयूज से मेरे सम्पर्क वाले सावधान रहें। क्या पता उसमें लोगों के कॉण्टेक्ट नम्बर मौजूद हों।”
प्रेमसागर से मेरी लूट के पहले बात हुई थी डेढ़ बजे पर लोकेशन अपडेट नहीं हो रही थी। अंतिम अपडेट पौने इग्यारह बजे का था। मैंने सोचा था कि शायद जंगल के कारण नेटवर्क खराब होने से लोकेशन नहीं मिल रही थी। पर दोपहर दो-तीन बजे यह हादसा हो गया होगा, यह कल्पना में भी नहीं था!
शाम लोकेशन मिलने लगी तो वे मोरटक्का (ॐकारेश्वर रोड) से गुजर रहे थे। सवा छ बजे वन विभाग के रेस्टहाउस पंहुचे होंगे। उसके बाद रात आठ बजे जब उन्होने मुझे फोन किया तब दिन की इस घटना का पता चला।
सवेरे चोरल से निकले तो बहुत प्रसन्न रहे होंगे। निकले थोड़ा देर से। सूर्योदय के बाद। जंगल में अंधेरे में निकलना उचित नहीं समझा होगा। उनसे पौने 9 बजे बात हुई। एक स्थान पर वे चाय की दुकान पर ऊंचे स्थान पर अपनी कांवर रख रहे थे चाय पीने के लिये। उसके पहले निकलते हुये रेस्ट हाउस और मुख्त्यारा-बलवाड़ा स्टेशन के पहले लेवल क्रासिंग के चित्र भेजे थे।

एक जगह उन्हें बड़ा ताल दिखा था। उसमें कमलिनी भी खिली थी। … प्रकृति का आनंद लेते चल रहे थे प्रेमसागर। आगे अनिष्ट की किसी भी सम्भावना से अनभिज्ञ और बेखबर।
पौने इग्यारह बजे प्रेमसागर के एक बैलगाड़ी हाँकते हुये अपना चित्र भी खिंचाया था और उसे भेज कर तुरंत मुझे फोन कर बताया भी। … प्रसन्नता इतनी थी कि मुझसे रीयल-टाइम आदान प्रदान कर रहे थे वे।

दोपहर डेढ़ बजे जब प्रेमसागर ने बताया था कि उन्होने अपने नये जूते उस विपन्न वृद्ध को दे दिये थे, और उसपर मुझसे अपनी सहमति की मुहर मांगी थी; तो मन में मुझे प्रेमसागर पर क्रोध ही आया था। उनकी दान देने की वृत्ति पर नहीं – पैसा प्रेमसागर का और दान प्रेमसागर का। उससे मुझे क्या आपत्ति?! बल्कि अच्छा ही था वह विपन्न वृद्ध पर द्रवित होना। पर कांवर यात्रा में चप्पत-जूते के प्रति जो झिझक का भाव प्रेमसागर त्याग नहीं पा रहे वह क्रोधित करता है।
मेरे विचार से यह कांवर यात्रा विलक्षण है और इसके नियम प्रेमसागर को ही तय करने हैं – उन जड़बुद्धि मूर्खों को नहीं जो घर में बैठ कर पौराणिक ज्ञान बघारते हैं। वे दो कौड़ी के लोग हैं। मैं उन्हें ठेंगे पर रखने का हिमायती हूं, पर प्रेमसागर “लोग क्या कहेंगे” की सोच से उबर नहीं पा रहे। इस सोच से मेरी तनिक भी सहमति नहीं है। मैं इस बारे में विस्तार से कहना चाहता हूं, पर आज की पोस्ट तो मूलत: लूट के हादसे पर है। इसलिये उस सब की चर्चा – यह यात्रा किस स्वरूप में (मेरे अनुसार) होनी चाहिये; फिर कभी करूंगा।
कल सवेरे प्रेमसागर ॐकारेशवर ज्योतिर्लिंग को जल चढ़ाने जायेंगे। इस पावन कृत्य के साथ उनकी यात्रा का चौथाई भाग सम्पन्न होगा! आज एक तरह से अनूठा दिन था। कल दूसरी तरह से विलक्षण दिन होगा।

हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
मै इस तरह की चोरी और लूट करने वालों की मानसिकता बहुत स्पेशियलाइज तरीके से जानता हू और समझता भी हू / ये सब गिरोह बंद लोगों का सामूहिक काम है / बवाल न बढ़ने के कारण और मीडिया या सरकार मे बैठे लोगों की बदनामी होकर पुलिस और सुरक्षा पर सवाल न हो इसलिए यह सब सहायता करने का नाटक किया गया है/ सत्य यह है की लुटेरे के गिरोह मे छोटे से लेकर बड़े तक सब इनवाल्व होते है जो सज्जन सहायता के लिए आए थे वे यह जानना चाहते थे की लूट कितने की हुयी और हादसे मे कितना फायदा और नुकसान का आँकलन हो सकता है/ मै इसी तरह की टप्पेबाजी लूटमार डकैती चैन तोड़कर भागने वालों पेशेवर बदमाशी करनेवाले लोगों के मुहल्ले के पास रहता हू लेकिन अच्छी बात यह है की ये सब इस तरह की वारदात हमारे मुहल्ले या इलाके मे नहीं करते है , इसके भी बहुत से छिपे हुए कारण है हलाकि ऐसी घटनाए कानपुर शहर के दूसरे इलाकों मे होती है लेकिन हमारे इलाके मे नहीं होती है /
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धन्यवाद बाजपेयी जी. मैंने इस कोण से सोचा नहीं था. आप सही हो सकते हैं कि यह पूरा का पूरा ठगी का नाटक हो!
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यात्रा की विशालता, महत्व और गहराई से वे छिनैत भले ही परिचित न हों, लेकिन मुझे वे भी महादेव के ही गण लग रहे हैं। प्रेमसागरजी को कैमरे वाला पहला मोबाइल दिलाने के लिए मैं मध्यप्रदेश में अपने किसी जानकार के साथ संपर्क कर प्रयास कर रहा था कि अगले ही दिन आपकी पोस्ट आ गई कि उन्हें नया मोबाइल मिल गया है। एक ईर्ष्या सी हुई, जिन्होंने पहला मोबाइल दिलाया था, उन पर महादेव की अधिक कृपा थी, सो बाजी मार ले गए।
अब यात्रा आगे बढ़ रही है, प्रेमसागरजी बेहतर फोटू ले पा रहे हैं, तो शायद बेहतर कैमरे की जरूरत रही होगी, अब पुराना मोबाइल किस प्रकार निस्तारित किया जाए, क्योंकि वह भी महादेव के भक्त की ही देन है। ऐसे में हल्की सी छिनैती हुई और मोबाइल चला गया, तुरंत महादेव मानो स्वयं आए और बेहतर कैमरे वाला मोबाइल थमा गए, गुप्त दान के रूप में। ऐसे में पहले मोबाइल दिलाने वाले भक्त का कांट्रीब्यूशन इंटेक्ट चलता रहेगा और मोबाइल बेहतर हो गया।
हो सकता है यात्रा के किसी पड़ाव में यह मोबाइल भी जाए और आईफोन आ जाए, या कोई फोटोग्राफर ही कुछ यात्रा पर साथ हो ले, महादेव की लीला है, हम कैसे समझ लेंगे…
हर हर महादेव…
(कल तो आपने शनि महाराज के खेमे में पांव रख दिया था, मैं वायरल में फंसा हूं सो पढ़ लिया पर कमेंट नहीं कर पाया 😊 )
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जय हो! आशा है आप वायरल से जल्दी निपट कर स्वास्थ्य लाभ कर लेंगे. वैसे किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने का प्रयास करिए. कोरोना देव अभी खत्म नहीं हुए. शनि देव से ज्यादा उनकी इज़्ज़त की दरकार है!
शुभकामनाएं।
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उफ़्फ़! अजीब विडम्बना है। बारह लोगों ने एक अकेले साधारण असहाय काँवरिया के ऊपर अपनी लूट-खसोट की वृत्ति आजमा ली। उन नराधमों को थोड़ी भी लज्जा नहीं आयी। वे गाँजा-भांग आदि की उम्मीद लेकर आये थे यह बात थोड़ी विचलित करने वाली है।
वैसे सच्चाई यह है कि प्रेमसागर जी न तो अकेले हैं, न साधारण और न ही असहाय। साक्षात् महादेव उनके साथ विविध रूपों में चल रहे हैं। कंकर में शंकर वाली अवधारणा चरितार्थ हो रही है। अच्छा है जो प्रेम जी के पास नगदी नहीं होती। उनके डिजिटल वालेट को समृद्ध रखने में हम नेटीजन की भूमिका बढ़ जाती है। उन्हें नये मोबाइल का गुप्तदान देने वाले सज्जन को नमन और हार्दिक धन्यवाद।
(सिद्धार्थ)
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जय हो! मेरे मन में भी आपके जैसे भाव आए. पर मैं चाहता हूं आगे यात्रा और बेहतर नियोजन और सतर्कता से की जाए. इसपर शायद प्रेम सागर उतने ध्यान देने वाले लगते नहीं. वे महादेव के भरोसे चलना चाहते हैं….
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पता नही यह लूट थी या स्वयं महादेव की परिकच्छा यह तो भोले शंकर ही जाने। एक ओर मोबाइल का छीना जाना दूसरे ही पल दूसरा उससे बेहतर मोबाइल का किसी अज्ञात के द्वारा दिया जाना स्वयं को अभीभुत करता है। महादेव की महिमा महादेव ही जाने।
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हाँ. पर इसे महादेव की महिमा पर ही मान कर आगे की सतर्कता और नियोजन की ओर से बेफिक्र होना मुझे ठीक नहीं लगता. और शायद इस बात को लेकर मेरे और प्रेम सागर के मत मिलते नहीं.
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लूट लिए गये मोबाइल में जो फ़ोन नम्बर रहे होंगे उनका अभाव खल जाएगा। अबतक की यात्रा में जो लोग भी प्रेम जी से मिले हैं उनसे संपर्क का सूत्र उस मोबाइल में रहा होगा। प्रेम जी ने यदि किसी कागज वाली डायरी में नम्बर नोट किए हों तो अलग बात है। यात्रा के दौरान खींची गयी यादगार तस्वीरें भी उन नराधमों ने नष्ट कर दी होंगी। ज्ञान जी के पास जो तस्वीरें सुरक्षित हैं वही रह जाएंगी।
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प्रेम सागर का कहना है कि मोबाइल पासवर्ड प्रोटेक्ट किया था. सो शायद उसका प्रयोग करने वाला उसे reformat कर ही कर पाए. पर कहा नहीं जा सकता….
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