चारधाम यात्रा के अंतिम धाम की ओर प्रेमसागर

आठ मई 2022 –

सात मई की शाम को प्रेमसागर अगस्त्य मुनि की लॉज में डेरा डाले थे। आठ की सुबह आगे रवाना हुए। गूगल मैप के अनुसार अगस्त्य मुनि से केदार 71 किमी दूर है। इस यात्रा में तीन दिन लगने चाहिये थे। पर प्रेमसागर ने वह दूरी दो दिन में ही तय कर ली। वही नहीं वे वापस भी लौट आये, रात भर चलते हुये। गजब प्रॉवेस। गजब ऊर्जा, गजब इच्छा शक्ति।

मैंने उनके केदार होने के बारे में पहले ही लिख दिया है। अब उनके द्वारा बीच के दिनों में दिये इनपुट्स के आधार पर यह विवरण लिख रहा हूं। प्रेमसागर के साथ नित्य चर्चा के अनुसार ट्रेवलॉग लेखन की आदत छूटने के कारण तारतम्य गड़बड़ हो गया है। कभी कभी यह भी लगता है कि जब आधे से ज्यादा यात्रा का विवरण है ही नहीं तो अब पैबंद-पैचवर्क का क्या तुक है? लेकिन फिर लिखने में जुट जाता हूं।

आठ मई, चाय की दुकान

आठ मई की सुबह प्रेमसागर का फोन आया। वे तीन किलोमीटर चल चुके थे सवेरे। चाय की दुकान पड़ी थी, तो चाय पीने रुक गये थे। “यहां सब कुछ बहुत मंहगा है। इसमें इन बेचारे दुकानदारों की गलती नहीं। यही कुछ महीने हैं जिनमें इन्हें दुकान से आमदनी होती है। उसके बाद तो साल का आधा भाग बिना कोई ग्राहक के चला जाता है। अभी जिस दुकान में आया हूं, वह तीन दिन पहले खुली है। यहीं गांव के हैं दुकान वाले। लोकल। पर दुकान का सब सामान उन्हें नीचे रुद्रप्रयाग से ले कर आना होता है। पास में बाजार नहीं है। रास्ते में यात्री बहुत हैं, पर वाहनों में हैं। पैदल चलने वाला तो मुझे कोई दिखा ही नहीं आज। चाय तीस रुपये कप मिल रही है। इस कीमत के कारण मैंने पीना बहुत कम कर दिया है। दिन में एक दो कप, बस।” – प्रेमसागर ने कहा।

प्रेमसागर का इरादा गुप्तकाशी पंहुचने का था। अगस्त्य मुनि से गुप्तकाशी 26-26 किमी दूर है। “महादेव की कृपा हो जो आज गुप्तकाशी पंहुचा दें।” कांधे पर कांवर और अन्य सामान था। “अब साथ के सामान को पहले की अपेक्षा बहुत कम कर लिया है। पर फिर भी 10-15 किलो तो होगा ही। गर्म कपड़ा है – एक गर्म चद्दर और बेडशीट। गर्म जैकेट भी है।”

प्रेमसागर की कांवर और पिट्ठू – कुल वजन करीब 15 किलो होगा।

मैंने चाय की दुकान पर सामान और कांवर का चित्र ले कर भेजने को कहा। सामान जरूर 15 किलो के आसपास होगा, पर साइज में काफी था। बल्की। उसे उठा कर पहाड़ पर चढ़ना मशक्कत है। गुजरात में तो प्रेमसागर को सामान के कर पीछे पीछे चलने वाले भक्त लोग मिल गये थे; यहां सब उन्हें खुद ही करना था। व्यक्ति की पहचान इसी से होती है कि सुविधा-असुविधा सब में वह सम भाव से रहे। यहां अकेले चलने को ले कर प्रेमसागर को बहुत कुड़बुड़ाते नहीं पाया मैंने। यह जरूर कह रहे थे कि महादेव सहायता करें। किसी तरह पार लगा दें। “महादेव आज शाम तक गुप्तकाशी पंहुचा दें! आगे रास्ता ऊंचा और कठिन है।”

प्रेमसागर ने फोटो भेजते समय लिखा – अंकित नेगी; ये बच्चा ट्विटर मे देखा था मुझे , रोक कर नास्ता पानी कराया।

पर शाम तक वे गुप्तकाशी नहीं पंहुच पाये। चार किलोमीटर पहले ही मौसम खराब हो गया। आंधी और बारिश होने लगी। उन्हें रुकना पड़ा। एक लॉज में शरण मिली। लॉज के भरत सिंह जी काम आये। यहां किराया भी मामूली था – दो सौ रुपया। भोजन तो शायद भरत सिंह जी ने ही करा दिया।

रास्ते में एक हाइडल पावर प्लाण्ट पड़ा। जगह जगह बोर्ड लगे हुये थे कि जमीन धसक सकती है। कहीं कहीं तो सतत टूटटे पहाड़ दिखे। रास्ते के कष्ट और मौसम की विकटता के कारण प्रेमसागर बहुत चित्र नहीं ले सके। उनके चित्रों में वैसे भी धुंधलापन है। शायद लेंस पर कुछ जमा हो गया है। या फिर मौसम के कारण दृष्यता कम हो गयी रही हो।

नौ मई 2022 –

नौ मई को सवेरे चल कर प्रेमसागर शाम तक फाटा पंहुचे। कुल 19 किमी चले होंगे। शाम को किसी लॉज में जगह मिली। काफी डिस्काउण्ट के बाद 1200 रुपये में। प्रेमसागर के कहने से लग रहा था कि उनके पास ज्यादा आर्थिक रीसोर्स हैं नहीं। दो हजार रुपये प्रति दिन के खर्चे का भार ज्यादा ही होगा। मैं सोचता था कि पोरबंदर-राजकोट के अनुभव के बाद प्रेमसागर की रहने खाने और अन्य जरूरतों की समस्या नहीं रहेगी। मैं सही नहीं सोचता था। प्रेमसागर ने कुछ कहा नहीं, पर मैंने अपने हिसाब से कुछ पैसा उनके यूपीआई पते पर – prem12shiv@sbi – पर भेजा। इसके पहले मैंने प्रेमसागर के बारे में लिखा भर था; उनकी आर्थिक सहायता खुद करने की नहीं सोची थी। कभी 500रुपये से ज्यादा दिया नहीं था। यदा कदा उन्होने मिठाई खाने के लिये 10 रुपये मांगे थे तो मैंने 100रुपये भेजे थे। बस।

आशा करता हूं कि लोग उनकी सहायता करेंगे।

दो दिन से प्रेमसागर केदार नाथ धाम में चल रही एक अफवाह की बात कर रहे थे – कि वहां भगदड़ से 12-15 लोगों की मृत्यु हो गयी है और कपाट बंद कर दिये गये हैं। वापस आते लोग यह अफवाह सुना रहे थे। ऐसी कोई खबर कहीं मीडिया में पाई नहीं गयी। अंतत: आज नौ मई शाम को प्रेमसागर ने बताया कि शायद कोई पुलीस वाला ज्यादा कमाई के फेर में एक साथ ज्यादा लोगों को मंदिर के पास जमा कर लिया था। उसके कोई अनहोनी टालने के लिये कुछ समय के लिये मंदिर के कपाट बंद किये गये थे। … जहां मेला लगता है, लोग जुटते हैं वहां अफवाह भी जन्म लेती है। और यह संचार के त्वरित साधनों के युग में भी होता है!

10-11 मई 2022 –

दस मई को सवेरे साढ़े आठ बजे प्रेमसागर से बात हुई। वे फाटा से भोर तीन बजे ही निकल लिये थे। उनका इरादा एक ही दिन में केदारनाथ दर्शन सम्पन्न करने का था। पता नहीं यह निर्णय उन्होने क्यों किया। शायद रास्ते में चाय पानी भोजन और रहने की दरों में बेतहाशा उछाल ने उन्हें यह प्रेरित किया हो कि जल्दी से जल्दी दर्शन कर लौट जायें। या भगवान महादेव जल्दी आने को कह रहे थे। जो भी कारण हो, एक ही दिन में 36 किमी जाने और छतीस किमी वापसी की यात्रा प्रेमसागर ने सम्पन्न की। साथ में शायद बहुत सामान नहीं लिया था – फाटा में शायद कहीं रखा हो। साथ में एक पिट्ठू और गोमुख का जल लिया होगा।

सवेरे साढ़े आठ बजे वे सोन प्रयाग में थे। एक छड़ी खरीद रहे थे। आगे के ऊंचे रास्ते में बिना छड़ी और रेनकोट के चलना कठिन होता।

इसके आगे का विवरण मैंने केदारनाथ, 11वाँ ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न, प्रेमसागर नामक पोस्ट में दे रखा है। प्रेमसागर 36 किमी चल कर केदार दर्शन कर अगले दिन 11 मई को सवेरे तक फाटा वापस आ चुके थे। पहाड़ की हिमाद्रि की 72 किमी से अधिक की यात्रा एक दिन में – अपने दमखम का इतना कठिन परिचय, और संकल्प की दृढ़ता का इतना प्रमाण महादेव को शायद पहले कभी न दिया हो। महादेव निश्चय ही प्रसन्न हुये होंगे!

जय केदार! हर हर महादेव!

12-13 मई 2022-

केदार यात्रा से फाटा 11 मई को लौटे प्रेमसागर। पर फाटा नहीं रुके। वे आठ मई की शाम को गुप्तकाशी के चार किमी पहले एक लॉज में ठहरे थे। वह स्थान ऊखीमठ के सामने है। ऊखीमठ मंदाकिनी के दूसरे छोर पर है और यह नदी के इस छोर पर। वहीं के भरत सिंह जी उन्हें फाटा से सम्भवत अपने दुपहिया वाहन पर लॉज में ले आये। यहां उनका किराया भी नाम-मात्र का था और भरत सिंह जी का आतिथ्य भी। पूरे दिन और रात भर वे सोये। अगले दिन सवेरे वे रवाना हो कर किसी वाहन से रुद्रप्रयाग आ गये।

कर्णप्रयाग से चोटी का दृष्य। मैसम खराब हो रहा था।

तेरह मई को शाम के समय कर्णप्रयाग से प्रेमसागर ने बात की। सवेरे जल्दी चल कर प्रेमसागर करीब 33-34 किमी चल कर कर्णप्रयाग पंहुचे थे। रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ की पैदल यात्रा वे कर रहे हैं। केदारनाथ की यात्रा की चारधाम यात्रा एक अनुषांगिक (सबसीडियरी/एंसिलियरी) यात्रा है। वैसे भी कांवर यात्री को गंगोत्री/गोमुख से जल लेना होता है केदारनाथ को चढ़ाने के लिये। केदारनाथ के दर्शन के बाद शैव-वैष्णव एकात्मता के प्रतीक के रूप में बदरीनाथ का दर्शन उसके साथ जुड़ा है। वैसे भी प्रेमसागर अब तक यमुनोत्री गंगोत्री/गोमुख और केदार की यात्रा सम्पन्न कर चुके हैं। अब उन्हें हिमालय में बदरीनाथ दर्शन ही करने हैं।

कर्णप्रयाग – पिण्डार (दांये) और अलकनंदा का संगम

कर्णप्रयाग के कुछ चित्र भेजे। यहां पिण्डार नदी अलकनंदा में आ कर मिलती हैं। संगम है दोनो नदियों का। वहीं किसी लॉज में प्रेमसागर रुके थे। उनके भेजे चित्रों में संगमस्थल और अलकनंदा पर एक पैदल-पुल अच्छे से दीखता है। मौसम खराब था। बारिश होने लगी थी। ज्यादा चित्र वे दिन भर की यात्रा के नहीं दे पाये, पर जो दिये, वे संतोषजनक कहे जा सकते हैं।

कर्णप्रयाग संगम पर प्रेमसागर

अकेले यात्रा पर हैं प्रेमसागर। केदार यात्रा सम्पन्न करने का संतुष्टि भाव उनमें है और बदरीनाथ धाम की यात्रा सम्पन्न करने की आतुरता है। आगे 120 किमी की पैदल यात्रा है बदरीनाथ तक। कल उनका ध्येय गोपेश्वर पंहुचने का है। गोपेश्वर 37-38किमी दूर है। मैं नक्शे में देखता हूं तो रास्ते में नंदप्रयाग दिखता है, जहां अलकनंदा में नंदाकिनी नदी आ कर मिलती हैं। … इलाके में जाने कितने प्रयाग हैं – जाने कितने संगम। यह जरूर है कि प्रेमसागर के बारे में न लिखना होता तो मैं गढ़वाल के नक्शे को इतनी बारीकी से नहीं देखता। और इतनी बारीकी से प्रेमसागर ने भी नहीं देखा होगा। वे तो लोगों के बताये रास्ते पर निकल पड़ते हैं। अपने पैरों, अपनी कांवर और अपने वेश का सहारा लिये हुये। प्रेमसागर पहाड़ के लोगों से प्रभावित हैं – “भईया वे सब बहुत सरल हैं और सहायता करना चाहते हैं। उनकी भी मजबूरी है। कमाई के लिये यही कुछ महीने उन्हें मिलते हैं। इस कमाई से ही उन्हें साल भर का खर्च चलाना होता है।”

मेरा इस यात्रा के दौरान प्रेमसागर से सम्पर्क उतना रीयल टाइम नहीं है। मैं पहले की तरह उन्हें बार बार फोन नहीं करता। हर कदम पर उनकी यात्रा ट्रैक नहीं करता। वे दिन में एक बार फीडबैक देते हैं। वही मुख्यत: सम्पर्क है। एक ट्रेवलॉग लिखने के लिये यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। तनिक भी नहीं। पर यही चल रहा है। जब तक मैं यात्रा के विषय में चार्ज हूँगा, तब तक हिमालय की यह यात्रा सम्पन्न हो जायेगी। बदरीनाथ दर्शन में दो-चार दिन भर ही लगेंगे। उसके बाद हेमकुण्ट साहिब या फूलों की घाटी तो प्रेमसागर की यात्रा में होगा नहीं।

खैर, देखें आगे की यात्रा कैसे होती है!

हर हर महादेव!

Advertisement

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: