महराजगंज कस्बे के बाजार में नुक्कड़ पर दुकान है सिकंदर सोनकर की। बिल्डिंग में जो दुकान है उसमें तो उसका गोदाम रखा है। उसके सामने वह टेबल लगा कर, बल्ली गाड़ तिरपाल की छत दे कर वह दुकान सजाता है जिसमें फल सजे रहते हैं और जहां वह खड़े हो कर या छोटे से तख्त पर बैठ कर बिक्री करता है। दुकान के अलावा एक फल का ठेला है जो बाजार में ही मौके की पोजीशन पर खड़ा होता है।
दुकान दो दशक पहले सिकंदर के बड़े भाई ने खोली और अब दुकान पर सिकंदर बैठता है। बड़े भाई ठेले पर रहते हैं। पीछे की बिल्डिंग दुबेजी की है। उनको पांच हजार महीना किराया देता है वह गोदाम के लिए।
“दुकान आगे बढ़ा रखी है, पुलीस वाले अपना महीने का किराया नहीं लेते?” – मैने पूछा।
“नहीं। दुकान डिवाइडर से पीछे है, इसलिये उनका कोई किराया नहीं होता। वैसे दीवान जी, हवलदार साहब कभी जूस पी लें, एक आध केला-सेब खा लें, वह तो कोई खास बात नहीं।” – सिकंदर को पुलीस वालों से कोई तकलीफ नहीं।
बढ़िया है, जब छोटे दुकानदार को पुलीस वाले या लोअर ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्ट आचरण या बात-बेबात परेशान करने से शिकायत न हो तो ही बाजार चल सकता है। मुझे प्रसन्नता हुई इस पूर्वांचल में सिकंदर की बात सुन कर। अन्यथा मुझे लगता है कि बाबा आदित्यनाथ भले ही कितना चिमटा बजा लें; घटिया नौकरशाही इस इलाके का न तो मार्केट विकसित करने देगी और न कोई औद्योगिक घराना इस इलाके की ओर झांकेगा। काश मेरी धारणा सिकंदर जैसे व्यक्ति से बातचीत के माध्यम से बदले! 😀
सिकंदर से फल खरीद कर मैं कोई क्यू.आर. कोड तलाशता हूं जिसपर पेमेण्ट किया जा सके। उसकी दुकान पर पेटीयम, गूगल पे, फोन पे – सब के प्लास्टिक के छोटे बोर्ड लगे हैं। पर सिकंदर मेरे सामने अमेजन-पे वाला स्कैन करने के लिये सरकाता है। पेमेण्ट करने पर सिकंदर ने कहा – आप कुछ और पैसा दे सकते हैं? हजार, दो हजार, पांच हजार दे दीजिये।
मुझे अटपटा लगा। उसने अपनी बात समझाई – “मुझे किसी को पेमेण्ट करना है। ऑनलाइन। खाते में पैसे नहीं हैं। बैंक जा कर कैश जमा करने का समय नहीं निकलता। आप मेरे खाते में डाल देंगे तो बैठे बैठे पेमेण्ट कर दूंगा। आपको मैं अभी कैश देता हूं।”
सिकंदर ने अपना पर्स खोला और पांच सौ के नोट गिनने शुरू किये।
मेरा भी खर्च आजकल यूपीआई के माध्यम से होता है। लगभग 90 प्रतिशत खर्च बिना करेंसी हाथ लगाये होता है। फिर भी, सिकंदर से आदान प्रदान रोचक लगा था और मैने उसकी मांग अनुसार यूपीआई पेमेण्ट कर दिया। उसने तुरंत मुझे नोट थमा दिये।
बाबा आदित्यनाथ भले ही कितना चिमटा बजा लें; घटिया नौकरशाही इस इलाके का न तो मार्केट विकसित करने देगी और न कोई औद्योगिक घराना इस इलाके की ओर झांकेगा। काश मेरी धारणा सिकंदर जैसे व्यक्ति से बातचीत के माध्यम से बदले! 😀
ज्यादातर दुकानदार अभी भी ऑनलाइन लेन देन से झिझकते हैं इस कस्बे में। सिंकू सोनकर से सब्जी लेना मैने बंद इसलिये कर दिया कि वह पेटीयम से पेमेण्ट लेने से मना कर रहा था। अब उत्तरोत्तर दुकानदार स्पीकर वाला गैजेट लगवा लिये हैं जिससे पेमेण्ट की जानकारी मोबाइल में देखने की दरकार नहीं होती। वह लगाने से उनका यूपीआई पेमेण्ट में यकीन बढ़ा है। पर अभी भी एक दो दुकानदार कहते हैं – जाने क्या बवाल आ गया है यह। … वे हार्ड कैश पसंद करते हैं।

उन हार्ड-कैशियों के मुकाबले दूसरे छोर पर लगता है सिकंदर। उसने बताया कि पिछले चार साल से वह नेट-बैंकिंग और क्यू.आर. कोड के माध्यम से लेन देन कर रहा है। दिन भर का लगभग 15-20 हजार का ट्रांजेक्शन ऑनलाइन होता है। अर्थात महीने में पांच छ लाख का। … जिऊतिया (वह पर्व जिसमें महिलायें ढेर सारे फल खरीद कर ले जाती हैं जीवित-पुत्र-व्रत-पूजन के लिये) के अगले दिन उसने लेनदारों को डेढ़ लाख के आसपास यूपीआई से पेमेण्ट किया था और ज्यादा लेनदेन होने के कारण और आगे पेमेण्ट ससपेण्ड कर दिया था यूपीआई ने। अगले दिन गूगल-फोन-अमेजन की सर्विस वाला आया तो रिस्टोर किया। वैसे भी शायद एक दिन भर के लिये ट्रांजेक्शन ससपेण्ड होते हैं।
कुल मिला कर कस्बाई स्तर पर यूपीआई पेमेण्ट विधा की सफलता की कहानी का सटीक उदाहरण है सिकंदर सोनकर। आज शेविंग कर चेक वाली चमकदार कमीज पहने, दुकान के प्लेटफार्म पर वज्रासन लगाये बैठा वह बहुत स्मार्ट लग रहा था। मैं चित्र लेने लगा तो उसकी हंसी बहुत अच्छी लगी। सिकंदर को उसके कारोबार के लिये शुभकामनायें! 🙂
Sir Baba k samay m sirf juise tak hi simit h achchha h .Digital transaction nayi pidhi khoob kar rahi h gaon dehat bhi upgrade ho rahe h
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