प्री-मानसूनस्य प्रथमे प्राते:


प्री-मानसून के प्रथम प्रात: में कालिदास को याद करता हूं। मोहन राकेश को भी याद करता हूं। क्यों? ब्लॉग़ पर कारण बताने की बाध्यता नहीं है। वैसे भी यह साहित्यिक ब्लॉग नहीं है। कल शाम आंधी आई और ओले पड़े। जिसके गांव में बंटाई पर खेती दे रखी गई है, वह तुरंत फोन लगा करContinue reading “प्री-मानसूनस्य प्रथमे प्राते:”

श्वान मित्र संजय


कछार में सवेरे की सैर के दौरान वह बहुधा दिख जाता है। चलता है तो आस पास छ-आठ कुत्ते चलते हैं। ठहर जाये तो आस पास मंडराते रहते हैं। कोई कुत्ता दूर भी चला जाये तो पुन: उसके पास ही आ जाता है। कुत्ते कोई विलायती नहीं हैं – गली में रहने वाले सब आकारContinue reading “श्वान मित्र संजय”

हरीलाल का नाव समेटना


विनोद प्वॉइण्ट पर भूसा के बोरे और डण्ठल के गठ्ठर दिख रहे थे। एक नाव किनारे लग चुकी थी और दो लोग उसकी रस्सी पकड़ कर उसे पार्क कर रहे थे। हमने तेजी से कदम बढ़ाये कि यह गतिविधि मोबाइल के कैमरे में दर्ज कर सकें। पतला सा नब्बे-सौ ग्राम का मोबाइल बड़े काम कीContinue reading “हरीलाल का नाव समेटना”

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