कटका पड़ाव पर रामगुन के ठेले पर ही पपीता मिलता है। ठेला उनकी पत्नी – मलकिन – मैंनेज करती हैं। रामगुन तो यदाकदा दिखते हैं। आज वे ही मिले। मलकिन नहीं थी। संयोग से, बहुत अर्से बाद उनकी दुकान पर पपीता भी मिल गया। लाये होंगे तो अधपका ही। रखा था कि जैसे जैसे पकेगा वैसे वैसे बेचेंगे। मुझे ज्यादा जरूरत थी, इसलिये दो पपीते खरीद ही लिये। घर में दो तीन दिन रखने के बाद खाने लायक होंगे।
साठ साल का आदमी, ईंट भट्ठा मजूरी से खड़ा हुआ। अब छब्बीस लाख की जमीन का बैनामा कराने की क्षमता रखने वाला हो गया है। रामगुन में रामजी ने गुण जरूर भरे होंगे!
काहे नहीं मिल रहा है यहां गांव देहात में पपीता – “मण्डी में आ ही नहीं रहा था। डेंगू फैला है शहर में। पपीता भी कम है। तो जो आता है, वह शहर में ही खप जाता रहा”। यह थ्योरी मुझे एक और दुकानदार ने बताई।

रामगुन से उनके बारे में बातचीत हुई। बताया कि उम्र साठ के आसपास है। चार लड़के हैं। नौ नातिनें और तीन नाती। एक लड़के के बच्चे नहीं हैं। भरापूरा परिवार है तो खर्चे भी हैं। लड़के बिजली का काम करते हैं। मौसम में बाजा (डीजे) भी चलाते हैं। लॉकडाउन में धंधा मंदा था तो दस लाख का कर्जा हो गया था। उसी की फिक्र थी। पर अब लड़कों ने मेहनत कर वह फिक्र दूर कर दी है। छब्बीस लाख की जमीन भी खरीदी है। पास ही में मकान भी बनवाया है।
शुरुआत में रामगुन ने गरीबी देखी और झेली है। ईंट भट्ठा पर काम कर ईंट सिर पर ढोने की मजूरी भी की है। शरीर और स्वास्थ्य पर शुरू से ही ध्यान दिया है। काम भी किया है कस कर और भोजन में भी कोताही नहीं की है। इसीलिये अपने को फिट महसूस करते हैं।
अपना मोबाइल नम्बर मुझे नोट करा दिया है रामगुन ने। कोई भी चीज – जैसे पपीता चाहिये हो तो एक दिन पहले शाम को फोन कर उन्हे बता देने पर अगले दिन सवेरे मण्डी से वे लेते आयेंगे।
“आपने यहां ज्यादातर मलकिन को देखा होगा।” – रामगुन कहते हैं। उनकी पत्नी गठे शरीर की, सांवली और हमेशा पान खाते मिली हैं ठेले पर। काम में और व्यवहार में कुशल हैं। यूं कहें तो दबंग। मैंने रामगुन को कहा कि उनकी पत्नी उनसे ज्यादा चण्ट, ज्यादा स्मार्ट हैं। इस प्रशंसा को मंद मंद मुस्करा कर स्वीकार किया। कुछ कहा नहीं।
साठ साल का आदमी, ईंट भट्ठा मजूरी से खड़ा हुआ। अब छब्बीस लाख की जमीन का बैनामा कराने की क्षमता रखने वाला हो गया है। रामगुन में रामजी ने गुण जरूर भरे होंगे!
गांवदेहात में अनेकानेक चरित्र ऐसे निकलेंगे, जिनमें कुछ न कुछ खासियत है। रामगुन उनमें से एक निकले।
अपनी आदत बना लो जीडी, सप्ताह में एक न एक ऐसे चरित्र खोज निकालो और ब्लॉग पर दर्ज करो! उसके लिये जरूरी होगा कि कार से नहीं साइकिल से निकलो और हर कोने अंतरे में चरित्र खोजने का प्रयास करते रहो!
ऐसे कर्मयोगियों की कोई कमी नहीं है
जरूरत है तो उन्हें सही दृष्टिकोण से पहचानने की
बहुत सुंदर लेखन
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धन्यवाद अरुण जी!
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गाँव के कर्मठ। नया चरित्र, तुलसी के कथन को चरित्रार्थ करता हुआ। कर्मप्रधान विश्व रचि राखा..
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