ऑटो वाला लेवल क्रॉसिंग के पास अपना ऑटो खड़ा किये था। सात महिलायें बैठ चुकी थीं। आठवीं उससे कुछ मोल भाव कर रही थी। एक छोटी लड़की, करीब बारह साल की अपनी बस्ती से चिल्लाती हुई आ रही थी – हरे, रोके रह्य! (अरे रुके रहना)।
यह ऑटो की सवारियां विक्रमपुर के चमरऊट से किरियात जा रही थीं। किरियात अर्थात कछवां और चुनार के बीच गंगा का उत्तरी किनारा जहां जमीन समतल है और बारिश में बाढ़ की सम्भावना बन जाती है। उसमें इमारतें और बसावट बहुत कम है। लोग वहां सब्जी उगाने का काम करते हैं।
मुझे बताया गया कि अभी ये सभी महिलायें मिर्च की फसल की निराई करने जा रही हैं। दिन भर की मजूरी 150रुपये है। उसमें तीस रुपया वाहन का कटता है। उनके हाथ 120रु दिहाड़ी आता है।
आसपास के गांवों से साल भर (सिवाय तेज बारिश का मौसम छोड़ कर) टेम्पो, ऑटो, मैजिक या छोटे वाहनों में लद कर महिलायें किरियात के खेतों में काम करने जाती हैं। ये सभी खेतिहर मजूर हैं। इनके आदमी बेलदारी, मिस्त्री या बुनकर का काम करते हैं। कुछ तो बम्बई जा कर अपना भाग्य अजमाते हैं। महानगर और गांव के बीच शटल करते मिलते हैं वे – महीना दो महीना बाद गांव में ही दिखते हैं।

लड़की अगर बारह चौदह साल की हो गयी तो वह या तो घर का काम सम्भालती है या वह भी खेती के काम के लिये आसपास के खेतों और किरियात का रुख करने लगती है।
ऑटो वाले के पास बैठी महिला ने सुरती बनाई। खुद ली और ऑटो वाले को भी खिलाई। दांत के नीचे सुरती दाब कर ऑटो वाला पीछे जा कर एक रस्सी से ऑटो के इंजन को स्टार्ट किया। वापस आ कर ऑटो ले कर रवाना हुआ। तब तक लेवल क्रॉसिंग फाटक भी खुल गया था। मैं अपने रास्ते चला और ऑटो दूसरी ओर किरियात जाने के लिये। वह बारह साल की बालिका छूट गयी थी और ऑटो के पीछे पीछे दौड़ लगा रही थी। आगे ऑटो वाल रोक कर उसे बिठा ही लेगा।
आठों महिलायें ऑटो में बैठ गयीं। ऑटो वाले के अगल बगल 2-2 (कुल चार) और पीछे सीट पर जिसमें दो पेसेंजर बिठाने का नियम है, उसमें चार। दौड़ कर आती बालिका इसी जगह में कहीं ससक कर बैठेगी।
इन किरियात की मजदूरिनों की अपनी अपनी कथा होगी, अपने अपने उपन्यास। भारत के परिवर्तन और गरीबी से उबरने की गाथा होगी। खेत वाले के श्रम और शरीर शोषण के आख्यान भी होंगे। बहुत कुछ सुना और लिखा जा सकता है। … मैं तो मात्र चार-पांच मिनट का दृश्य भर देखता हूं। मेरे पास कथा बुनने और लिखने का अनुशासन नहीं है। 😦
पर कथायें तो आसपास बिखरी हुई हैं। बहुत सी और विविध रंगों वाली कथायें।