बनारस गये। मेरे छोटे साले साहब के यहाँ मेरी बिटिया ठहरी हुई थी। छोटा साला लगभग आधी पीढ़ी के अंतर वाला है। मेरे दामाद और उसमें खूब पटती है। हम कितना भी स्नेह रखें-दिखायें; पीढ़ी के अंतर को खत्म नहीं कर सकते। बिटिया को उनके यहां हाहाहीही में जो मजा आता है वह हमारे अंतर्मुखी पर्सोना के साथ थोड़े ही आता होगा! मैं उस अंतर को ले कर कोई किरिच नहीं पालता।
बिटिया साथ आयी है गांव। उसका सारा सामान हमारी छोटी सी कार में बड़ी मुश्किल से अंटा है। इतना सामान ले कर काहे यात्रा करती है वह? कल उसकी सफारी आयेगी बोकारो से वापस जाने के लिये। दो दिन रुकेगी वह गांव में। जाते समय आराम से यात्रा करेगी। अभी तो हमारी मारुति की साबुनदानी कार (आल्टो) में बड़ी मुश्किल से पैर फैला पाई है। खैर यात्रा घण्टे भर की थी तो कट गयी।

शाम हो गयी है। शाम को यात्रा मुझे प्रसन्नता नहीं देती। लगता है एक और दिन चला गया। पर माँ-बिटिया इस भाव से अलहदा, रास्ते में ही लड़ने लगे हैं। “मामा, आप तो यहीं मुझे उतारो। वापस जाना है। डिनर में फलानी चीज बनाओगी? आपको शर्म नहीं आती? नहीं मुझे लौकी नहीं खानी। कद्दू भी नहीं। पनीर बहुत हो गया। हां, कटहल चल सकता है।”
कटहल लेने के लिये कार महराजगंज कस्बे में मोड़ी जाती है। कोने पर बैठा कटहरी लिये बुढ़वा मेरी पत्नीजी से कहता है – बहुत अर्से बाद दिखीं आप। हम तो सोचे कि गांव छोड़ कर चली गयी हैं।
माँ बिटिया में फिर वाक्-युद्ध होता है – “कटहल नहीं मिला? कटहरी कटहल थोड़े होता है। यहाँ मेरे पसंद की सब्जी भी नहीं खरीदना चाहती आप!” कोई भी बहाना हो, दोनो को लड़ना है ही। ये दो दिन लड़ने का आनंद लेने के लिये हैं।

सब्जी की दुकान पर मेम साहब सब्जी ले रही हैं और मैं मोबाइल में सब्जीवाले का पेटीयम अकाउण्ट खोले बैठा हूं। वहां से हाथ की उंगली से कीमत का इशारा करती हैं और यहां मैं पेमेण्ट करता हूं। जहां तक हो सके हम खर्चा एक ही अकाउण्ट से करना चाहते हैं, जिससे महीने का व्यय जोड़ने में आसानी रहे। एक ही अकाउण्ट से पेमेण्ट एप्प, एटीएम कार्ड और कैश निकालना होता है। महीने का खुदरा खर्चा करने का अलग अकाउण्ट। रोज रोज खर्चा लिखने के झंझट से मुक्ति मिली है।
घर पंहुचते पंहुचते शाम हो गयी है। बगल में खेत वाला गेंहूं की थ्रेशिंग कर रहा है। गेंहूं की खुत्थी के कण वातावरण में व्याप्त हैं। कमरे की खिड़की-दरवाजे बंद कर मैं लैपटॉप खोलता हूं। यह लिखने के लिये। उधर ड्राइंग रूम में मां-बेटी का संवाद जारी है। सेण्टर टेबल पर पैर फैलाये, मोबाइल देखते और बीच बीच में गचगचाते हुये।

कितना गचर गचर करती हैं ये दोनो, मिलने पर! और दूर रहती हैं तो फोन पर औसत फोन का कॉल ड्यूरेशन पौने घण्टे से कम नहीं होता!
आज रात कटहल की सब्जी और रोटी होगी। साथ में श्रीखण्ड। टिल्लू की दुकान से तीन कप ले लिये हैं वे भी। गांव में इससे ज्यादा आतिथ्य क्या हो सकता है?!
One thought on “आज की शाम”