मकर संक्रांति के समय सूरज दिखने लगे थे और लगता था कि सर्दी गई। अब सिर्फ कोरोना परसाद से निपटना होगा। मास्क-सेनीटाइजर ले कर चलेंगे और नियत दिन पर प्रिकॉशन वाला बूस्टर लगवा लेंगे, बस। किला फतह!
पर सर्दी पलट कर आयी। और खूब दबोचा उसने जन मानस को। पोर्टिको में कऊड़ा लगता है पर वहां खुले में बैठने का मन ही नहीं होता। जितना अलाव की आंच में हाथ गर्म नहीं होता, उतना हवा की गलन में शरीर अकड़ने लगता है।

पत्नीजी ने कहा कि घर में काम करने वालों को मोजा और दस्ताने खरीद कर दे दिये जायें। वह खरीदने गया तो सड़क पर इक्का-दुक्का लोग दिखे और बहुत थोड़े वाहन। मानो कर्फ्यू लग गया हो। कपड़े के स्टोर पर विवेक चौबे सर्दी के पलट कर आने से खूब प्रसन्न दिखे। गर्म कपड़ों और कम्बलों को उन्होने सीजन खत्म मान कर समेट दिया था। वह फिर खोला है। धड़ाधड़ बिक्री हो रही है। रूम हीटर भी बिक रहे हैं माणिक चंद्र की दुकान पर।

घर में; वजन कम करने के अभियान में भोजन कम करना निहित था। उसे होल्ड पर रख दिया है। कल गोभी और पनीर के परांठों पर जोर दिया। आज मटर की घुघुरी और निमोना पर जोर है। सूप और चाय भी सामान्य से डबल उदरस्थ की जा रही हैं। ऐसे में वेट-लॉस, गोज फॉर अ टॉस।
ठिठुरन का कष्ट है। पर “पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला” वह सर्दी का मजा ले। (डिस्क्लेमर – मैं किसी प्रकार के नशा सेवन की वकालत नहीं कर रहा। और न कभी मैंने सेवन किया है! 😆 )
पत्नीजी ने मोजे और दस्ताने दे कर अपनी करुणा और सर्दी में कष्ट-सहभागिता दिखाई। पर आसपास जो विपन्नता दिखती है; उससे मन द्रवित हो जाता है। बच्चे और बूढ़े दिन भर ईंधन-लकड़ी-सूखी पत्तियों की तलाश में निकल रहे हैं। वह तब जब मेरा घर के बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा।

दुनियाँ के दूसरे छोर पर सर्दी

उत्तरी गोलार्ध में सब जगह सर्दी का प्रभाव है। यहां न्यूनतम तापक्रम 6 डिग्री सेण्टीग्रेड है तो धरती के दूसरे छोर पर राजकुमार उपाध्याय, जो शिकागो के सबर्ब में रहते हैं; के यहां -6डिग्री! उन्होने अपनी इस समय की जिंदगी की झलकियाँ बताई हैं। हम 6डिग्री में हू हू कर रहे हैं, पर वे शायद -6डिग्री में भी सुकून से हैं। हम 12 डिग्री से ताप नीचे गिरने पर हाय बाप करने लगते हैं पर शायद वहां सुकूनत्व -16डिग्री तक कायम रहता हो! स्वर्ग कहां है जी? कश्मीर में या शिकागो में?
राजकुमार अपने पत्नी-परिवार के साथ होमगुड्स (कोई मॉल होगा बिगबाजार जैसा। बाकी, सबर्ब में जमीन की किल्लत नहीं होगी तो फालतू में बहुमंजिला नहीं है। क्षैतिज फैलाव है।) गये थे –
“आज पत्नी जी को घर के लिए कुछ फ़्रेम्स और पेंटिंग चाहिये थीं तो होमगूड़स चला गया। दुकान के बाहर चंद्रमा पूर्ण रूप से खिले और साफ़ दिख रहे थे तो कुछ चित्र ले लिये। ऐसा लग रहा था मानो पृथ्वी की सारी लाईटें चन्द्रमा से खुली प्रतिस्पर्धा कर रही हों – मेरा प्रकाश तुमसे कम नहीं। चंदा मामा भी कम नहीं, बोल रहे थे तुम सब के लिए मैं अकेला ही काफ़ी हूँ।” 😆

“मौसम में ठण्ड थी तो रास्ते के एक भारतीय दुकान से कुछ गरम समोसे ले लिया गया जिसे की चाय के साथ लिया जाएगा। लेकिन घर पहुँचते ही पत्नी जी ने कहा बाहर ड्राइव-वे की स्नो अभी साफ़ करनी होगी नहीं तो सुबह तक आइस होकर चलने लायक़ नहीं रहेगी।
अब यहाँ हमको दो एहसास हुए एक प्रसन्नता का और एक अप्रसन्नता का। स्नो साफ़ करनी पड़ेगी ये तो जमा नहीं, लेकिन जब तक साफ़ करेंगे तब तक अन्दर समोसे के साथ चाय भी तैयार हो जाएगी वह थी प्रसन्नता। स्नो साफ़ हुई फिर चाय और समोसे का आनंद लिया।“



[राजकुमार उपाध्याय जी के चित्र]
“चाय की (भारतीय) दुकानो टाइप के अनुभव के लिये इस चाय हैंगर को भी होमगूड्स ले आया।”

दुनियाँ के विपरीत छोर पर एक से भारतीय परिवार के सर्दी के अलग अलग अनुभव। यहां हम बर्फ नहीं देखते तो आईस और स्नो का फर्क भी नहीं करते। घर के बाहर नीम से झरी पत्तियां साफ करनी होती हैं यहां और वहां स्नो। पत्तियों को झाड़ू लगाने के लिये सामान्यत: कोई नौकरानी अपनी शाम की शिफ्ट में सांझ ढलने के पहले काम करती है। कभी कभी पत्नीजी लगाती हैं तो कभी शौकिया मैं। वहां स्नो साफ न की जाये तो अगले दिन बर्फ जम जाये। यहां वैसा कोई झंझट नहीं। यहां पेड़ हरे भरे हैं पर वहां ठूंठ जैसे नजर आते हैं। … फिर भी यहां जिंदगी ज्यादा कठिन लगती है।
एक साल यहां कोहरे के मौसम में तीन चार दिन तक कोई पक्षी या गिलहरी दिखे नहीं थे। पर राजकुमार जी ने चित्र भेजे हैं जिसमें सवेरे -2डिग्री तापमान की बर्फ में भी चिड़ियाँ दाना चुगने आ गयी हैं और गिलहरी उन्हें भगा रही है। मौसम और जंतुओं की अलग अलग तासीर है। वहां की गिलहरी और कबूतर यहां के 42डिग्री की गर्मी में शायद टें बोल जायें। यहां के जंतु वहां के -6डिग्री में स्वर्गवासी हो जायें।

राजकुमार जी का दो मग वाला चायदान बड़ा अच्छा लग रहा है। ऐसे मग तो पास में चुनार से मिल जायेंगे; पर ऐसा चायदान नहीं मिलेगा। कितने का होगा? डॉलर में नहीं, रुपये में?
अजब का संसार है – ठण्ड दोनो तरफ़ है लेकिन उससे निपटने का तरीक़ा अलग अलग हैं। कहीं कउड़ा तो कहीं हीटर,कहीं बर्फ़ तो कहीं पत्तियों का उड़ना।
क़प और चायदानी दोनो साथ में क़रीब ५०० रुपया का पड़ा।😀😀
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कप और चाय दानी 500 में. अमरिका ज्यादा मंहगा नहीं लगता. 😁
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नहीं, महँगा नहीं है, क्योंकि पति पत्नी Starbucks में एक कॉफ़ी भी पिएँगे तो उतना तो लग ही जाएगा। 😀😀
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कॉफी मन्हगी है। कोई कॉफी हाउस जैसी जगह नहीं वहां। दो सौ रुपये में टिप समेत कॉफी और एक-एक समोसा भी चल जाये वहां तो! 🙂
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हाँ मक्डॉनल्ड में पिएँगे तो एक डोल्लोर वाली मिल जाएगी लेकिन वो तासीर नहीं आयेगी। 😀
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बढ़िया जुगलबंदी है पांड़े जी और उपधिया जी की। समोसे तो बिल्कुल अपने नुक्कड़ वाले लग रहे हैं। आनंद अअ गया।
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धन्यवाद, पसंद करने के लिए – समोसे नहीं, जुगलबंदी!
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आभार 🙏🙏
पाण्डेय जी ब्लॉग की दुनिया के सागर हैं और उनके ब्लॉग का पताका बहुत पहले से दुनिया के कोने कोने में है, मैं तो ताल भी नहीं।
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सागर और ताल! कुछ ज्यादा ही कह दिया। हाजमोला तलाशना होगा! 😆
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आभार 🙏🙏
पाण्डेय जी ब्लॉग की दुनिया के सागर हैं और उनके ब्लॉग का पताका बहुत पहले से दुनिया के कोने कोने में है, मैं तो ताल भी नहीं।
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चाय के कप की फिनिशिंग देखकर लगता है भारत से ही बनकर गया होगा।
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मुझे भी लगा. चुनार या खुर्जा में ऐसे मिलते हैं.
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आलोक जोशी ट्विटर पर –
एक भारतीय विदेशी धरा पर जाकर वहां की प्रकृति और जीवन के अभ्यस्त होने की कोशिश करता है..
मन कल्पनाओं में डूब जाता है
वाह रे परमात्मा! कैसे कैसे अनुभव कराए..💐
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