स्टीम इंजन युग के नागेश्वर नाथ

मैंने रेलवे ज्वाइन की 1984 में। स्टीम इंजन और फट्टे वाले सेमाफोर सिगनल तब भी काम कर रहे थे। बम्बई-दिल्ली ट्रंक रूट पर भी सवारी गाड़ी स्टीम इंजन से चल रही थी। उस रूट पर कुछ हिस्से इकहरी लाइन वाले भी थे और काफी सारा रूट सेमाफोर सिगनल वाला था। तब मेरे पास कैमरा नहीं हुआ करता था, नियमित डायरी लेखन का अनुशासन भी नहीं था। सो यादों में बहुत कुछ धुंधला हो गया है। पर बहुत कुछ अब भी शेष है।

कभी कभी लगता है कि अगर संस्मरण लिखे जायें तो वे यद्यपि ‘लगभग’ सही होंगे पर उनमें तथ्यों की गलती की गुंजाइश होगी ही। और कभी लगता है कि उनको लिखने में खुद जीडी की बजाय एक काल्पनिक पात्र गढ़ कर लिखा जा सकता है। तब यह बंधन भी नहीं होगा कि तथ्य पूरी तरह सही नहीं हैं। मैंने एक नाम भी सोचा है – नागेश्वर नाथ। एक दस्तावेज बने – नागेश्वर नाथ की डायरी। या इसी तरह का कुछ! पर वह अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पाया है। नागेश्वर नाथ अभी मन में है। हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की तरह वह “व्योमकेश शास्त्री” जैसा जीवंत पात्र नहीं बन सके हैं।

नागेश्वर नाथ अगर बने तो वह सन 2000 के पहले के रेल युग के ब्लॉगर होंगे। ब्लॉगर युग के पहले के ब्लॉगर। वह, जिनके पास कलम भर होगी, चित्र नहीं। वह कभी कभी दूसरों के चित्रों का उद्धरण देते हुये प्रयोग करेंगे।


एक दिन मेग्जटर एप्प पर यूं ही लेंस पत्रिका के पुराने अंक खंगाल रहा था तो फरवरी 2022 के ईश्यू में कवर पेज पर शरबत गुला नामक बालिका का चित्र दिखा। यह चित्र स्टीव मेक-करी द्वारा 1984 में लिया गया था। स्टीव मेक-करी नेशनल ज्योग्राफिक के कालजयी फोटोग्राफर हैं, जिनका अफगानी बालिका का चित्र बहुत से लोगों के जेहन में होगा। इसी चित्र नें स्टीव को जगत प्रसिद्ध बना दिया था। उसी कालखण्ड में स्टीव भारत भी आये थे और यहां के कई जानदार चित्र भी उपलब्ध हैं।

लेंस पत्रिका में स्टीव मेक-करी के साक्षात्कार का चित्र। स्क्रीनशॉट में बांयी ओर अफगानी बालिका शरबत गुला का चित्र है।

वे 1980+ के समय में भारत में थे और उनका 1983 में खींचा एक स्टीम इंजन का चित्र भी पत्रिका में है। ताजमहल के बैकग्राउण्ड में स्टीम इंजन का वह चित्र नागेश्वर नाथ जी की पुरानी यादेंं कुरेद गया। जिस कालखंड में स्टीव ने चित्र खींचा होगा, नागेश्वर नाथ उसी के आसपास (1984-85 में) रेलवे के प्रोबेशनरी अफसर थे। उनकी रेलवे यातायात सेवा की ट्रेनिंग लगभग आधी सम्पन्न हो चुकी थी और फील्ड ट्रेनिग के लिये वे आगरा में थे। ईदगाह स्टेशन के पास के रेस्ट हाउस में वे रह रहे थे। वहां से वे आगरा फोर्ट स्टेशन पर किसी इंजन में बैठ कर या कभी कभी पैदल ही जाया करते थे। स्टीम इंजन के शेड में, आगरा फोर्ट, ईदगाह और जमुना ब्रिज के स्टेशनों और रेलवे यार्डों में उन्होने अकेले बहुत फील्ड ट्रेनिंग सम्पन्न की थी। अपनी ट्रेनिग को कुछ ज्यादा ही गम्भीरता से लेने वाले व्यक्ति थे वे।

स्टीव मेक-करी का 1983 का आगरा का एक चित्र। साभार लेंस पत्रिका

स्टीव मेक-करी के चित्र जैसी याद नागेश्वर नाथ जी के जेहन में ताजा है! ट्रेनिग के दौरान मिले पात्रों के नाम लगभग भूल चुके हैं नागेश्वर। पर चूंकि जगहों को उसने पैदल नापा है और कई कई बार वहां से गुजरे हैं; उस सबकी यादें भूली नहीं हैं। अभी भी वह तेज सांस लेते हैं तो नाक में कोयले और भाप की गंध तथा कानों में स्टीम इंजन की निकलती छक-छूं की आवाज गूंजती है। कभी कभी वे इस अंदाज में आंख मलते हैंं मानो स्टीम इंजन के उड़ते कोयले की किरकिरी आंख में पड़ गयी हो।

बावजूद इसके कि नागेश्वर मेरे बारे में बहुत सहृदय नहीं हैं और वे बार बार मुझे कोंचते रहते हैं कि मैं मेहनत कर नई ऊंचाइयां प्राप्त करूं। इस प्रक्रिया में मेरे प्रति वे निर्दयी भी हो जाते हैं; पर वे हैं सरल, शरीफ और ईमानदार आदमी। दूसरी बात जो मुझे उनके समीप ले जाती है वह उनका लिखने का स्टाइल है। करीब करीब वह मेरे जैसा ही है।


आगे, नागेश्वर नाथ कभी कभी ब्लॉग पर अपनी गेस्ट पोस्ट लिखा करेंगे। वे मुझसे लगभग रोज मिलते हैं। धारीदार नेकर और एक टीशर्ट पहने वह कहते हैं कि इससे पहले कि यादें धुंधली हो जायें; उन्हें लिख देना चाहते हैं। उनके फाउण्टेन पेन की स्याही खतम हो गयी है। बॉल प्वाइण्ट पेन से वे लिखना नहीं चाहते। कभी वह कलम उन्हे रुची नहीं। एक इंकपॉट मंगवाई है। तब, मन हुआ तो वे थोड़ा बहुत लिखा करेंगे।

मैं बहुत सोच कर नागेश्वर नाथ जी के प्रति बड़े आदर से लिख रहा हूं। नागेश्वर गांवदेहात के एक विपन्न वातावरण से आगे बढ़े और उन्होने जो कुछ हासिल किया वह उनके मन माफिक भले न हो, लाखों लोगों से कहीं बेहतर है। बावजूद इसके कि नागेश्वर मेरे बारे में बहुत सहृदय नहीं हैं और वे बार बार मुझे कोंचते रहते हैं कि मैं मेहनत कर नई ऊंचाइयां प्राप्त करूं। इस प्रक्रिया में मेरे प्रति वे निर्दयी भी हो जाते हैं; पर वे हैं सरल, शरीफ और ईमानदार आदमी। दूसरी बात जो मुझे उनके समीप ले जाती है वह उनका लिखने का स्टाइल है। करीब करीब वह मेरे जैसा ही है। उनका सोचने का नजरिया मुझसे कुछ अलहदा है; पर वे सिनिकल-सठियाये नहीं हैं।

आगे ब्लॉग पर कभी कभी आया करेंगे नागेश्वर! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “स्टीम इंजन युग के नागेश्वर नाथ

  1. यह तो क्लासिक, करत करत अभ्यास ते, ज्ञानदत्त होत नागेश्वर हो गया. नागेश्वर का स्वागत है!

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  2. नागेश्वर जी के स्वागत के लिए माला मंगवा ली है। फूल न मुरझा जाएं, आप मेरी ओर से उन्हें याद करवाते रहें।आभार और धन्यवाद।

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