मकर संक्रांति, सर्दी और मैं

सर्दी ज्यादा होने के कारण नये साल पर नये साल जैसा कुछ नहीं था। नये साल के रिजॉल्यूशन्स पर कुछ होता उससे पहले ही नया साल पुराना पड़ गया। साइकिल ले कर निकलना नहीं हो पाया। मेरे व्यायाम की साइकिल चलाना एक धुरी है। जब वही नहीं थी तो स्वास्थ के संकल्प संकल्प भर ही रह गये थे।

फिर सोचा कि नया साल मकर संक्रांति से प्रारम्भ किया जाये। सो कल से ट्रायल पर और आज से 12-14 किमी प्रतिदिन साइकिल चलाना शुरू किया है। कल; 13 जनवरी, लोहड़ी के दिन; 14 किमी से ज्यादा ही घूमा। दिन में सर्दी तेज नहीं थी, पर फिर भी हवा में कभी कभी तीखापन था। लोग सड़क पर, गंगा किनारे और खेतों में निकले दिखे। कऊड़ा के आसपास बैठे नहीं।

ऊंख की पेराई और गुड़ बनना चल रहा था। तीन जगह मुझे गुड़ के कड़ाहे चढ़े दिखे। गड़ौली के राजबली गुड़ बना रहे थे। उन्होने मुझे ऊंख देने और मशीन चला कर रस पिलाने की पेशकश भी की; पर मैंने मधुमेह का बहाना बना कर अपने को ‘रेस्क्यू’ कर लिया। सर्दी के मौसम में मैं तीन लेयर कपड़े डाटे हुये था, पर राजबली उघार बदन थे। दोपहर का समय और गुड़ के चूल्हे-कड़ाहे की गर्मी और शायद उम्र के अंतर में वैसा हुआ जा सकता था। मैंने उनसे गुड़ बनाने के सिस्टम और उसकी लागत पर चर्चा की। उन्होने मुझसे मेरे कामधाम के बारे में पूछा। रेलवे से रिटायर जान कर उन्होने कयास लगाया – आप तो बड़े बाबू (चीफ क्लर्क?) रहे होंगे।

अपने आकलन के हिसाब से मुझे बड़ी पदवी दी थी राजबली जी ने। पर मुझे खास जमा नहीं उनका आकलन। मेरे मुंह से निकल ही गया – नहीं, उससे ज्यादा ही था। बाद में अपने स्लिप ऑफ टंग पर पछतावा हुआ। अपने को शो‌ऑफ करने का क्या तुक?!

गड़ौली के राजबली गुड़ बना रहे थे। उन्होने मुझे ऊंख देने और मशीन चला कर रस पिलाने की पेशकश भी की

खेल खत्म होने के बाद शतरंज की सभी गोटियां – राजा, ऊंट और प्यादा; सब – एक डिब्बे में बंद हो जाते हैं। पर तब भी मुझे अपने को बड़े बाबू के तुलनीय रखना जमा नहीं। क्या कर लोगे जीडी?!

एक जगह सड़क किनारे भुंजईन और उसका लड़का भरसांय जला कर लोगों का चना लाई भून रहे थे। बताया कि संक्रांति के निमित्त हो रहा है वह। नये भुने चने की गंध से मन हुआ कि कुछ खरीद कर चबाया जाये; पर चूंकि वह बेचने के लिये नहीं, किसी ग्राहक के लिये था; मैंने अपने आप को मांग करने से रोका।

[एक जगह सड़क किनारे भुंजईन और उसका लड़का भरसांय जला कर लोगों का चना लाई भून रहे थे।]

आज सवेरे निकलने पर मुंह पर सर्दी लगी। सिर तो टोपी से ढंका था, मुंह नहीं। मैंने साइकिल रोक कर मुंह पर मास्क लगाया। चश्मे पर जमने वाली भाप से बचने के लिये चश्मा उतार दिया। वैसे भी साइकिल चलाने के लिये नजर ठीक ठाक ही है। दिक्कत पढ़ने में होती है। सड़क पर चलने में नहीं।

मैंने साइकिल रोक कर मुंह पर मास्क लगाया। चश्मे पर जमने वाली भाप से बचने के लिये चश्मा उतार दिया।

अपनी सेल्फी ले कर निहारा। शक्ल किसी नकाबपोश की सी लग रही थी। आंखों में अगर कुटिलता होती तो शातिर बदमाश समझ सकता था कोई भी!

दूध और किराने का सामान ले कर लौटते समय गुब्बारे और चकरी वाला दिखा। मकर संक्रांति के मेले में अपनी साइकिल खड़ा कर बेचने जा रहा था। मैंने चकरी – हवा में घूमने वाले विण्डमिल का माइक्रो संस्करण – का दाम पूछा। दस रुपया सुन कर एक देने को कहा। फिर जेब टटोली तो पता चला कि पर्स ले कर तो घर से निकला नहीं था। दूध, किराना, सब्जी वाले मोबाइल के यूपीआई से पेमेण्ट ले लेते हैं; इसलिये गांव देहात में भी पर्स और नगदी के कर चलने की आदत छूटती जा रही है।

लौटते समय गुब्बारे और चकरी वाला दिखा। मकर संक्रांति के मेले में अपनी साइकिल खड़ा कर बेचने जा रहा था।

सवेरे सवेरे उस चकरी वाले की बोहनी हो जाती, पर डिजिटल इण्डिया के फेर में वह नहीं हो पाई। शायद मुझे 100 रुपये का कैश इम्प्रेस्ट (imprest) जेब में रखना चाहिये। खत्म होने पर उसे किसी किराने, दूध या दवाई की दुकान वाले के यहां से री-कूप कर लेना चाहिये। आगे यह ध्यान रखूंगा। जेब में एक सस्ता सा पर्स जिसमें 100 रुपये और एक एटीएम कार्ड हो, वह जरूरी है।

मकर संक्रांति को मनाया इसलिये जाता है कि सूर्य इसके बाद उत्तरायण हो जाते हैं। भीष्म के महाभारत युग में ऐसा रहा होगा जब 22 दिसम्बर को सूर्य मकर में प्रवेश करता रहा होगा। अभी तो सत्तर साल में एक दिन का अंतर आता है – मेरे जन्म के पांच साल पहले मकर संक्रांति 13 जनवरी को हुआ करती थी; अब पांच सात साल में वह 15 जनवरी को होने लगेगी। इस साल भी अलग अलग पंचांगों में भ्रम बन रहा है। कोई 14 को मकर संक्रांति मना रहा है तो कोई पंद्रह जनवरी को।

वैसे मौसम परिवर्तन सूर्य के उत्तरायण होते ही नहीं हो जाता। महीने भर बाद ही वातावरण में गर्माहट आने लगती है। इसलिये 14 जनवरी के आसपास मौसम सुखद होने लगता है। … सो बड़े दिन की बधाई की बजाय संक्रांति या खिचड़ी या पोंगल की बधाई ज्यादा सार्थक है। स्वागत इसी मौसम का होना चाहिये।

आपको मकर संक्रांति शुभ हो। आशा है आज आपने नये चावल की खिचड़ी खाई होगी। हमने तो खूब हरी मटर डाल कर नये चावल की तहरी का सेवन किया है। और मजे की बात यह है कि पोस्ट लंच ग्लूकोमीटर की रीडिंग बिल्कुल नॉर्मल थी। मधुमेह में परहेज एक घटक है और तनाव रहित रहना दूसरा (और शायद ज्यादा महत्वपूर्ण) घटक। साइकिल चलाईये, चीनी से बचिये और प्रसन्न रहिये, बस।

आपको खिचड़ी की मंगलकामनायें!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “मकर संक्रांति, सर्दी और मैं

  1. चरण स्पर्श दोनों को। यहां ( हैदरगढ़ जिला बाराबंकी ) काफी कोहरा व मौसम ठंड/6°C है।
    स्वादिष्ट खिचड़ी की शुभकामनाएं।

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  2. इसमें राजबली का कोई दोष नहीं है क्योंकि हम लोगों के यहाँ शायद हमारे सपने और सोच भी परिवेश तय करता है। आप कहाँ तक का अनुमान लगा सकते हैं यह आपके आसपास का वातावरण तय करता है। अब आप क्या करते, बता सकते थे कि बड़े बाबू के बाबू के बाबू के बाबू के भी ….काफ़ी ऊपर वाला बाबू था। 😀😀

    खिचड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🙏

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  3. जीवन का सार इस एक पंक्ति में है।- खेल खत्म होने के बाद शतरंज की सभी गोटियां – राजा, ऊंट और प्यादा; सब – एक डिब्बे में बंद हो जाते हैं।

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    1. यह कह बहुत से लेते हैं पर आत्मसात करने में मेहनत और अनुशासन लगता है। 😁

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