
भरूच के नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर से प्रारम्भ हुई यह नर्मदा परिक्रमा नर्मदा के उत्तर किनारे से होती हुई अमरकंटक तक और फिर दक्षिणी किनारे से होती हुई वापस भरूच में समाप्त होगी। परिक्रमा प्रेमसागर जी कर रहे हैं। पर उतनी ही यह मेरी मानसिक यात्रा भी है।
नर्मदा जी के सौंदर्य से मैं बहुत अर्से से चमत्कृत रहा हूं। एक भौतिक परिक्रमा को मूर्त कर रहे हैं प्रेमसागर अपने नित्य अपडेट्स से। उसपर मेरी मानसिक हलचल का जो परिणाम है वह यहां पोस्टों में सम्मिलित है।
यह इस प्रकार पदयात्रा भी है और मनयात्रा भी। प्रेमसागर की पदयात्रा और ज्ञानदत्त पाण्डेय की मनयात्रा।
शुरू की कुछ पोस्टें तो बिना तैयारी-खाके के लिखी गई हैं। उनका समय समय पर रिवीजन किया जायेगा। कुछ पोस्टें शायद जोड़ी भी जायें। जून 2025 से इस कड़ी को पूरी गम्भीरता से रचा-लिखा जायेगा। एक दिन में लगभग 800-1000 शब्द। पोस्टें भी समय समय पर रिवाइज हो सकती हैं।
जहां जहां प्रेमसागर या प्रेम या बाबाजी लिखा जाये, वह प्रेमसागर को सम्बोधन होगा। जहां मैं या ज्ञानदत्त लिखा जाये वह ‘मेरा मन’ है। मैं कुछ सीमा तक मैं तथ्यों में कल्पना का सहारा ले सकता हूं। कहां क्या है, वह समझना पाठक पर छोड़ दिया जाये। पाठक की सुविधा के लिये मानसिक आख्यान के अवसर पर $$ का चिन्ह रहेगा। इस चिन्ह से जुड़ी सामग्री पर पाठक मेरी मानसिक उर्वरता (जितनी, जैसी भी है) पर यकीन करें।
नर्मदे हर!
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