आम खतम हुये, लग्गियाँ उपेक्षित हो गयीं


अगले साल नये आम होंगे, अशोक नई लग्गियां बनायेगा। अभी तो ये सभी उपेक्षित हो गयी हैं। गौतमस्थान की अहिल्या की तरह। प्रतीक्षा करतीं कि कोई आम आयेंगे और उनका उद्धार करेंगे!

ठिठकता मानसून


आज की बारिश के बाद सांप निकलेंगे। वैसे इतने सालों में यह तो पता चल गया है कि अधिकांशत: वे भले कोबरा जैसे दीखते हों पर हैं चूहे खाने वाले असाढ़िया सांप ही। फिर भी सावधान तो रहना ही होता है।

आज का आत्मबोध


वह तो भला हो कि ब्लॉग और सोशल मीडिया पर; आप कितना भी साधारण लिखें, लोग प्रशंसा कर देते हैं। थोड़ी बहुत ईगो मसाज हो जाता है। अन्यथा, गांवदेहात में, ससुराल में घर बना कर रहना वैसा ही है मानो बत्तीस दांतों के बीच फंसी निरीह जीभ होना।

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