उधर भी झांक आते लोग


मुम्बई हादसों ने सबके मन में उथल पुथल मचा रखी है। सब की भावनायें किसी न किसी प्रकार से अभिव्यक्त हो रही हैं। ज्ञान भी कुछ लिखते रहे (उनकी भाषा में कहें तो ठेलते रहे)। कुछ तीखा भी लिखते, पर उसे पब्लिश करने से अपने को रोकते रहे। उन्होंने मुझसे भी पूछा कि तुम्हारे मनContinue reading “उधर भी झांक आते लोग”

सरकारी बैठक में आशु कविता


चार भारी भरकम पूअरली डिजाइण्ड पावरप्वॉइण्ट के प्रवचन और बीच बीच में चबा चबा कर बोली गयी अंग्रेजी के लम्बे-लम्बे उद्गार। मीटिंग खिंचती चली जा रही थी। पचीस तीस लोगों से खचाखच बैठक में अगर बोरियत पसरी हो तो हम जैसे अफसर मोबाइल निकाल कर परस्पर चुहल के एसएमएस करने लगते हैं। एक साहब नेContinue reading “सरकारी बैठक में आशु कविता”

बदलते परिदृष्य में वित्त का जुगाड़ ज्यादा जरूरी


कल मेरे एक मित्र और सरकारी सेवा के बैच-मेट मिलने आये। वे सरकारी नौकरी छोड़ चुके हैं। एक कम्पनी के चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर हैं। वैसे तो किसी ठीक ठाक होटल में जाते दोपहर के भोजन को। पर बैच-मेट थे, तो मेरे साथ मेरे घर के बने टिफन को शेयर किया। हमने मित्रतापूर्ण बातें बहुत कीं।Continue reading “बदलते परिदृष्य में वित्त का जुगाड़ ज्यादा जरूरी”

Design a site like this with WordPress.com
Get started