ड्रेसलैण्ड के महेंद्र मिश्र

मैं एक गंवई-कस्बाई जीव हूं। कपड़ा-लत्ता खरीदने के लिये मुझे मर्यादी वस्त्रालय ही भाता है। यह मेरे घर के समीप है। साइकिल से बारह मिनट की दूरी पर। मैं इसके मालिक को पहचानता हूं। वे मुझे नमस्कार भी करते हैं। हालचाल भी पूछते हैं। मेरे नाप का कपड़ा चुनने में सहायता भी करते हैं और मेरे लिये कुरता, पायजामा, धारीदार पट्टे वाला नेकर भी सिलवाने के लिये दर्जी का प्रबंध भी करते हैं। मेरे लिये मर्यादी वस्त्रालाय ए++ रेटिंग का है।

वह तो अपनी पत्नीजी के चक्कर में बनारस के मॉल टाइप जगह ड्रेसलैण्ड में घुस गया। पत्नीजी चार कदम मुझसे आगे चल रही थीं। उनमें आत्मविश्वास ज्यादा था। मैं तो चकर पकर ताकते हुये ही घुसा। घुसते ही रिसेप्शन कम बिलिंग काउण्टर के आसपास चहरक-महरक करते ड्रेसलैण्ड के एक मोबाइल एग्जीक्यूटिव ने मुझे लपक लिया। इससे पहले मैं ऊटपटांग सी बात कहता; मेरी पत्नीजी ने आने की मंशा स्पष्ट की – इनके लिये जैकेट या कोट जैसा चाहिये।

ड्रेसलैण्ड के महेंद्र मिश्र

वे जवान एग्जीक्यूटिव – जो थोड़ा सा और टच अप करने के बाद ड्रेसलैण्ड के ही किसी एपेरेल के मॉडल से हो सकते थे – ने अपने हाव भाव से यह दर्शित नहीं होने दिया कि वे मेरी पत्नीजी की तुलना में मुझे घोंघा समझते हों। यह उनकी ऑन-जॉब ट्रेनिंग का हिस्सा होता होगा कि वे अपने व्यवहार से कस्टमर के मूल्यांकन के ऋणात्मक पक्ष जाहिर न होने दें।

डेल कार्नेगी के “हाउ टू विन फ्रेण्ड्स एण्ड इन्फ्लुयेंस पीपुल” के सिद्धांत का प्रयोग कर मैंने उन एग्जीक्यूटिव की चोटी की प्रशंसा की। यह पूर्वांचल में ही सम्भव है कि एक मॉडर्न दुकान का सेल्स एग्जीक्यूटिव चोटीधारी हो। देश-परदेस के अन्य हिस्सों में तो वह पुरातनपंथी होने की निशानी मानी जाती है। उनका नाम पूछा तो उन्होने बताया – महेंद्र मिश्र। चार साल से इस मॉल में कार्यरत हैं। इससे पहले नदेसर की किसी JHV मॉल में थे। उनका काम ग्राहक से डील करना है। और हमें भी बड़े सधे तरीके से डील किया उन्होने। दो दर्जन कपड़े दिखाये होंगे मुझे। मॉल की दो तीन अलग अलग मंजिलों पर ले गये और बड़ी कुशलता से दर्जन भर कोट-जैकेट मुझे पहनाये-उतारे। मोटापे के कारण मेरे पेट पर फिटिंग सही न बैठने को उन्होने किसी भी कोण से कोई उपहासभाव झलकने नहीं दिया।

मैंने उन्हें बता कर उनकी चोटी की साइड-व्यू की फोटो भी खींची।

महेंद्र मिश्र की चोटी

पंद्रह मिनट की ड्रेसलैण्ड विजिट में महेंद्र मिश्र मुझे दो कपड़े – जो मेरे आकलन में पर्याप्त मंहगे थे – चिपकाने में सफल रहे। उन कपड़ों से, बकौल मेरी पत्नीजी, मैं किसी पार्टी-समारोह में शरीक होने के लिये कामचलाऊ लायक हो गया हूं! :lol:

चलते चलते मैंने महेंद्र मिश्र से पूछा – यहां के ग्राहकों से उनके अनुभव कैसे हैं?

महेंद्र मिश्र

टालमटोल करते हुये अंतत: काम की बात कही महेंद्र ने। कठिन कस्टमर वे हैं जो अपेक्षा करते हैं कि उनके बिना कुछ बताये उनके मन माफिक कपड़े दिखाये जायें। उन्हें संतुष्ट किया जाये।

वे कठिन ग्राहक इस क्षेत्र की अजीबोगरीब स्नॉबरी दर्शाते हैं। पता नहीं वैसी स्नॉबरी देश के बाकी हिस्सों में भी शायद होती हो। पर स्नॉब लोगों को झेलते हुये भी सामान बेच पाना कला है। महेंद्र जी से बात कर यह लगा कि वे कला बखूबी जानते हैं।

महेंद्र मिश्र को देख कर मेरे मन में पूर्वांचल में हो रहे सोशियो-इकनॉमिक परिवर्तन के बारे में कई सवाल उठे। महेंद्र की पर्सनालिटी प्रभावी है। उसमें भारत के पुराने/पारम्परिक आईकॉन्स को ले कर कोई झेंप नहीं है। महेंद्र की चोटी बड़े सलीके से लपेटी हुई थी। उन्होने माथे पर तिलक भी अच्छे से लगाया था। कोई लदर-फदर काम नहीं था। तिलक उनके माथे पर जंच रहा था। उन्होने तिलक लगाने के बाद अपना चेहरा अच्छे से देखा भी होगा आईने में। अगर मुझे अपनी भारतीयता/हिंदुत्व को दिखाना हो तो महेंद्र बढ़िया मॉडल होंगे उसके लिये। पर क्या महेंद्र में सेल्स के अलावा ऑन्त्रेपिन्योरियल स्पिरिट भी है? क्या उनमें ड्रेसलैण्ड जैसा कुछ बनाने और सफल होने का माद्दा है। महेंद्र के अभिभावकों ने उन्हें संस्कृत के कुछ श्लोक रटाये होंगे; पूजा पद्यति सिखाई होगी; शायद नैतिक जीवन के सूत्र भी दिये हों; पर क्या उनमें व्यवसायिक बुद्धि भी डाली होगी?

हिंदी पट्टी के इस तिलक-शिखाधारी वर्ग ने व्यवसाय करने को हेय ही माना है। जो यहां से निकल कर अन्य हिस्सों में गये, वे धन के प्रति अपने भाव में कोर्स-करेक्शन कर सके हैं। यहां तो “संस्कारी” बाभन सरकारी नौकरी को ही अपना लक्ष्य मान कर चलता है। व्यवसायिक सफल कम ही देखे हैं। मुझमें भी वह वृत्ति नहीं है। :sad:

महेंद्र मिश्र ने कहा कि वे मुझसे मेरे दफ्तर में मिल कर अपने कठिन कस्टमरों वाले अनुभव बतायेंगे। पता नहीं इस नौजवान ने मुझे क्या समझा?! उन्हें अगर पता चलेगा कि मैं एक रिटायर्ड और खब्ती (?) जीव हूं तो शायद उन्हें निराशा हो। बैक पॉकेट में वाकी-टॉकी रखे चलता फिरता सेल्स एग्जीक्यूटिव सेवानिवृत्त व्यक्ति में कोई रेगुलर कस्टमर तो पा नहीं सकता। मैं तो केवल एक ब्लॉग पोस्ट भर लिख सकता हूं और वही कर रहा हूं।

पोस्ट-स्क्रिप्ट:- ड्रेसलैण्ड मंहगा है। ऑनलाइन कपड़े, अगर आप में ऑनलाइन खरीदने की दक्षता है; तो शायद बेहतर विकल्प हो सकते हैं। बाकी, हमें तो महेंद्र मिश्र जी ने अपनी सेल्स कुशलता से कपड़े चिपका ही दिये। कुशल सेल्स एग्जीक्यूटिव वही है जो गंजे को भी कंघा बेच सके! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “ड्रेसलैण्ड के महेंद्र मिश्र

  1. क्या कपड़ा खरीदे हैं उसकी तस्वीर भी डाल देते तो शायद कोई ड्रेसलैंड का रुख कर लेता :)

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  2. आजकल मिश्र लोगो का ही जमाना चल रहा है।ऐयर इंडिया में स्वच्छ भारत अभियान के नायक बने मिश्र जी के साथ साथ महाभारत क़ालीन पात्रों की डायरी लिखने वाले मिश्र जी याद आ गये।

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