इल्यूसिव, गॉड पार्टीकल, पीटर हिग्स और लैण्डलाइन फोन


खब्ती वैज्ञानिक! मुझे अगर नोबेल मिला होता तो बावजूद इसके कि मैं भी अपने को इण्ट्रोवर्ट कहलाये जाने को पसंद करता हूं; अपने लिये एक सूट सिलवाता और टाई जो मैंने पचास साल से नहीं पहनी; भी पहन कर पुरस्कार लेने जाता!

बैठकी – धीरेंद्र दुबे जी से रिटायरमेण्ट @ 45 पर बातचीत


धीरेंद्र सामान्य मुद्दों पर भी मनन-मंथन कर कुछ नया नजरिया प्रस्तुत करने की विधा के माहिर हैं। इसीलिये मैंने सोचा कि रिटायरमेण्ट @ 45 वाले मुद्दे पर वे कुछ बेहतर बता सकेंगे, तभी यह विषय मैंने उनके समक्ष रखा।

रिटायरमेण्ट@45


मुझे यह विश्वास नहीं होता कि जब लॉगेविटी 100 साल की हो जायेगी तो पैंतालीस की उम्र में रिटायर हो कर लोग बाकी के पांच दशक सशक्त और रचनात्मक तरीके से विलासिता की हाय हाय में न फंसते हुए, हर साल नये बनते गैजेट्स को लेते बदलते रहने या नये मॉडल की सेल्फ ड्रिवन कार लिये बिना बिता सकेंगे।

करें मास्टरी दुइ जन खाइँ, लरिका होइँ, ननियउरे जाइँ


गुन्नीलाल जी का मत है कि हमें 50-30-20 के नियम का पालन करना चाहिये। “जितनी आमदनी हो, उसके पचास प्रतिशत में घर का खर्च चलना चाहिये। तीस प्रतिशत को रचनात्मक खर्च या निर्माण के लिये नियत कर देना चाहिये। बचे बीस प्रतिशत की बचत करनी चाहिये।

गांव में रिहायश – घर के परिसर की यात्रा : रीता पाण्डेय


घर में अपने पति समेत बहुत से बच्चों को पालती हूं मैं। ये पेड़-पौधे-गमले मेरे बच्चे सरीखे ही हैं। ये सब मिलकर इस घर को एक आश्रम का सा दृष्य प्रदान करते हैं। बस, हम अपनी सोच ऋषियों की तरह बना लें तो यहीं स्वर्ग है!

लिखूं, या न लिखूं किताब उर्फ़ पुनर्ब्लागरो भव:


मेरे साथ के ब्लॉगर लोग किताब या किताबें लिख चुके। कुछ की किताबें तो बहुत अच्छी भी हैं। कुछ ने अपने ब्लॉग से बीन बटोर कर किताब बनाई। मुझसे भी लोगों ने आग्रह किया लिखने के लिये। अनूप शुक्ल ने मुझे ब्लॉग से बीन-बटोर के लिये कहा (यह जानते हुये कि किताब लिखने के बारेContinue reading “लिखूं, या न लिखूं किताब उर्फ़ पुनर्ब्लागरो भव:”