गांव उतना जीवंत नहीं रहा, जितना कल्पना में था। पर फिर भी बेहतर है। बहरहाल कबाड़ बीनक बच्चे, कबाड़ी साइकिल वाले और कबाड़ कलेक्शन केंद्र भविष्य में बढ़ेंगे। अर्थव्यवस्था दहाई के अंक में आगे बढ़ेगी तो कबाड़ तो होगा ही!
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
गांव उतना जीवंत नहीं रहा, जितना कल्पना में था। पर फिर भी बेहतर है। बहरहाल कबाड़ बीनक बच्चे, कबाड़ी साइकिल वाले और कबाड़ कलेक्शन केंद्र भविष्य में बढ़ेंगे। अर्थव्यवस्था दहाई के अंक में आगे बढ़ेगी तो कबाड़ तो होगा ही!