पीछे कांधे पर लेने वाला यह पिट्ठू बैग और एक दहिमन की लकड़ी की डण्डी – यही उनका सामान है। कपड़े न्यूनतम हैं। अपनी पोटली में उन्होने सोठउरा, तिल, गुड़ और गोंद का लड्डू और कुछ सूखे मेवे रखे थे। वह मुझे दिखाये भी और चखाये भी।
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प्रयागराज में अलोपी माता और अष्टादश महाशक्ति पीठ
गुड्डू मिश्र के अनुसार एक गुरू के निर्देश अनुसार यात्रा करनी चाहिये। गुरू और श्रद्धा के आधार पर यात्रा।
[…] घुमक्कड़ी के अपने अलग रोमांच हैं। अपना अलग तरीके का आनंद। प्रेमसागर शायद वह ले रहे हैं।
कटरा-घुमा-सोहागी पहाड़ी और चाकघाट
चूना पत्थर की खदान से बड़े तालाब/झील बन गये हैं और उनमें पानी भी खूब जमा है। बड़ा सुंदर लगते हैंं ताल के वे चित्र। मन होता है कभी वहां का चक्कर लगाया जाये। 🙂
रींवा से कटरा
रास्ता लम्बा था तो प्रेमसागर चलते ही रहे। लालगांव के पास कुछ सुरापान किये लोग उन्हें उन्हीं के यहां रुकने और रात गुजारने की जिद कर रहे थे। बकौल प्रेमसागर – बड़ी मुश्किल से उनसे जान छुड़ाई। 🙂
अमरपाटन से रींवा
जूठी चाय और फिर पानमसाला-जर्दा। अचानक प्रेमसागर को लगा कि उस भिखमंगे का एक फोटो ले लेना चाहिये। पर तब देखा कि वह भिखमंगा गायब हो गया है। …
रींवा पंहुच कर लोगों को यह घटना बताई तो उनका कहना था – महादेव और माई बीच बीच में अपने गणों को भेजते रहते हैं। उससे ज्यादा उद्विग्न नहीं होना चाहिये। यह तो लीला है!
प्रेमसागर – मैहर से अमरपाटन
रास्ते में तीन नौजवान मिले। उनमें से एक का नाम प्रेमसागर को याद है शिवम। वे लोग साइकिल से थे, पर प्रेमसागर का बैग उठा कर तीन किमी साथ चले। उनका फोटो भी खींच लिया है।