देवास से उज्जैन और उज्जैन में

24 अक्तूबर 21 रात्रि –

कल सवेरे देवास से चल कर उज्जैन की यात्रा की प्रेमसागर ने। लगभग 35-36 किमी की यात्रा। सपाट पठार। कोई बड़ी नदी नहीं थी रास्ते में। जमीन में भी उतार चढ़ाव नहीं। लोग सहायक ही रहे होंगे। एक जगह एक चाय वाले ने आग्रह कर उन्हें बुलाया और जलपान कराया। एक जगह मोटर साइकिल से जा रहे पति पत्नी ने मोटरसाइकिल रोक कर प्रेमसागर को चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया। गर्मी थी पर रास्ता ठीक होने के कारण ज्यादा कष्ट नहीं था। शाम होने के पहले प्रेमसागर नागजीरी में क्षिप्रा विहार वन नर्सरी के अतिथि गृह में पंहुच गये थे। एक वनरक्षक के घर से उनका भोजन बन कर आया। उन्होने नाम बताये – शर्मा जी और गया प्रसाद।

अगले दिन – आज – त्रिपाठी जी और चौहान जी उन्हें महाकाल मंदिर ले कर गये। वे दिन में घूमने भी निकले। शायद ये दोनो सज्जन साथ रहे हों। महाकाल को उन्होने अमरकंटक से कांवर यात्रा से लाया जल चढ़ाया। एक अन्य कमण्डल अमरकंटक का जल वे तीन चार दिन बाद ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को भी अर्पित करेंगे।

त्रिपाठी जी और चौहान जी उन्हें महाकाल मंदिर ले कर गये।

“नर्मदा के मूल स्थान का जल तो आप इन दो ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ा रहे हैं। आगे त्रय्म्बकेश्वर और उसके बाद के लिये कहां से जल उठायेंगे?” – मैंने पूछा।

कहां से जल लेना है उसका विधान शिवपुराण में वर्णित है। ॐकारेश्वर दर्शन के बाद पास में ही अलकनंदा नदी हैं। उनका जल ले कर त्र्यम्बक और भीमाशंकर को अर्पित करने का विधान है। उसके अनुसार नदी से जल लूंगा।

प्रेमसागर जल चढ़ाने के साथ साथ विभिन्न नदियों का थोड़ा थोड़ा जल अपने साथ रख भी रहे हैं। वह यादगार के रूप में रहेगा। जब वे केदार की यात्रा पर निकलेंगे तो उसमें गंगाजी का स्वच्छ जल भी जुड़ेगा। गंगाजी के जल में दीघकाल तक जल को स्वच्छ रखने का गुण होता ही है।

इसका अभिप्राय यह है कि बाकी 9 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के साथ उनके युग्म के रूप में जल लेने वाले स्थानों की भी यात्रा प्रेमसागर को नियोजित करनी होगी। अभी ॐकारेश्वर तक तो प्रवीण चंद्र दुबे जी के सहयोगियों ने नियोजन और उसके अनुसार यात्रा निष्पादन सुगम बनाया। आगे यह नियोजन-निष्पादन प्रेमसागर को करना होगा।

महादेव आगे की यात्रा के लिये उन्हें मानसिक अनुशासन उपलब्ध करायेंगे, या उनमें पहले से है तो जागृत करेंगे; ऐसा लगता है। मंझधार में तो नहीं ही छोड़ेंगे प्रेमसागर को! उज्जैन में उनके मंदिर में जलाभिषेक के हस्ताक्षर कर चुके हैं तो उनकी भक्तों में प्राइम मेम्बरशिप तो तय हो ही गयी है। बस, प्राइम मेम्बरशिप का कार्ड हर किसी को दिखाते, फ्लैश करते न चलें! :-)

रात के आठ बज चुके हैं। कल भोर में – या मध्य रात्रि में प्रेमसागर को जाग कर भस्म आरती के दर्शन हेतु जाना है। मैं तो सत्रह साल वहां रहा और कभी जा नहीं पाया। लोगों से केवल उसके बारे में सुना। प्रेमसागर तो दूसरे ही दिन वहां हो आयेंगे। प्रेमसागर महादेव के मिशन पर निकले हैं तो वे सभी कुछ कर या देख लेना चाहते हैं जो शिव से सम्बंधित है।

उज्जयिनी या उज्जैन शिव की नगरी है। काशी भी शिव की नगरी है। और इन नगरों की, स्थानों की प्राचीनता का अहसास इनको देखने, इनमें घण्टा दो घण्टा घूमने में हो जाता है। उज्जैन या अवंतिका उन सप्त नगरियों में से है जहां मोक्ष प्राप्त होता है। अन्य पुरी हैं – अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), द्वारिका, कांची और काशी। काशी वाले अकेले यह क्रेडिट नहीं ले सकते।

प्रेमसागर वह अनुभव कर लिये होंगे जिनमें स्थान की प्राचीनता और पवित्रता दिखती है। उन्होने क्षिप्रा के चित्र भी भेजे हैं जो महाकालेश्वर के पार्श्व में बहती हैं। उनको देख कर क्षिप्रता का अहसास तो नहीं होता। किसी युग में रही होंगी। अब तो नर्मदा का जल लिफ्ट कर उसमें न मिलाया जाये तो सिंहस्थ (कुम्भ) सम्पन्न ही नहीं हो सकता। नदी में जल की मात्रा और गुणवत्ता दोनो ही शोचनीय हैं।

उज्जैन में कई लोग उनसे मिले। कई लोग उनके बारे में सोशल मीडिया पर उनकी चर्चा से या इस ब्लॉग से उनके बारे में जान पाये। कुछ लोगों को वन विभाग के कर्मियों के जरीये पता चला। जनार्दन वाकनकर जी से तो मेरी बात भी कराई प्रेमसागर ने।

जनार्दन वाकनकर और प्रेमसागर

जनार्दन जी मराठी मूल के हैं। ॐकारेश्वर के बाद प्रेमसागर को मराठी भाषी क्षेत्र में तीन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करनी है। जनार्दन जी उस इलाके के भाषाई, सांकृतिक और भौगोलिक – सभी प्रकार के सेतु बन सकते हैं। मैंने उनसे जनार्दन जी के सम्पर्क को अहमियत से लेने को कहा है। आगे की यात्रा में जितना अधिक विविध पृष्ठभूमि के लोगों की सद्भावना और जुड़ाव मिलेगा, उतना ही उन्हें सहूलियत होगी और उतना ही उनकी यात्रा संतृप्त बनेगी। सद्भावना, शुभकामना और आशीर्वाद की सांद्रता महादेव भी पहचानते हैं।

महादेव की कृपा से ही लोग मिलते हैं। पर साधक कितने जतन से उनका मिलना सहेजता है, उसे महादेव जरूर परखते होंगे। … यात्रा एकाकी तपस्या नहीं है। उसके लिये तो शायद भविष्य में कभी एकांत स्थान पर धूनी रमानी पड़े। यात्रा तो विराटता का अनुभव लेने का अवसर है। उसे सस्ते में गुजर नहीं देना चाहिये।

एक ग्रुप विक्रमादित्य पर नाट्य मंचन कर रहा था, उसके दो सज्जन – जीतेंद्र त्रिपाठी और शक्ति नागर प्रयास कर प्रेमसागर से मिलने आये। वन विभाग के रेस्ट हाउस के पास ही एक सभागृह में मंचन हो रहा था। शाम के समय प्रेमसागर को वहां ले कर भी गये। विक्रमादित्य की नगरी और विक्रमादित्य पर नाट्य-मंचन – शानदार अनुभव रहा होगा। नाटक के निर्देशक महोदय – ओमप्रकाश शर्मा जी ने प्रेमसागर का फूल माला से स्वागत भी किया। वे तो चरण छूने का उपक्रम भी कर रहे थे तो प्रेम ने रोका – “आप तो मेरे अग्रज हैं। पितातुल्य हैं।” उन्होने प्रेमसागर को माला पहनाई तो प्रेम ने उनको भी।

दिन में महाकाल के दर्शन और जल अर्पण करने के बाद प्रेमसागर कई अन्य स्थानों पर भी घूमे – शनि मंदिर, गणपति मंदिर, हरसिद्धि शक्तिपीठ. संदीपनि आश्रम और काल भैरव आदि। काल भैरव को प्रसाद (शराब की शीशी) चढ़ाने का कार्य नहीं हो पाया। वह शायद कल करेंगे।

प्रेमसागर ने कहा कि उज्जैन में घुसते ही उन्हें महाकाल की अनुभूति होने लगी और वह हर जगह हैं – यह भाव बना रहा है।

25 अक्तूबर, रात्रि –

आज प्रेमसागर के बारे में ब्लॉग पर कुछ पोस्ट नहीं हुआ। दीपावली की घर सफाई चल रही थी और मेरे टांगों में सर्दियों के प्रारम्भ होने के कारण दर्द हो रहा था। उसके कारण मानसिक-शारीरिक अस्वस्थता बनी रही। प्रेमसागर ने भी बताया कि वे रात डेढ़ बजे उठ कर भस्म आरती देखने गये थे। उसके बाद आ कर सोये या आराम किये। और कहीं निकले नहीं।

भस्म आरती का अनुभव बताते हैं वे। तीन घण्टा महाकाल के सानिध्य में बैठने का अवसर मिला। इतना लम्बा शिव जी के पास बैठने का यह उनके जीवन का दूसरा अनुभव था। वहां फोटो लेने की मनाही थी, पर एक फोटो तब भी वे ले पाये। बहुत लोग थे देखने वाले। वीआईपी वर्ग में ही दो सौ रहे होंगे और जनरल में तो 500-1000 लोग। अभूतपूर्व था वह! पहले प्रतीक्षा में एक घण्टा बैठना पड़ा। फिर चार से पांच बजे के बीच महाकाल का सिंगार हुआ और उसके बाद घण्टा भर भस्म आरती। श्मसान की भस्म की आरती। पौने छ बजे बाहर निकल कर उन्होने अपनी एक सेल्फी ली; यादगार के रूप में।

भस्म आरती के बाद पौने छ बजे बाहर निकल कर उन्होने अपनी एक सेल्फी ली; यादगार के रूप में।

उन्होने बताया कि दिन में जनार्दन वाकनकर जी उनके लिये भोला पाण्डेय होटल से शुद्ध शाकाहारी भोजन ले कर आयेंगे और एक भागवत कथा कहने वाली महिला भी मिलने आयेंगी। उसके बाद मैंने उनसे उनसे हुई मुलाकात के बारे में पूछा नहींं।

कल सवेरे पांच बजे वे इंदौर के लिये रवाना होंगे। नक्शे में दूरी 51 किलोमीटर दिखती है। सो लगभग 55-56 किलोमीटर तो चलना ही होगा। प्रवीण दुबे जी ने बताया है कि इंदौर से वे चोरल और चोरल से ॐकारेश्वर जायेंगे। अर्थात 28-29 अक्तूबर तक वे कांवर यात्रा के तीसरे ज्योतिर्लिंग के सानिध्य में होंगे!

26 अक्तूबर 21, सवेरे –

प्रेमसागर भिनसारे निकल लिये इंदौर के लिये। आज 50-56 किलोमीटर चलना है। उन्होने सवेरे सूर्योदय का नदी, शायद क्षिप्रा किनारे का चित्र भेजा है। टाइमलाइन के हिसाब से 6:39 का चित्र। उज्जैन में सूर्योदय 6:29 के समय हुआ होगा। यहां मेरे पास 6:04 पर हुआ था। यह अंतर बताता है कि कितना पश्चिम में हैं प्रेमसागर। विश्वेश्वर बनारस से महाकाल, उज्जैन में जब बतियाते होंगे तो समय के अंतर, सवेरे की ठण्ड, कोहरे या धुंध, नमी या खुश्की की बात करते होंगे। वैसे इतनी भस्म सवेरे सवेरे लपेट लेते हैं भस्म आरती में तो सर्दी तो लगती नहीं होगी बाबा को! :lol:

सूर्योदय का नदी, शायद क्षिप्रा किनारे का चित्र भेजा है। टाइमलाइन के हिसाब से 6:39 का चित्र।

आगे का विवरण संझा को!

हर हर महादेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “देवास से उज्जैन और उज्जैन में

  1. एक बार उज्‍जैन गया हूं, बाबा ने बेसाख्‍ता बुला लिया था, दर्शन किए, कुछ खास अनुभव नहीं कर पाया, ऊंकारेश्‍वर में जरूर विशिष्‍ट अनुभूति हुई, उसे बयां नहींं कर सकता, काफी देर तक वहां गलियारे में चुुपचाप बैठा रह गया था… महाकाल के दर्शन में लंबी कतार और भीड़भाड़ और धक्‍का मुक्‍की ने मुझे उखाड़ दिया था…

    फिर कभी बाबा दोबारा बुलाएंगे तो शांत चित्‍त से जाउंगा।

    ।।हर हर महादेव।।

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    1. मेरी भी प्रवृत्ति आप की तरह है। गांव का छोटा मंदिर, शिवाला ज्यादा जोड़ता है जहां भीड़ नहीं। एकांत है। और सबसे अच्छा तो शंत गंगा तट है!

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  2. हर हर महादेव , परम भक्त द्वारा पिता और पुत्री का मिलन दृश्य कितना प्रेमिल ,पावन , परमानंद वाला होगा !!! पुत्री अपने पिता को अपने सामने बहुत समय पश्चात् देखकर कैसे दौड़ कर पिता से लिपटी होगी, कैसे पिता ने अपने दिल के टुकड़े को फिर से अपने दिल में समाने की कोशिश की होगी। पिता और पुत्री के लिए यह क्षण कितना सुखद रहा होगा !!! और इस क्षण को उपस्थित करने वाले के लिए उनके ह्रदय से कैसे कैसे आशीर्वाद निकले होंगे
    रामजी की तरह …… प्रति उपकार करौं का तोरा !!!!!
    जय महाकाल !!!

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