तुलसी की झाड़ में बुलबुल ने घोंसला बनाया था और उस घोंसले में थे तीन बच्चे। अनुमान था कि छ दिन हो गये होंगे अण्डे देने के बाद। हम लोग उसकी बरही पर भोज करने की सोच रहे थे। पर बुलबुल हमारी सोच से नहीं चलती।
आज सवेरे पोर्टिको में हम चाय पीने बैठे तो कुछ अजीब लगा। बहुत देर तक देखा कि बुलबुल कीड़े चोंच में दबाये तुलसी की झाड़ में नहीं आ रही। कुछ और देर इंतजार किया, फिर पूरी सावधानी से पत्नीजी ने तुलसी की झाड़ को कुरेद कर घोंसला देखा। देखते ही सन्न रह गयीं। उनकी आवाज निकली – हाय इसमें बच्चे तो हैं ही नहीं।


घोंसला समूचा था। कोई क्षति नहीं। तुलसी की झाड़ भी यथावत थी। कोई जानवर – मसलन बिल्ली – अगर बुलबुल के बच्चे चट करता तो झाड़ टूटनी चाहिये थी और नाजुक घोंसला बिखरना चाहिये था। वैसा कुछ नहीं था। निष्कर्ष यही निकला कि बच्चे पर्याप्त बड़े हो गये थे और बुलबुल के साथ उड़ने लायक हो गये थे। बुलबुल दम्पति उन तीनों बच्चों को उड़ा ले गये।
आसपास ही होगा वह परिवार। बुलबुल के कई परिवार घर के परिसर में दिखते हैं। उनमें कुछ बच्चे भी हैं। वे खुद भी कीड़े बीन कर खाते हैं और उनके माता-पिता भी उन्हें खिलाते हैं। वे वयस्क से आकार में थोड़े ही छोटे होते हैं। अंतर तभी पता चलता है जब वे चोंच खोलते हैं। उनका मुंह अंदर से ज्यादा ही लाल दिखता है – रक्ताभ। इस तुलसी के झाड़ वाले घोंसले के बच्चे कौन से हैं; यह पता करना सम्भव नहीं है!

हमें मायूसी हुई। यह भी कोई बात हुई कि बिना बताये वह परिवार घोंसला छोड़ चला जाये? हम तो घोंसले की जगह का कोई किराया भी नहीं मांग रहे थे। अपनी पहल पर ऊपर टेण्ट भी छा दिया था कि बच्चों को धूप से परेशानी न हो। कम से कम बच्चों को हमारे सामने तो ले कर निकलती वहां से। लगता है भोर में ही वह घोंसला खाली कर दिया होगा। कल तक तो बुलबुल दम्पति बराबर उस झाड़ में आ-जा रहा था…
घर परिसर में दर्जन भर घोंसले होंगे भिन्न भिन्न पक्षियों के। पर जो लगाव इस बुलबुल के घोंसले से हुआ, वह औरों से नहीं है। अभी घोंसला जस का तस है। शायद कभी फिर इस्तेमाल का मन हो बुलबुल का। पर वैसा होगा नहीं। फिर बनाना होगा तो नये सीजन में, नये सिरे से बुलबुल अपना घोंसला बनायेगी। इस जगह पर यह दूसरी बार बुलबुल ने घोंसला बनाया है। सो जगह तो मुफीद होगी उनके लिये।
चलिये, अगला सीजन आयेगा। अगली बार फिर घोंसला बनेगा। अभी फिलहाल एक जगह ग्रेट इण्डियन रॉबिन (दहियर) को बार बार एक लकड़ी के बने घोंसले में आते जाते देख रहे हैं हम। रॉबिन को ज्यादा समय लगता है अण्डा सेने और बच्चों के बड़े होने में। अब ध्यान उनकी ओर जायेगा।
एक दो दिन बाद हम तुलसी के झाड़ पर ताना टेण्ट उतार देंगे। अब क्या जरूरत उसकी? 😦

आगे गर्मी तेज होगी, तुलसीजी को जरूरत होगी टैंट की, अगर दूसरी जगह जरूरत न हो तो यहींं पड़ा रहने दे सकते हैं।
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आप कहते हैं तो बुलबुल नहीं, तुलसी जी के लिए ही रहने दिया जाएगा. वैसे अंतिम निर्णय तो बगीचा विशेषज्ञ राम सेवक जी ही लेंगे. लगाया भी उन्होंने है. 😁
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