द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में बलभद्र जी सहायक बने। उनका सहयोग रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में बलभद्र जी सहायक बने। उनका सहयोग रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।