दुनियाँ के विपरीत छोर पर एक से भारतीय परिवार के सर्दी के अलग अलग अनुभव। यहां हम बर्फ नहीं देखते तो आईस और स्नो का फर्क भी नहीं करते। घर के बाहर नीम से झरी पत्तियां साफ करनी होती हैं यहां और वहां स्नो।
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अलाव के इर्द गिर्द चर्चा
पिछली कोरोना लहर की बात चली। बम्बई से आये एक आदमी की बात की राकेश ने। उसको उसके गांव वालों ने घर में नहीं घुसने दिया था। बाहर तम्बू तान कर उसमें रहने को कहा। घर के बर्तनों में नहीं महुआ के पत्तल दोना में भोजन दिया गया।
लौकी की बेल की झाड़ फूंक
नजर झाड़ना, ओझाई-सोखाई, डीहबाबा की पूजा, सत्ती माई को कढ़ईया चढ़ाना – ये सब ऑकल्ट कृत्य अभी भी चल रहे हैंं! हर लाइलाज मर्ज की दवा है इन कृत्यों में। मैंने गुन्नीलाल पाण्डेय जी से पूछा – कोई कोरोना की झाड़ फूंक वाले नहीं हैं?
