“बन वाले हमको अकेले जाने की परमीशन नहीं दिये। बोले – बाबा लोग का भरोसा नहीं। क्या पता कौन बाबा किस गुफा में आसन जमा ले। एक बार बैठ जाने पर उस बाबा को वहां से निकालना मुश्किल होता है।” – प्रेमसागर ने बताया।
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गंगोत्री और प्रेमसागर
प्रेमसागर की भलमनसाहत है कि वे फोन कर मुझे जानकारी दे रहे हैं। अब उनके पास लोगों का सपोर्ट सिस्टम है और यात्रा हेतु प्रचुर सहयोग भी। पर मेरा मन करता है उनकी यात्रा – गंगोत्री से केदार तक की पदयात्रा का विवरण जानने का।
भीमाशंकर – सातवाँ ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न
प्रेमसागर अब एस्केप वेलॉसिटी पा चुके हैं। शायद। अब उनके पास इतने अधिक सम्पर्क हैं, इतना नेटवर्क है कि फोन पर बतियाने में ही समय जाता होगा, प्रकृति और आसपास के निरीक्षण में नहीं। मेरे हिसाब से वे एक विलक्षण यात्रा को रेत की तरह झरने दे रहे हैं!
