उसने बिना चोटिल किए छोटे बड़े कुल सवा सौ बेल तोड़े। उसमें से उसे करीब चालीस मिले मेहनताना के रूप में। इस तरह 4-5 घंटे की मेहनत में राजेंद्र ने 1000 रुपये कमाए। बढ़िया ही कहा जाएगा यह उद्यम!
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
उसने बिना चोटिल किए छोटे बड़े कुल सवा सौ बेल तोड़े। उसमें से उसे करीब चालीस मिले मेहनताना के रूप में। इस तरह 4-5 घंटे की मेहनत में राजेंद्र ने 1000 रुपये कमाए। बढ़िया ही कहा जाएगा यह उद्यम!