जो भी हो; पिछले लगभग चार महीने प्रेमसागर के साथ यात्रा जुगलबंदी ने मुझे बहुत फायदा दिया है। उनकी यात्रा न होती तो मैं रीवा, शहडोल, अमरकण्टक और नर्मदीय क्षेत्र, भोपाल, उज्जैन, माहेश्वर, गुजरात और सौराष्ट्र की मानसिक यात्रा कभी न कर पाता।
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पोरबंदर के आसपास कांवर यात्रा पर विचार
यह मैंने समझ लिया है कि क्या करना चाहिये और क्या नहीं; उसपर मुझे बहुत माथापच्ची नहीं करनी है। उनकी यात्रा मॉनीटर करने का फेज नहीं रहा। वे सौराष्ट्र के आतिथ्यस्वर्ग के आनंदलोक में हैं।
पोरबंदर – दूसरा दिन
प्रेमसागर को क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये – यह मेरा बिजनेस नहीं है। … और यह मेरी पिछले एक दो दिन की उभरी सोच में आया परिवर्तन है। मैं सोचता था कि मैं ब्लॉग में प्रेमसागर के बारे में लिख कर प्रेमसागर की यात्रा का फेसिलिटेटर हूं; पर वह भाव मैंने त्याग दिया है।
