संक्रांति के अवसर पर हम लाई, चिवड़ा, गुड़ की पट्टी, तिलकुट, रेवड़ी, गुड़ का लेड़ुआ और गजक जैसी चीजें खरीदने के लिये महराजगंज बाजार गये थे। वहां गिर्दबड़गांव की धईकार बस्ती के संतोष दिखे। एक साइकिल पर बांस की दऊरी लटकाये थे।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
संक्रांति के अवसर पर हम लाई, चिवड़ा, गुड़ की पट्टी, तिलकुट, रेवड़ी, गुड़ का लेड़ुआ और गजक जैसी चीजें खरीदने के लिये महराजगंज बाजार गये थे। वहां गिर्दबड़गांव की धईकार बस्ती के संतोष दिखे। एक साइकिल पर बांस की दऊरी लटकाये थे।