वृक्षारोपण ॥ बाटी प्रकृति है


  पण्डित शिवानन्द दुबे मेरे श्वसुर जी ने पौधे लगाये थे लगभग १५ वर्ष पहले। वे अब वृक्ष बन गये हैं। इस बार जब मैने देखा तो लगा कि वे धरती को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान कर गये थे। असल में एक व्यक्ति के पर्यावरण को योगदान को इससे आंका जाना चाहिये कि उसनेContinue reading “वृक्षारोपण ॥ बाटी प्रकृति है”

पेपर या प्लास्टिक के थैले?


यह मेरे मनपसन्द विषय पर रीडर्स डाइजेस्ट से लिया गया मसाला है। चूंकि अब सर्वोत्तम नहीं छपता और मैं यह अंग्रेजी नहीं हिन्दी में प्रस्तुत कर रहा हूं – अत: मेरे विचार से यह चुरातत्वीय होते हुये भी चल जायेगा। मेरी पत्नी जी का झोला। वैसे भी शब्द मेरे अपने हैं – रीडर्स डाइजेस्ट केContinue reading “पेपर या प्लास्टिक के थैले?”

सरकारी नौकरी महात्म्य


नव संवत्सर प्रारम्भ हो चुका है। नवरात्र-व्रत-पूजन चल रहा है। देवी उपासना दर्शन पूजा का समय है। ज्ञान भी तरह तरह के चिन्तन में लगे हैं – मूल तत्व, म्यूल तत्व जैसा कुछ अजीब चिन्तन। पारस पत्थर तलाश रहे हैं। श्रीमती रीता पाण्डेय की पोस्ट। एक निम्न-मध्यवर्गीय यूपोरियन (उत्तरप्रदेशीय) माहौल में सरकारी नौकरी का महत्व,Continue reading “सरकारी नौकरी महात्म्य”

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