पाणिनि बाबा का आईना

वे भले लोग हैं। तीन तालिये भद्रजन। मुझे लगता था कि मेरे वाम-दक्षिण खाई खोदने के ट्रैप में वे कूदेंगे, पर वैसा हुआ नहीं। शायद मेरी उम्र अगर बीस साल कम रही होती और मैं पत्रकारिता के स्पेस में उन धाकड़ लोगों के लिये एक चैलेंजर होता तो मेरे द्वारा ‘टीज’ करने के उपक्रम से कुछ बम पटाक होता।

मेरी उम्र का असर था कि कोई स्पर्धा थी ही नहीं। कोई बम पटाक हुआ नहीं उनके पिछले पॉडकास्ट में। सैड! :lol:

तीन ताल का संदर्भित पॉडकास्ट

आपस में वे यदा कदा कुश्ती या नूराँ कुश्ती कर लेते हैं – मानसिक स्तर पर। पर वे तीन तालिये अपने श्रोता वर्ग को बड़े दुलार कर रखते हैं। लिहाजा श्रोता गदगद रहते हैं। हैगियोग्राफिकल चिठ्ठियां लिखते हैं। एक गण्डाबंद फैनक्लब बन गया है तीन तालियों का। वह क्लब बढ़ता ही जा रहा है।


तीन ताल पर ब्लॉग के कुछ लिंक –

ट्विटर स्पेसेज पर आजतक रेडियो वालों का बेबाक बुधवार

पॉडकास्ट गढ़ते तीन तालिये

कमलेश किशोर और आजतक रेडियो

तीन तालियों पर मेरी पत्नीजी के विचार

सावन में तीन ताल का लाल तिरपाल


श्रोता-नर्चरिंग बहुत टॉप क्लास की है टाऊ-बीटा-सिग्मा (τ, β, σ -ताऊ, बाबा और सरदार) की। जितनी मेहनत वे अपने कण्टेण्ट तराशने में करते हैं, उससे कम श्रोताओं को साधने में नहीं करते। चिठ्ठियों का बोरा खोलने पर बोलते बांचते कुलदीप मिसिर हाँफ ही जाते होंगे। चिठ्ठियों के बोरे में से क्या लें, क्या छोड़ें और कितना लपेंटें! :-D


वाम और दक्षिण सापेक्ष्य फ्रेम ऑफ रेफरेंस ही है। मेरे दक्खिन का कोई जीव मिल जायेगा तो मैं वाम पंथी हो जाऊंगा उसके सापेक्ष्य। …. पाणिनि एक कदम आगे जा कर कह सकते थे कि अनंत में तो (-) इन्फिनिटी और (+) इन्फीनिटी एक ही हो जाते हैं। धुर वाम और धुर दक्षिण का भेद अंतत खत्म ही हो जाता है।

पिछले सनीचर को ताऊ ने कहा कि अपने जूते टांगने के अवसर पर वे मेरे जैसा रिटायरमेण्ट पसंद करेंगे। एक छियासठ प्लस के आदमी में शायद यही एक घटक आउट ऑफ बॉक्स नजर आया होगा उन्हें, जिसकी प्रशंसा की जा सके। वैसे मैं खुद अपने व्युत्क्रमित पलायन – रीवर्स माइग्रेशन को अब क्रिटिकली लेने लगा हूं। पुनर्विचार की गुंजाइश बनती है। इसलिये जब कमलेश किशोर इस तरह की जिंदगी की सोचें तो मैं उन्हें अपने क्रिटिकल इनपुट्स देना चाहूंगा।

पाणिनि बाबा

असल बात पाणिनि बाबा ने कही। उन्होने बड़े महीन तरीके से मेरे द्वारा सतत उनके वामपंथ पर कोंचते रहने को एक आईना दिखाया। उनके अनुसार वाम और दक्षिण सापेक्ष्य धारणा ही है। मेरे दक्षिण का कोई जीव मिल जायेगा तो मैं वाम पंथी हो जाऊंगा उसके सापेक्ष्य। …. पाणिनि एक कदम आगे जा कर कह सकते थे कि अनंत में तो (-) इन्फिनिटी और (+) इन्फीनिटी एक ही हो जाते हैं। धुर वाम और धुर दक्षिण का भेद अंतत खत्म ही हो जाता है। वृहदारण्यक के “पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते” टाइप कुछ ठेल सकते थे। बाबा ऐसा करने में खूब कुशल हैं!

और वैसा मैंने अनुभव भी किया है। शिव सेना के लुंगाड़ों से एक बार सामना हो चुका है। उनका बिना अप्वाइण्टमेण्ट मेरे चेम्बर में घुस आना; दो कौड़ी के खर्बोटहे एमएलए का मुझ पर रौब गांठने का प्रयास और उनको बाहर करने के लिये प्रोटेक्शन फोर्स बुलाने का आचरण मैं कर चुका हूं। वह तो भला हो एक मराठी अफसर का जो मराठी में आपला-आपला बोल कर उस शिवजी की बारात को साध कर बाहर ले गये, वर्ना उस दिन मैं उन उदग्र दक्षिण पंथियों के सामने वामपंथ की दीक्षा लेते लेते बचा था! और तब से उदग्र शिवसैनिक या बजरंगिये मुझे सुहाते नहीं। :lol:

वह तो एक स्नेहपूर्ण समीकरण बना लिया है पाणिनि पण्डित से कि पिन चुभाने में मजा आता है। वर्ना बाबा को सुनना और रामचंद्र गुहा को पढ़ना – घोर वैचारिक मतभेद के बावजूद – मुझे प्रिय है। और इस उम्र में अगर कुछ नया सीखना चाहूंगा तो वह पाणिनि पण्डित के साथ चार पांच दिन रह कर शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाना होगा। पाणिनि पण्डित यहां हाईवे पर बनारस और प्रयाग के बीच मेरे साथ ज्वाइण्ट वेंचर में एक शुद्ध शाकाहारी भोजनालय खोलना चाहें तो मेरे पास जमीन भी है और उनकी साख पर कुछ पूंजी भी लगाने को तैयार भी हूं। क्या ख्याल है पाणिनि? हम लोग भोजनालय भी चलायेंगे और गंगा किनारे बैठ पॉडकास्ट भी किया करेंगे! :-)

हम लोग भोजनालय भी चलायेंगे और गंगा किनारे बैठ पॉडकास्ट भी किया करेंगे! – इस जगह बैठ कर होगा पॉडकास्ट!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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