हर चीज का इलाज झाड़ फूंक में है। गुन्नीलाल जी कल आये थे। मैंने उनसे पूछा – आपकी लौकी की बेल में फल लग रहे हैं? हमारे यहां तो लौकी में फूल लगे, छोटी बतिया लगी पर उसके आगे या तो झड़ गयी या सड़ गयी। लौकी बड़ी हो ही नहीं पायी।
गुन्नीलाल जी ने कहा कि उनके यहां शुरू में तो अच्छे फल लगे। पर बाद में लगता है सबमर्सिबल पम्प पर नहाने वाली किसी महिला ने नजर लगा दी। औरतें बोल रही थीं कि बेल में लौकी अच्छी लग रही है। उसके बाद फूल लगने कम हो गये। फल भी बड़े नहीं हुये और बड़े भी हुये तो सड़ गये।

कल उन्होने लौकी की ‘नजर झड़ाई’ कराई है। उनके पड़ोस में ही झाड़ने वाले हैं। उसके अलावा गांव में ही सात आठ लोग हैं। मंतर वंतर पढ़ कर फूंक देते हैं लौकी (या जिसकी झाड़ फूंक करनी हो) की ओर देख कर। उसके बाद कई मामलों में असर पड़ जाता है।
उनकी लौकी की झड़ाई का असर होगा या नहीं, यह तीन चार दिन में पता चलेगा। अब बैठे ठाले मुझे एक काम मिल गया है। रोज उन्हें फोन कर पूछने का कि झड़ाई का असर हुआ या नहीं। अगर असर होता है – और वह चांस का मामला भी हो सकता है – तो उनके यहां जा कर नजर झाड़क जी का एक इण्टरव्यू और चित्र लेना बनता है। कुल मिला कर एक सप्ताह का प्रॉजेक्ट हो गया मेरे लिये। 😆


नजर झाड़ना, ओझाई-सोखाई, डीहबाबा की पूजा, सत्ती माई को कढ़ईया चढ़ाना – ये सब ऑकल्ट कृत्य अभी भी चल रहे हैंं! हर लाइलाज मर्ज की दवा है इन कृत्यों में। मैंने गुन्नीलाल पाण्डेय जी से पूछा – कोरोना की तीसरी लहर आने ही वाली है। कल देस भर में 58 हजार मामले नये हुये हैं। कोई कोरोना की झाड़ फूंक वाले नहीं हैं?
“कोरोना तो झाड़ फूंक से ऊपर की चीज हो गयी। उसके लिये जब औरतों ने रोली-चंदन-रोट-हलवा चढ़ा दिया है एक बार तो भला अब वह झाड़ फूंक के मान का है? अब उसका दर्जा बढ़ गया है। दूसरी बात यह है कि लोगों ने टीका लगवा लिया है। सोचते हैं कि अब कोरोना कब्जे में हो गया है। उसके बाद भी अगर महामारी बढ़ी तो लोग रोट चढ़ायेंगे डीहबाबा और सत्ती मईया को। फिलहाल तो मजे में चल रहे हैं सब!” – गुन्नीलाल जी ने उत्तर दिया।
लौकी की झड़ाई का परिणाम और कोरोना की रोट-पूजा पर मेरी नजर रहेगी, फिलहाल। देखते हैं गांवदेहात कैसे चलता है! 🙂
झाड़ फूंक कि यह परम्परा बड़ी पुरातन लगती है, तुलसी बाबा ने तो तर्जनी के दिखाने से बतिया को मुरझवा दिया था।
इहाँ कुम्हड बतिया कोउ नाही,के तर्जनी देखि मुरझाही। 😀
हमको यह बड़ा मनोवैज्ञानिक लगता है, अगर मामला ठीक हो गया तो मन्तर नहीं तो बोलेंगे “लगता तगड़ी नज़र लगी बा,कई बार झारइ पड़े”
कहते है अगर आप एक से ज़्यादा पेड़ लगाइए तो pollination हो जाता है और जल्दी बढ़ता है।कुछ लोग थोड़ा बढ़ता है तो मेन साखा काट देते हैं तो कई शाखायें आ जाती हैं और जल्दी फूल देने लगता है।
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typo जे तर्जनी
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अभी तो गुन्नीलाल जी के नजर झाड़ प्रोग्राम का परिणाम देखना है. और अगर उसके असफल होने की दशा बनती है तो क्या थ्योरी बनेगी. 😁
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