डेंगू, पपीता, बकरी और ड्रेगन फ्रूट

मेरी पत्नीजी (बहुत से लोगों की तरह) कब्ज से बचने के लिये रोज पपीता सेवन करती हैं। प्रति दिन, बारहों महीने। गांव में रहते हुये पपीते की सतत उपलब्धता कठिन है। उनके लिये पपीता-प्रबंधन कठिन काम था।

रामगुन फल का ठेला लगाने वाले सज्जन सहायता किया करते थे, पर पाया कि उनकी पपीता उपलब्ध कराने की सक्सेस रेट 40-50% से ज्यादा नहीं थी। वे पास की कछवांं मण्डी से अपने फल लाते हैं। कछंवा मण्डी में सब्जियाँ तो ठीक ठाक मिल जाती हैं पर फल के बारे में वह मण्डी बहुत व्यवस्थित नहीं है।

रामगुन के बहुधा फेल हो जाने पर घर पर माली का काम देखने वाले रामसेवक जी को कहा कि वे हर महीने एक दो पपीते के पौधे ही घर के परिसर में लगा दें, जिससे हर समय (किसी न किसी पपीते के पेड़ पर) पपीते मिलने लगें। पर पपीतों की भी शायद कोई यूनियन है। वे डाइवर्सीफाइड तरीके से फल नहीं देते, जैसे गायें गाभिन होती हैं और दूध देती हैं।

घर के बगीचे में पपीते। अभी कच्चे हैं।

कुल मिला कर; गांव में हर मौसम में पपीता पाने के लिये बनारस या मिर्जापुर शहर की बड़ी मण्डी या बाजार पर निर्भर रहना ही पड़ता है। पपीते के मुद्दे पर शहर जीता, गांव हारा!

रामसेवक बनारस के बंगलों में माली का काम करते हैं और गांव से सिवाय रविवार के बाकी दिन बनारस आते जाते हैं। सो एक दिन मुझे ब्रेन-वेव आई कि उन्हें ही कहा जाये कि वे हर दूसरे तीसरे दिन एक दो पपीते ले आया करें। उन्हें झिझकते हुये कहा तो वे सहर्ष तैयार हो गये। अब कोई परेशानी नहीं होती। रामसेवक जी की पपीता उपलब्ध कराने की सक्सेस रेट लगभग शत प्रतिशत है।

रामसेवक पपीता वैसा खरीदते हैं, जैसा अपने लिये खरीद रहे हों। मोल भाव कर और गुणवत्ता देख कर। अभी दो दिन पहले उन्होने फोन कर कहा कि दाम ज्यादा हैं और उनका खरीदने का मन नहीं हो रहा है। चालीस-पचास रुपये किलो मिलने वाला पपीता 80रु किलो से कम नहीं मिल रहा।

उन्हें कहा गया कि एक ही खरीदें, थोड़ा छोटा। एक सप्ताह में पपीता प्राइस इण्डेक्स में 8-10% नहीं, पूरे 100% का उछाल!

रात घर आने पर उन्होने पपीता देते हुये बताया कि डेंगू फैला है और लोग पपीता खरीदने पर टूट पड़े हैं। यह धारणा है कि पपीता गिरते प्लेटलेट्स की रामबाण दवा है।

डेंगू का प्रकोप और मरीज के गिरते प्लेटलेट्स पर मरीज के तीमारदारी में जुटे लोगों का पैनिक रियेक्शन होता ही है। ऐसे में, जिस भी पदार्थ में लोगों को लगता है कि श्वेत रक्त कणिकाओं को बढ़ाने की क्षमता होती है, उसका इंतजाम करने मेंं वे जुट जाते हैं।

डेंगू के प्रकोप के समय मेरे ड्राइवर ने बताया कि द्वारिकापुर के गड़रिया लोग अपनी भेड़ों का दूध 80रुपये पाव बेच रहे हैं। बकरियों का दूध भी उसी भाव जाता है। मेरा ड्राइवर डेंगू की शाश्वतता पर दाव खेलते हुये ड्राइवरी का काम छोड़ कर बकरी पालन पर ध्यान लगाने की कहने लगा है। अगले कुछ सालों में वह बकरी पालन के सभी पहलुओं पर मंथन कर अपने काम की लाइन बदल लेगा।

सिकंदर सोनकर ने ड्रेगन फ्रूट दिखाया

उधर महराजगंज बाजार का फल वाला सिकंदर सोनकर प्लास्टिक की पन्नियों में भरे विचित्र से फल अपनी दूकान के प्राइम लोकेशन पर जमा रहा था। उसने बताया कि फल का नाम ड्रेगन फ्रूट है। डेंगू की बीमारी में गिरते प्लेटलेट्स को थामने के लिये लोग इसका प्रयोग करते हैं। उसने एक पेटी ड्रेगन फ्रूट मंगाया है। एक पेटी में 18 फल और थोक कीमत 1500 रुपये। वह इसे 100रुपया फल के दाम से बेच रहा है।

पपीता, भेड़ बकरी का दूध या ड्रेगन फ्रूट – सभी ऑफ-बीट चीजों की बेतहाशा मांग है डेंगू के प्रकोप से लड़ने के लिये।

मैंने नेट छाना ड्रेगन फ्रूट के नाम से। विकिपेडिया पर इसका नाम पिताया है। यह केक्टस प्रजाति के पौधे का फल है। पकने पर यह फल हल्का मीठा होता है। तरबूज, नाशपाती और कीवी के मिलेजुले स्वाद वाला फल। विभिन्न वेब साईट्स पर यह बताया कि इसमें आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है। किसी ने इसे डेंगू या प्लेटलेट्स बढ़ाने से नहीं जोड़ा। पर लोग हैं कि इसे भी डेंगू की रामबाण दवा मान रहे हैं।

एक पके पिताया की अनुदैर्ध्य काट। चित्र https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=11849341 द्वारा

मच्छर रहेंगे ही। डेंगू मलेरिया जाने वाला नहीं लगता। ऐसे में गुलाब (मेरे ड्राइवर) की सोच की वह बकरी पालन करेगा; खराब नहीं। पर डेंगू का दोहन करने के लिये मैं क्या कर सकता हूं? मैं बकरी पालन तो कर नहीं सकूंगा। पर पपीता के पौधे लगा सकता हूं। उससे मेरी पत्नीजी का कब्ज भी दुरुस्त हो जायेगा और डेंग्फ्लेशन (Dengue-inflation) के समय मार्केट का दोहन भी किया जा सकेगा।

क्या पता, डेंगू और पपीता का समीकरण मुझे करोड़पति बना दे! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “डेंगू, पपीता, बकरी और ड्रेगन फ्रूट

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started