रामसेवक

<<< रामसेवक >>>

रामसेवक मेरे पड़ोसी हैं और मेरे बगीचे की देखभाल करने वाले भी। उनके ऊपर मेरे ब्लॉग पर अनेक पोस्टें हैं। कभी कभी मुझे लगता है कि चरित्रों के बारे में लिखे का संकलन करूं, तो उसके अनुसार रामसेवक पर ही एक छोटी मोटी पुस्तक बन जायेगी।

य्स दिन सवेरे जब हम अपना गेट खोलने गये तो आगे बढ़ गये सड़क पर। देखा कि रामसेवक अपनी जमीन के पास खड़े हैं। वे हल्के कोहरे में घुटने के थोड़े नीचे तक की लुंगी पहने थे। उन्होने मेरी पत्नीजी को बताया कि ऊपर उन्होने इनर और स्वेटर पहन रखा है और बस थोड़ी ही देर में स्नान कर पौने आठ बजे की पेसेंजर से ड्यूटी पर बनारस जायेंगे। (चित्र RS1)

रामसेवक अपनी जमीन पर ईंटों के ढेर का अवलोकन कर रहे थे। कुछ ही समय पहले उन्होने यह दो बिस्वा जमीन खरीदी है। जमीन सड़क से सटी है और उसको ले कर उनकी योजना कुछ दुकानें बनाने की है। एक दुकान तो उनका बड़ा लड़का ही चला सकता है जो अभी बम्बई और गांव के बीच तरह तरह के काम आजमा रहा है। वह कर्मठ तो है पर अभी तक व्यवसाय के बारे में स्थिर बुद्धि नहीं बन पाया है। उसे जमाना भी रामसेवक का एक ध्येय है। रामसेवक का दूसरा लड़का कोचिंग क्लास चलाता है महराजगंज में। किराये की अकॉमडेशन लेकर। वह भी इस जगह पर अपना उपक्रम खोल सकेगा। और सड़क के किनारे होने से और दुकानें भी अच्छे किराये से उठ सकेंगी।

उनकी योजना बढ़िया है। और उसके क्रियान्वयन के लिये उन्होने प्रयास भी अच्छे करने शुरू कर दिये हैं। बगल के प्राइमरी स्कूल में एक कमरा गिरा कर नई इमारत बनने जा रही है। पुरानी इमारत गिराने और उसका इमारती सामान उपयोग करने के लिये रामसेवक के बेटे ने ठेका ले लिया। इससे इमारत की अच्छी क्वालिटी की ईंटे और अन्य इमारती सामान रामसेवक को मिल गये। उनसे उनका कटरा बन जायेगा। स्कूल की इमारत गिराने और उसका मलबा ढोने का काम जेसीबी और ट्रेक्टर से किराये पर ले कर रामसेवक ने किया। उसमें जो श्रम लगा, उसके लिये उनके परिवार ने अपना अपना योगदान दिया। किराये पर लेबर कम ही बुलाना पड़ा। मैने कुछ सामान रामसेवक को साइकिल पर उठा कर लाते भी देखा है।

ईंटें जहां पड़ी हैं उसके बगल में पड़ोसी का कच्चा खपरैल वाला घर दीखता है। ईंटें खुले में पड़ी हैं तो चोरी से बचाने के लिये अपने घर के ऊपर एक हाई पावर की लाइट भी रामसेवक ने लगवाई है जिससे रात में उस जगह पर फ्लड लाइट जैसा उजाला रहे और कोई चोरी सम्भव न हो सके। सवेरे उस जगह का मुआयना शायद ईंटो को सहेजने के उद्देश्य से भी कर रहे होंगे रामसेवक। (चित्र RS2)

मेरी पत्नीजी उनसे इधर उधर की बातें कर रही थीं। आसपड़ोस की, बनारस में उनके काम की, इत्यादि। अचानक रामसेवक को लगा कि अबेर होने लगी है। “दीदी, अब नहा कर निकलूंगा काम पर”। हम लोग वापस चले आये। (चित्र RS3)

रामसेवक और उनका परिवार परिश्रमी है। मितव्ययी भी है। उसके अलावा अपनी बिरादरी में भी अपने काम से काम रखने वाला है। लोगों के झगड़े-टंटे की किचाइन में नहीं पड़ता। उनके और उनके परिवार के इन सब गुणों का फल है कि उनका परिवार अपवर्ड मोबाइल है। अपनी आदतों से वह अब श्रमिक से मध्यवर्ग में आ चुका है। उनका जीवन स्तर आसपास के अन्य परिवारों से बहुत बेहतर हो गया है। उनका छोटा लड़का पंचायती चुनाव में जोर भी आजमा चुका है। और अपने बूते पर ठीकठाक वोट पाया। मिलनसार और दूसरों की सहायता की आदत होने से कभी न कभी वह पंचायत अध्यक्ष भी बन सकने की क्षमता रखता है। यह सब देख मुझे लगता है कि रामसेवक और उनका परिवार आगे बहुत उन्नति करेगा।

मैं #गांवदेहात में अपने #आसपास समृद्धि के उभरते द्वीप तलाशता हूं तो रामसेवक उसमें मुझे बहुत क्षमता और सम्भावना वाले लगते हैं। उन्होने जिस तरीके से हमारा बगीचा चमकाया है, उसी मेहनत से उनका घर परिवार भी चमकेगा।

बनारस और प्रयागराज के बीच नेशनल हाईवे और रेलवे स्टेशन से अच्छी कनेक्टिविटी वाला यह गांव आगे अगर विकास हुआ तो अहमदाबाद-वडोदरा के बीच के साणद जैसा स्थान बनने की सम्भावना वाला लगता है मुझे। पिछले नौ साल में बहुत सार्थक बदलाव मैने यहां देखे हैं। विक्रमपुर/कटका के “साणदीकरण” की प्रक्रिया में सशक्त और सार्थक भूमिका रामसेवक जैसे कर्मठ लोग और उनका परिवार निभायेंगे।

रामसेवक पर मेरी एक पुरानी ब्लॉगपोस्ट का लिंक – https://gyandutt.com/2022/10/14/ramsevak-the-gardner/


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started