गांव की ओर


द्वारकापुर गांव में गंगा किनारे पीपल का पेड़ मैं गांव गया। इलाहाबाद-वाराणसी के बीच कटका रेलवे स्टेशन के पास गांव में। मैने बच्चों को अरहर के तने से विकेट बना क्रिकेट खेलते देखा। आपस में उलझे बालों वाली आठ दस साल की लड़कियों को सड़क के किनारे बर्तन मांजते देखा। उनके बालों में जुयें जरूरContinue reading “गांव की ओर”

ओवरवैल्यूड शब्द


मसिजीवी का कमेण्ट महत्वपूर्ण है – टिप्‍पणी इस अर्थव्‍यवस्‍था की एक ओवरवैल्‍यूड कोमोडिटी हो गई है… कुछ करेक्‍शन होना चाहिए! ..नही? मैं उससे टेक-ऑफ करना चाहूंगा। शब्द ब्लॉगिंग-व्यवस्था में ओवर वैल्यूड कमॉडिटी है। इसका करेक्शन ही नहीं, बबल-बर्स्ट होना चाहिये। लोग शब्दों से सार्थक ऊर्जा नहीं पा रहे। लोग उनसे गेम खेल रहे हैं। उद्देश्यहीनContinue reading “ओवरवैल्यूड शब्द”

लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग


श्रीश पाठक “प्रखर” का अभियोग है कि मेरी टिप्पणी लेकॉनिक (laconic) होती हैं। पर मैं बहुधा यह सोचता रहता हूं कि काश अपने शब्द कम कर पाता! बहुत बार लगता है कि मौन शब्दों से ज्यादा सक्षम है और सार्थक भी। अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है।Continue reading “लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग”

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