सवेरे छ बजे भी सात आठ लोग थे कलेक्शन सेण्टर पर दूध देने के लिये। वजन लेने के प्लेटफार्म पर भी 50-60 लीटर दूध था कैन-कण्डाल में। लोग और जल्दी आना शुरू हो गये हैं। सूर्योदय अब पौने छ से पहले होने लगा है।
पिण्टू दूध का फैट नाप रहा था लेक्टो-स्कैनर से। उसने मुझे इंतजार करने को कहा। गाय के दूध वाले ग्राहक चल रहे थे। मुझे भैंस वाला लेना था।

एक सज्जन ने कहा – “एनके द। काहे इंतजार करावत हयअ (इनको दो, किसलिये इंतजार करवा रहे हो?” पिण्टू ने बताया कि मुझे भैंस का लेना है, इसलिये थोड़ा समय लगेगा।
उन सज्जन ने तुरंत मुझे सलाह दी – “गाई क लिहा करअ। भईंसिया के दुधवा से बुद्धी मोटि होई जाये! (गाय का लिया करो, भैंस के दूध से बुद्धि मोटी हो जायेगी।”
भैंस के दूध का मेधा कुंद होने से सम्बंध है – यह बात मुझे रोचक लगी। उन सज्जन का सूरज की रोशनी में चित्र लिया। उन्होने नाम बताया – मूरत यादव। उनका चित्र लेने को देख कर बाकी लोग भी भैंस के दूध और बुद्धि पर चर्चा करने लगे।
दो वर्ग बंट गये। एक ने कहा कि इतने बड़े अफसर हैं। उनकी बुद्धि मोटी थोड़े है। थोड़ा देख कर बात किया करो। दो तीन लोगों ने हां में हां मिलाई। तब दूसरी ओर के लोग भी मुखर हुये। “क्या गलत कहा है। सभी यही तो मानते हैं कि भैंस के दूध से अकल मोटी हो जाती है।”
मुझे अक्ल और भैंस के सम्बंध में कहावतें याद हो आयीं – (क) भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराय! (ख) करिया अच्छर भईंस बराबर, पंड़वा जैसे सुन्ना (काला अक्षर भैंस बराबर, उसका पाड़ा जैसे शून्य की बिंदी)। अकल और भैंस में छत्तीस का आंकड़ा माना जाता रहा है पर भैंस के दूध और अक्ल में भी वही समीकरण है?

गाय और भैंस के दूध को ले कर कई धारणायें, भ्रांतियाँ हैं। काले रंग की होने के कारण भैस की इज्जत कम ही है। पर भैंस की ब्रीड में बहुत जमाने से कोई घालमेल नहीं हुआ है। एक जमाने में ऑपरेशन फ्लड के चक्कर में जर्सी और फ्रीजियन गायों के आगमन से पूरी गाय प्रजाति वर्णसंकर हो गयी है। देसी गाय देखने को नहीं मिलती। गौमाता अब जर्सिया गयी हैं। डेयरी वालों के विज्ञापन में भी जर्सी गाय के चित्र ही दिखते हैं; कूबड़ वाली देसी गाय के नहीं। फिर भी गाय गाय है। अब जब वर्णसंकर गाय का दूध ए1+ए2 है, भैंस का दूध पूरी तरह (लगभग) ए2 है।
भैंस के दूध में फैट और एसएनएफ ज्यादा है। उससे हमारी घी की जरूरतें मलाई निकाल कर पूरी हो जाती हैं। पीने और चाय के लिये लगभग बिना क्रीम का दूध अच्छा लगता है। हमने दूध पर बहुत हेर फेर किया है। बहुत प्रयोग किये हैं। अंत में यह भैंस का दूध ठीक लगा है। और मुझे तो नहीं लगा कि भैंस के दूध से मेरी बुद्धि कमजोर हुई है। जैसी थी, वैसी ही है। उसके उलट मुझे बताया गया कि ए2 वाला दूध अल्झाइमर/डिमेंशिया का खतरा कम कर देगा।
दूध के ऊपर बहुत चर्चा इस देश में चल रही है। भगत लोग तो “गौ माता की जै” की ही बात करते हैं। बाकी, देसी साहीवाल, गिर, गंगातीरी, थारपारकर गायों को लेना और उन्हें पूरी आदर-श्रद्धा से पालना, वह नहीं दिखता। हिंदू लोग जिस जिस को माता कहते हैं, उसकी फजीहत करने में आगे ही रहते हैं। पिछले पचास साल में गाय की ब्रीड की ऐसी तैसी कर दी है। बूढ़ी गायों की दुर्गति तो बहुत दारुण है। गायें गलियों में प्लास्टिक का कचरा चबाती दीखती हैं। गंगाजी को भी माता कहते हैं। उनके पानी को घर-उद्योग की गंदगी मिला कर नदी को आईसीयू में डाल दिया है। श्रद्धा तो टीका लगाने भर को है।
देश की डेयरियां और लोग भैंस के दूध की बदौलत चल रहे हैं। अमूल – जो विश्व के बीस सबसे बड़ी डेयरियों में है; भैंस के दूध के बल पर है। अगर भैंस का दूध बुद्धि कुंद करता है तो अमूल को ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिये।
और घी? फलाने जी गौमाता का गुणगान करने वाले थारपारकर गाय का फोटो अपने पैकेट पर लगाते हैं। पर वे डेनमार्क से बटरऑयल आयात कर उससे बना घी देश को खिला रहे हैं। उससे मेधा पुष्ट हो रही है! 😆

ऐसा कुछ है नहीं। भैंस के दूध पर देश जिये और पुष्ट हो; पर भैंस की बेईज्जती करता रहे; यह जायज नहीं!
भैंस की जय हो!

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