टिल्लू अर्थात नागेंद्र कुमार दुबे। गांव के शुरुआत पर – जहाँ गांव की मुख्य सड़क नेशनल हाईवे से जुड़ती है; टिल्लू ने अमूल के दूध और अन्य उत्पादों का आउटलेट खोला है।
गांव में जब मैं रहने आया था तो दूध का विकल्प केवल गाय-गोरू पालने वालों से दूध खरीदना भर था। अधिकतर ग्वाले या बाल्टा वाले (मिल्क कलेक्टर) दूध में कितना पानी मिलाते हैं, उसपर कोई निश्चित मत बन नहीं पाता था। दूध में पानी की शिकायत करने पर दो तीन दिन अपेक्षाकृत दूध बेहतर होता था। फिर उसकी तासीर बदलने लगती थी और सप्ताह भर में पुन: शिकायत करने की स्थितियाँ बनने लगती थीं।

अब टिल्लू का अमूल का आउटलेट हो जाने पर वह तनाव खत्म हो गया है। अमूल के पाउच में गुणवत्ता वही जो अमूल विज्ञापित करता है। दूध की मात्रा का भी कोई शक नहीं। मैंने पाया है कि अन्य ब्राण्डों की बजाय अमूल के आधा किलो के पैकेट में मात्रा भी 15मिली ज्यादा ही होती है। फैट कण्टेण्ट भी जितना लिखा है उसके अनुसार ही होता है। इस मानकीकृत उपलब्धता के हिसाब से; टिल्लू का उपक्रम गांव के शहरी रूपांतरण की दिशा में एक मील का पत्थर है।
गांव – विक्रमपुर – एक तरह से मालगुड़ी जैसा है। गांव में रेलवे स्टेशन है। उनींदा सा रेलवे स्टेशन। दो जोड़ा पैसेंजर ट्रेने यहां रुकती हैं। लेवल क्रासिंग गेट जो गांव के उत्तरी भाग को दक्षिणी भाग से जोड़ता है, पर उपस्थित होने वाला गेटमैन गांव के लिये महत्वपूर्ण सरकारी मुलाजिम है। रेलवे स्टेशन के पास बीस-पचीस दुकानों की बजरिया है जो आसपास के दस पंद्रह गांवों के ट्रेन पकड़ने वाले लोगों को केटर करती है। उस बजरिया के अलावा भी इधर उधर छिटकी पांच सात किराना की दुकानें हैं। उनमें टिल्लू की अमूल दूध की दुकान एक नया आयाम देती है। यह लोगों के रहन सहन में परिवर्तन लायेगी और उनकी सोच में भी।
मैं टिल्लू को बताता हूं कि अमूल का दूध अगर 6% फैट वाला है तो वह गाय का नहीं भैंस का है। भैंस का दूध अमूमन ए2 गुणवत्ता का है। उसमें भारत के देसी पशुओं के दूध के गुण हैं। विलायती पशुओं का ए1 वाला दूध नहीं (जिससे अनेक बीमारियों, मसलन डिमेंशिया की समस्या की सम्भावनायें प्रबल होती हैं)। मैं टिल्लू को यह भी कहता हूं कि अगर वह दूध के व्यवसाय में आया है तो दूध के बारे में उसे सामान्य आदमी से कई गुना ज्यादा ज्ञान अर्जन करना चाहिये। अब तक वह एक बाभन नेता जैसा सोचता-आचरण करता रहा है; अब उसे एक बनिया की तरह सोचना चाहिये।
एक सीनियर सिटिजन को प्रवचन देने की लत होती है। मुझमें वह शायद बढ़ती जा रही है। टिल्लू उस लत को पोषित करने वाला एक केप्टिव ऑडियेंस हो गया है। बेचारा! 😆

गांव में पंचायत है। ग्रामप्रधान है। दो तीन पूर्व ग्रामप्रधान हैं। सो उनके होते गंवई राजनीति की खासी उर्वर भूमि है। … मालगुड़ी जैसा है, पर गांव में स्मार्टफोन, ह्वाट्सएप्प, यूटूब और फेसबुक के प्रचार प्रसार से गांव ग्लोकल (ग्लोबल-लोकल) भी बनता जा रहा है। टिल्लू का आउटलेट उसको तेजी से और ग्लोकल बनायेगा।
टिल्लू, नागेंद्र कुमार, भाजपा का मण्डल स्तरीय पदाधिकारी (मण्डल उपाध्यक्ष) भी है। पिछली बार उसे परधानी का चुनाव भी लड़ना था। पर एन मौके पर यह घोषणा हुई कि परधानी की सीट आरक्षित सूची में चली गयी है। नागेंद्र की सारी मेहनत बेकार गयी। फिर भी उसका परिणाम यह हुआ कि उसने समाज के सभी वर्गों के बीच अपनी साख बना ली। अब जब टिल्लू ने अमूल का आउटलेट खोला है, वह साख बड़ी सहायक प्रमाणित हो रही है। नेटवर्किंग का बिक्री के लिये दोहन सम्भव है।
टिल्लू की दुकान पर सवेरे से ही कुर्सियों पर बैठ कर वार्ता-गपबाजी करते लोग देखे जा सकते हैं। पहले पहल मुझे लगा कि अगर टिल्लू यही चौपाल का मॉडरेटर ही बना रहा तो बिक्री क्या खाक होगी! पर टिल्लू ने बताया कि ये लोग न केवल दुकान से सामान खरीद रहे हैं, वरन आसपास प्रचार भी कर रहे हैं। परिणाम है कि बिक्री में आशातीत बढ़त हो रही है।
खपत बढ़ने के साथ साथ सुविधायें बढ़ाने की सोच भी बन रही है। नागेंद्र ने बताया कि जल्दी ही वह एक और डीप फ्रीजर खरीदने वाला है। पांच सौ लीटर की केपेसिटी वाला। उसके लिये बयाना दे दिया है। वह आने पर और भी आईटम रखेगा अपने आउटलेट पर। आईसक्रीम के एक डिस्ट्रीब्यूटर से नित्य सप्लाई तय तमाम कर ली है। टिल्लू सरसों की थोक खरीद कर एक छोटा एक्स्पेलर भी लगा कर तेल पेरने का काम भी करेगा। लोगों को शुद्ध कच्ची घानी का तेल भी मिलने लगेगा। मैं जितनी देर टिल्लू के यहां खड़ा होता हूं, उसकी नयी नयी योजनायें सुनने में मिलती हैं। उन योजनाओं में मैं अपने भी इनपुट्स देने का लोभ नहीं रोक पाता!
इस गांव का मालगुडीत्व मैंने ज्यादा टटोला नहीं। टिल्लू के माध्यम से उसे जानने-टटोलने का प्रयास करूंगा। फिलहाल तो यही आशा है कि टिल्लू हर रोज यही खबर दे – “फुफ्फा, बिक्री बढ़त बा। कालि संझा दूध खतम होई ग। इही लिये आज एक क्रेट अऊर लिहे हई! (फूफा जी, बिक्री बढ़ रही है। कल शाम दूध खत्म हो गया। इस लिये आज एक क्रेट और बढ़ाया है सप्लाई में)।”
टिल्लू को बहुत शुभकामनायें!
गावों की यही आने वाली पीढ़ी करेगी और फायदा उठाएगी/ यही सब ग्रामीण आँचल मे हो रहा है/ डिमांड भी यही है/शहर के लोग अब गावों मे इसलिए जाना चाहते है की वे ग्रामीण आँचल मे जाकर प्रकृति के बीच मे रहें और उसके लिए खर्च करने के लिए भी तैयार हैं/सरकार भी योजना बना रही है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे दिल्ली के नजदीक के गावों मे यह शुरू हो चुका है। जिसमे गांवों मे रहने खाने पीने की सब सुविधाये घर का मालिक देता है और उसके बदले मे लोग पेमेंट करते है/
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यह तो पेइंग गेस्ट जैसा कुछ सिस्टम हुआ। यहां भी यह सम्भव है। बनारस यहाँ से एक घण्टे की दूरी पर है और लोग यहां रहते हुए बनारस में काम कर सकते हैं। कई ग्रामीण तो रोज आते जाते ही हैं।
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रवींद्रनाथ दुबे, फेसबुक पेज पर –
ग्राहकों के आशीर्वाद से सब अच्छा ही होगा। हम सब की शुभेच्छा तो साथ में है ही। व्यापारे वसति लक्ष्मी।
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शेखर व्यास, फेसबुक पेज पर –
प्रगति पर हैं ये …संभवतः अन्य में भी प्रेरणा का संचार हो । एक बात और …ससुराल के गांव में बसने से गांव फूफा (फुफ्फा) हो गए आप 🙏🏻तो आपकी राय की कद्र तो होगी ही भतीजे को …अपना ले तो सार्थक प्रगति कर लेंगे …आखिर इतनी सोची विचारी राय कितनों को मुफ्त मिलती है 😂😂
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वाह! 👌
वैसे उसमें मेरे ख्याल से शिवपाल गंज भी है और मालगुडी भी. लिखने वाले को श्रीलाल शुक्ल और आर के नारायण के बीच तालमेल बना कर लिखना है. 😊
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जब आपने गांव का परिचय देना शुरू किया तो उससे शिवपालगंज की खुशबू आने लगी थी।
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Sir Tullu ka outlet avam apki usko guidance will definitely improve the performance
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धन्यवाद. टिल्लू कर्मठ है. सरल है. बस उसे वाणिज्य की समझ अपने में विकसित करनी है… 😊
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