काशी तो शाश्वत है। वह काशी का राजा नहीं रहा होगा। वरुणा के उस पार तब जंगल रहे होंगे। उसके आसपास ही छोटा-मोटा राजा रहा होगा वह। बहुत काम नहीं था उस राजा के पास। हर रोज सैनिकों के साथ आखेट को जाता था। जंगल में हिंसक पशु नहीं थे। सो हिरण बहुत थे। वहContinue reading “हैं कहीं बोधिसत्व!”
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पूर्वाग्रह, जड़ता और मौज की बाईपास
अनूप शुक्ल का कहना है कि हमें मौज लेना नहीं आता। यह बात बहुत समय से मन में खटक रही है। बात तो सही है। पर अपनी समस्या क्या है? समस्या पता हो तो निदान हो। जिन्दगी को लेकर क्यों है इतनी रिजिडिटी (जड़ता)? क्यों हैं इतने पूर्वाग्रह (prejudices)? यह हमारे साथ ही ज्यादा हैContinue reading “पूर्वाग्रह, जड़ता और मौज की बाईपास”
फुट रेस्ट न होना असुरक्षा का कारण
मैने कही पढ़ा था कि लेनिन असुरक्षित महसूस करते थे – उनके पैर छोटे थे और कुर्सी पर बैठने पर जमीन पर नहीं आते थे। मेरा भी वैसा ही हाल है। छोटे कद का होने के कारण मुझे एक फुट रेस्ट की जरूरत महसूस होती है। घर मे यह जरूरत मेज के नीचे उपलब्ध एकContinue reading “फुट रेस्ट न होना असुरक्षा का कारण”
