परशुराम और राम-लक्ष्मण संवाद विकट स्थिति के प्रबंधन में एक रोचक दृष्टांत प्रस्तुत करता है। परशुराम फैल गये थे शिव जी के धनुष का भंग देख कर। राम और लक्ष्मण को उन्हे नेगोशियेशन में विन-ओवर करना था। नेगोशियेशन में विश्वामित्र, जनक या अन्य राजाओं से कोई फेवरेबल इनपुट मिलने की सम्भावना नहीं थी। परशुराम केContinue reading “परशुराम – राम-लक्ष्मण संवाद”
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सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं
सुनना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। सुनाने से कहीं ज्यादा सुनने का महत्व है। सुनने का महत्व, जानने के लिये हो – यह जरूरी नहीं। जानने के लिये तो देखना-सुनना है ही। सुनने के लिये भी सुनना है। जीवन की आपाधापी में सुनना कम हो गया है। तनाव और व्यग्रता ने सुनाना बढ़ा दियाContinue reading “सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं”
जीवन मूल्य कहां खोजें?
(यह पोस्ट मेरी पिछली ’यदि हमारे पास चरित्र न हो’ विषयक दोनो पोस्टों पर आयी टिप्पणियों से प्रेरित है) नीति शतक का जमाना नहीं। धम्मपद का पढ़वैया कौन है? तिरुवल्लुवर को कौन पढ़/पलट रहा है? भग्वद्गीता के दैवीसम्पद (अध्याय १६) का मनन कौन कर रहा है? रामचरित मनस के उस प्रसंग को कौन खोज रहाContinue reading “जीवन मूल्य कहां खोजें?”
