प्रेमसागर, गुजरात, छोटा उदयपुर और पालिया

13-11-2021 दिन में –

कल प्रेमसागर रात में छोटा उदयपुर पंहुचे। यह मध्यप्रदेश से लगा गुजरात का जिला है। नर्मदा नदी के उत्तर में। उन्होने बताया कि यात्रा में गांव कम ही मिले उन्हें। जिस इलाके से गुजरे होंगे, वह जनजातीय बहुल का होना चाहिये। भील (या राथवा – भील की एक उपजाति?) इस इलाके में हैं। प्रेमसागर ने बताया कि चित्र लेने के लिये बहुत कुछ नहीं था। शांत इलाका था।

प्रेमसागर, आशुतोष पंचोली, दिलीप पवार और ओम कसेरा जी। वे मार्ग में प्रेमसागर को भोजन कराने आये।

रास्ते में अठारह किलोमीटर पहले सहयोग कालोनी, अलीराजपुर के आशुतोष पंचोली जी नाश्ता पानी ले कर प्रेमसागर के पास आये थे। आशुतोष जी के दो मित्र साथ थे। मुझे अपेक्षा-आशंका थी कि प्रेमसागर की यात्रा अनजान-गुमनाम होगी, पर वैसा नहीं है। लोग उन्हें जानने वाले हो गये हैं। पैदल चलने की तपस्या की हिंदू जन मानस में गहरे प्रभाव डालती है। चाहे-अनचाहे प्रेमसागर आईकॉन बनते जा रहे हैं। उनकी पहचान उनसे आगे चल रही है।

[रास्ते में भोजन करते प्रेमसागर और मुंडेर पर रखी उनकी कांवर]

छोटा उदयपुर के रास्ते शौच के लिये एक स्थान पर प्रेमसागर ने पूछा तो लोगों ने बताया कि सामने शौचालय है। और अगर वे खुले में जाना चाहें तो दूर तक जाना होगा। शौचालय में जाने के लिये प्रेमसागर अपने कपड़े आदि उतार रहे थे तो लोगों ने वहां जल की बाल्टी रख दी। शौच के बाद कांवरिया को स्नान करने का अनुशासन पालन करना होता है। उसके लिये एक टब में गर्मपानी का इंतजाम उन्होने कर दिया था – बिना अनुरोध किये, अपने से ही। अनजान यात्री के लिये इस तरह का लोगों का भाव रखना प्रेमसागर को रुच गया। इस घटना को मुझे ध्यान से याद कर बताया उन्होने।

“रास्ते में चाय की दुकान दो-तीन ही मिली। यहां चाय की दुकानें सवेरे सवेरे नहीं खुलतीं। दस बजे खुलती हैं।” – प्रेमसागर ने उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से गुजरात में फर्क बताया। अब तक प्रेमसागर सवेरे निकल कर चाय की दुकान तलाशा करते थे। सवेरे नौ-दस बजे तक दो जगह चाय पी चुके होते थे। अब यह सवेरे चाय न मिलने की दिक्कत उन्हें हुआ करेगी।

रात छोटा उदयपुर पंहुचने में देर हो गयी। दिन में एक जगह चाय की दुकान पर वे सो गये थे। जरा ज्यादा ही सो गये होंगे। जब अंधेरा हो गया तो कमलेश जोशी जी के साले साहब (शम्भू जी) के दो लड़के मोटर साइकिल पर उन्हें लेने तीन किलोमीटर चल कर आये। एक बेटा, अमन गिरि गोस्वामी; उनके साथ पैदल तीन किलोमीटर चल कर आया और दूसरा मोटरसाइकिल पर उनका सामान ले कर धीरे धीरे हेडलाइट से रास्ता रोशन करता चला। शम्भू जी ने उनके रात में रहने का इंतजाम सर्किट हाउस में कराया था। इतनी शानदार वीवीआईपी व्यवस्था की मैंने कल्पना नहीं की थी। शंकर भगवान कुछ ज्यादा ही अनुकम्पा कर रहे हैं अपने कांवर भगत पर!

आज सवेरे छ बजे कमलेश जी के भांजे की पत्नी अपनी बेटियों के साथ नाश्ता-खाना ले कर आयीं प्रेमसागर के लिये। वे यात्रा में पहली बार सवेरे भोजन कर यात्रा पर निकले। दस बजे प्रेमसागर से बात हुई तो वे दस किलोमीटर चल चुके थे। कुल तेईस-चौबीस किलोमीटर चलना है आज उन्हें। अगला मुकाम पालिया है।

कमलेश जोशी जी की भांजी और बच्चे। उन्होने छोटा उदयपुर से प्रस्थान के पहले प्रेमसागर को भोजन कराया।

कल और आज की प्रेमसागर की आवाभगत को देख कर मैं यह समझ नहीं पा रहा कि यह यहां के लोगों का आतिथ्य-भाव माना जाये या महादेव का चमत्कार। चमत्कार या मिराकेल जैसी चीज मैं सामान्यत: स्वीकार नहीं करना चाहता। तपस्या के प्रभाव को मानता हूं। “तब बल सृजित होता है दुनियां का खेल”; यह तो लगता है। लेकिन यात्रा जिस प्रकार से घटित हो रही है, उसमें जिस प्रकार के सरप्राइज एलीमेण्ट हैं, उसको ले कर अपनी सोच में परिवर्तन करने की जरूरत महसूस हो रही है मुझे।

एक विचार मन में आता है – “ढेरों ट्रेवलॉग पढ़ रहे हो ज्ञानदत्त, थोड़ा धर्मग्रंथ भी पढ़ो। प्रेमसागर का अंशमात्र ही लाओ, पर अपने मन में कुछ श्रद्धा लाओ। और प्रेमसागर के प्रति जो यदा-कदा हास्य-व्यंग जताते हो, वह कम करो।” मेरी पत्नीजी भी कहती हैं – “वह (प्रेमसागर) अपनी श्रद्धा ले कर चल रहा है, तुम उस सब को तर्क से देखना चाहते हो। यह बार बार तोलना-सोचना कोई भली बात नहीं। जो हो रहा है, वह तर्कबुद्धि से कदम कदम पर समझने की बजाय जैसा हो रहा है, वैसा ही स्वीकार कर चलो।”

मैं आज ब्लॉग लिखने के मूड में नहीं था। पर प्रेमसागर ने पूछा – “भईया आज का लिख दिया?” प्रेमसागर को अपेक्षा है कि मैं लिखूं। यात्रा का लिखूं और वे जिनसे मिल रहे हैं, उनके बारे में लिखूं। यह अपेक्षा क्यों हो रही है प्रेमसागर को? यह ‘अपेक्षा’ है या यूं ही पूछ लिया प्रेमसागर ने?

कहीं मैं प्रेमसागर को ज्यादा ही सीरियसली तो नहीं ले रहा?! मेरे ब्लॉग के ड्राफ्ट में कई अन्य विषयों-लोगों पर अधूरी लिखी पोस्टें कुलबुला रही हैं। उनके साथ अन्याय हो रहा है। पास में ही गौ-गंगा-गौरीशंकर योजना चल रही है। उसपर काफी कुछ मसाला है और सोचा भी है। पर लिखना शेष है। अनेक चरित्र स्केप-बुक में पड़े हैं और उनके चित्र भी हैं। पर जो हो रहा है, वह प्रेमसागर-प्रेमसागर।

खैर, जो हो रहा है, उसके साथ बहा जाये।

हर हर महादेव!

प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “प्रेमसागर, गुजरात, छोटा उदयपुर और पालिया

  1. आपके ब्लॉग को पढता चला जा रहा हूँ. दिसंबर से नवंबर तक पहुँच गया हूँ. इच्छा ही नहीं हो रही कि पढ़ना बंद किया जाए.

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  4. बुद्धि खोलने की बात होती है, पढ़ने से भी खुलती है, घूमने से भी। पहले के ऋषि मुनियों की बातें पढ़ता हूँ। सीखने के लिये घूमते थे, फिर सिखाने के लिये घूमते थे।पहले लेखक घूमते थे, अब लेख घूमते हैं नेट पर।

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    1. हाहाहा। कवि खंजन नयन की उपमा देते हैं और खंजन या किंगफिशर का अन्तर नहीं बता सकते! 😁

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  5. अदभुत, सनातन धर्म इसलिये वर्षो से जीवित है, आज के युग के श्रवण, अपनी माता के स्वस्थ्य लाभ की कामना लेकर 14 वर्षीय बालक का संकल्प, राजा राम ने अपने पिता के वचन के लिए एक क्षण में राजपाट ठुकरा कर 14 वर्ष के लिये वनवास चले गए, और यहां प्रेम सागर जी ने अपनी माता के स्वास्थ्य लाभ को लेकर लिए गए जाने अनजाने में संकल्प को पूरा करने के लिए असंभव दुर्गम द्वादश ज्योतिर्लिंग की हजारों मील की लंबी यात्रा पर नंगे पैर ही निकल गए। प्रेमसागर जी से भेंटवार्ता ओर उनकी चरणों की धूल मस्तक पर लगाकर धन्य हो गया हमारा जीवन। हमारी कामना यही है कि उनकी यात्रा के दौरान समस्त कष्ट दूर होकर भोलेनाथ उनकी यात्रा को पूर्ण करें।
    हर हर महादेव

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    1. जय हो दिलीप सिंह जी! आप अगर गुजरात में हैं और आपके बंधु लोग हैं तो कृपया प्रेम सागर के बारे में लोगों को बताएं. सम्भव है उससे उनकी आगे की यात्रा सुगम हो सके. महादेव आपका भला करेंगे, निश्चय ही.

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