यहां भदोही जिले के मेरे गांव में घर में पाइप्ड जल की सप्लाई की कवायद जोर पकड़ गयी है। हर घर नल आयेगा! मेरे घर के पास ट्रेंच खोदी जा रही है। जहां लम्बी दूरी तक सीधी लाइन में सड़क है, वहां ट्रेंचर काम कर रहा है। बाकी काम गैंती से मजदूर कर रहे हैं।
एक सुपरवाइजर मजदूर से कहता है – आज इहाँ पाइप बिछि जाई चाहे। नाहीं त तोहार जै सियाराम कई देब।
“राम नाम सत्त कर देना” एक मुहावरा हो सकता है। जै सियाराम भी मुहावरा हो सकता है? मुझे नहीं मालुम था। हिंदी-अवधी की कोई भी ऐसी तैसी कर सकता है। उसे बोलने वाला भी!

रात में ट्रेंचर एक खेत में खड़ा किया गया है। मेरे घर के बगल में। खेत का अधियरा उस ठेकेदार के आदमी पर रोब गांठ रहा है – खेत खराब नहीं होना चाहिये। ठेकेदार को कायदे से अधियरा को सुरती-पानी का कुछ पैसा दे देना चाहिये।
जिस तेजी से काम हो रहा है, उससे लगता है अगला चुनाव पानी पर लड़ा जायेगा! लोग कहते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी (के मुद्दे) पर होगा। पर भारत में अगर जल प्रबंधन का सिक्का जम गया तो भाजपाई “चार सौ पार” का नारा उसी पर गढ़ लेंगे। “जल आपके द्वार; भाजपा चार सौ पार।”

मेरे घर से निकासी ट्रेंच खुदने से बंद है। ड्राइवर साहब को आज जल्दी छुट्टी मिल गयी है। कार बाहर निकल ही नहीं सकती। साइकिल भी मैंने उठा कर खाई से पार कराई है। पर यह सब तो छोटी असुविधायें हैं। मुख्य बात यह है कि साल भर में मेरे घर में पाइप से पानी आने की सम्भावना बन गयी है।
गांवदेहात के लिये तो यह आठ कॉलम की बैनर हेडलाइन है। नहीं?
