इग्यारह बज रहे थे। कोहरे का पर्दा हल्के से ठेल कर कानी आंख से सूरज भगवान ताकने लगे थे। वह बूढ़ा मुझे मर्यादी वस्त्रालय के आगे अपनी सगड़ी (साइकिल ठेला) पर बैठा सुरती मलता दिखा। बात करने के मूड़ में मैने पूछा – आजकल तो बिजली का ठेला भी आने लगा है। वह लेने कीContinue reading “सगड़ी वाला बूढ़ा”
