गंगा किनारे घूमते हुये खेत में काम करते अरविन्द से मुलाकात हुई। खेत यानी गंगा की रेती में कोंहड़ा, लौकी, नेनुआ की सब्जियों की बुआई का क्षेत्र। अरविन्द वहां रोज सात-आठ घण्टे काम करता है। वह क्षेत्र मुझे अपने दैनिक झमेले के रुटीन से अनवाइण्डिंग का मौका दे रहा था। पर शायद अरविन्द के लियेContinue reading “अरविन्द का खेत”
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पल्टी मारती गंगा
पिछली जुलाई में लिखी पोस्ट में गंगा की बढ़ी जल राशि की बात की थी मैने। अब गंगा विरल धारा के साथ मेरे घर के पास के शिवकुटी के घाट से पल्टी मार गई हैं फाफामऊ की तरफ। लिहाजा इस किनारे पर आधा किलोमीटर चौड़ा रेतीला कछार बन गया है। यह अभी और बढ़ेगा। गंगाContinue reading “पल्टी मारती गंगा”
जनसंख्या का सैलाब
यात्रा के दौरान मैने यत्र-तत्र-सर्वत्र जन सैलाब देखा। इलाहाबाद से बोकारो जाते और वापस आते लोग ही लोग। सवारी डिब्बे में भरे लोग। यह यात्रा का सीजन नहीं था। फिर भी ट्रेनों में लम्बी दूरी के और हॉपिंग सवारियों की अच्छी तादाद थी। भीड़ मुझे उत्साहित नहीं करती। वह मुझे वह बोझ लगती है। मेरेContinue reading “जनसंख्या का सैलाब”
